Jul
26
व्यवहार
प्रश्न‒परिवारके बड़े-बूढ़ोंके साथ कैसा व्यवहार
करना चाहिये ?
उत्तर‒बड़ोंको
सुख-आराम देना, उनकी सेवा करना, उनको
बड़प्पन देना, उनका आदर करना, उनकी
आज्ञाका पालन करना, उनके शासनमें
रहना‒यह छोटोंका कर्तव्य है । परन्तु यह खुद बड़ोंका कर्तव्य नहीं
है अर्थात् हम बड़े हैं, पूजनीय हैं, आदरणीय हैं‒ऐसा मानना बड़ोंका काम नहीं
है । कारण कि ऐसा भाव रहनेसे दूसरोंके हृदयमें उनके प्रति आदरभाव कम होता है और आगे
चलकर उनका निरादर होने लगता है । अतः बड़ोंका भाव तो सबका पालन-पोषण करनेका, कष्ट सहनेका, छोटोंको सुख-सुविधा
देनेका ही होना चाहिये । छोटों और बड़ोंका इस प्रकार भाव होनेसे सम्पूर्ण परिवार
एवं समाज सुखी होता है ।
प्रश्न‒विधवा स्त्रीके साथ सास-ससुर, माता-पिता आदिका कैसा व्यवहार होना चाहिये ?
उत्तर‒बहू अथवा बेटी
विधवा हो जाय तो सास-ससुर, माता-पिता आदिको उसका हृदयसे आदर करना चाहिये और बाहरसे
रक्षा एवं शासन करना चाहिये, जिससे वह बिगड़ न जाय । तात्पर्य है कि उसका हित चाहते
हुए उसके साथ ऐसा बर्ताव करना चाहिये, जिससे वह दुःखी भी न हो और उसके आचरण
भी न बिगड़ें ।
बहू
अथवा बेटीके विधवा होनेपर सास और माँको चाहिये कि वे अपना जीवन सादगीसे बितायें; गहने-कपड़े
भोजन आदिको भोगबुद्धिसे सेवन न करें, प्रत्युत
निर्वाहमात्र करें । ऐसा करनेसे बहू और बेटीका सुधार होगा । कारण कि सास
और माँ भोग भोगेंगी तो उसका असर बहू और बेटीपर अच्छा नहीं पड़ेगा । यदि सास और माँ
संयम रखेंगी तो उसका असर बहू और बेटीपर भी अच्छा पड़ेगा, जिससे उनका जीवन
सुधरेगा । सास और माँको यही विचार करना चाहिये कि अभी इस अवस्थामें हम संयम नहीं करेंगी
तो फिर कब संयम करेंगी ? संसारमें संयमी और त्यागीकी ही महिमा
है, भोगी
और संग्रहीकी नहीं ।
प्रश्न‒विधवा स्त्रीके
साथ भाई और भौजाइयोंका कैसा व्यवहार होना चाहिये ?
उत्तर‒भाई और भौजाइयोंको
विधवाका हृदयसे आदर करना चाहिये, उसका तिरस्कार नहीं करना चाहिये । उसके चरित्र और भावोंकी
रक्षा करते हुए उसके साथ आदरका बर्ताव करना चाहिये । उसके हितकी दृष्टिसे उसपर शासन
और प्यार‒दोनों ही करना चाहिये ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे
|