(गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रश्न‒यदि
माता-पिता बालकोंमें ममता नहीं रखेंगे तो फिर उनका सुधार कैसे कर पायेंगे ?
स्वामीजी‒यह बात बिलकुल
गलत है । बालकमें ममता होनेमें उसमें मोह हो जाता है और मोहपूर्वक पालन करनेसे न बालकका
हित (सुधार) होता है, न अपना, प्रत्युत मोह ही बढ़ता है । मोहसे आसुरी सम्पत्ति बढ़ती है ।
एक बालक माँके पास रहता है,
एक बालक पिताके पास रहता है,
एक बालक अध्यापकके पास रहता हैं और एक बालक महात्माके पास रहता
है । विचारपूर्वक देखें तो महात्माके पास रहनेवाला बालक जितना सुधरेगा, उतना अध्यापकके
पास रहनेवाला नहीं । अध्यापकके पास रहनेवाला बालक जितना सुधरेगा,
उतना पिताके पास रहनेवाला नहीं । पिताके पास रहनेवाला बालक जितना
सुधरेगा, उतना माँके पास रहनेवाला नहीं । कारण यह है कि माँमें मोह ज्यादा
होता है, माँकी अपेक्षा पितामें मोह कम होता है, पिताकी अपेक्षा अध्यापकमें
मोह कम होता है और महात्मामें मोह होता ही नहीं । अतः ममता
रखकर पालन करनेसे बालकका सुधार होता है‒यह बात बिलकुल झूठी है ।
जो वैद्य या डॉक्टर सब लोगोंका इलाज करते हैं,
वे अपने स्त्री-बच्चोंका इलाज करनेक लिये दूसरे
वैद्य या डॉक्टरको बुलाते हैं । कारण कि अपने स्त्री-बच्चोंमें
मोह-ममता ज्यादा होनेसे वे खुद उनका इलाज नहीं कर सकते । जहाँ मोह-ममता ज्यादा होती
है, वहाँ बुद्धिका विकास कम होता है । अतः दूसरे वैद्य औषधि, पथ्य आदिका जितना विचार
कर सकत हैं, उतना विचार ममतावाले नहीं कर सकते । तात्पर्य है कि ममतारहित वैद्य-डॉक्टर
ही अपन स्त्री-बच्चोंका इलाज कर सकत हैं ।
धृतराष्ट्रकी दुर्योधनमें बहुत ममता थी । महात्मा विदुरजीने
धृतराष्ट्रको बहुत समझाया, पर ममताके कारण वे दुर्योधनका सुधार नहीं कर सके, जिससे कुलका
ही विनाश हो गया । तात्पय है कि ममतासे पतन ही होता है, सुधार नहीं ।
प्रश्न‒गृहस्थमें
रहते हुए अहंता-ममताका त्याग कैसे होगा ?
स्वामीजी‒अहंता-ममता न छुटनमें
गृहस्थ या साधु अथवा घर या संन्यास कारण नहीं है । बन्धन
भीतरके भावसे, नीयतसे होता है । कुटुम्बके साथ सम्बन्ध होनेसे गृहस्थका व्यवहार
ज्यादा होता है और निवृत्तिपूर्वक साधु बननेसे व्यवहार कम होता है‒इस प्रकार व्यवहारमें
तो फर्क पड़ता है, पर मुक्तिमें कोई फर्क नहीं पड़ता । अपने सुखकी इच्छा छोड़नेसे ममता
छूट जाती है । जैसे, माँ बालकका पालन करनेके लिये ही बालकको अपना माने,
परिवारमें एक-दूसरेकी सेवा करनेके लिये ही परिवारको अपना माने
तो ममता छूट जायगी । अगर माँ बालकसे सुखकी आशा रखे कि यह बड़ा होगा तो इसका विवाह करूँगी,
बहू आयेगी, फिर दोनों मेरी सेवा करेंगे आदि,
तो उसकी ममता नहीं छूटेगी । ऐसे ही परिवारसे अपनी सुख-सुविधाकी
इच्छा रखें तो ममता नहीं छूटेगी ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सन्त समागम’ पुस्तकसे
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