।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि
श्रावण कृष्ण अष्टमी, वि.सं.२०७३, बुधवार

गृहस्थमें कैसे रहें ?




(गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रश्न‒माता-पिताको कन्याके घरका अन्न खाना चाहिये या नहीं ?

उत्तर‒माता-पिताने कन्याका दान कर दिया तो वह उस घरकी मालकिन बन गयी, अब माता-पिताको उसके घरका अन्न लेनेका अधिकार नहीं है । दान की हुई वस्तुपर दाताका अधिकार नहीं रहता । हमने एक कथा सुनी है । बरसानेका एक चमार सुबह किसी कामके लिये नन्दगाँव गया । वहीं दोपहर हो गयी । कुछ खाया-पीया नहीं था । प्यास लगी थी, पर बेटीके गाँवका जल कैसे पीया जाय ?[1] क्योंकि हमारे वृषभानुजीने यहाँ कन्या दी है‒ऐसा सोचकर उसने वहाँका जल नहीं पीया और बरसानेके लिये चल दिया । चलते-चलते वह प्यासके कारण रास्तेमें गिर पड़ा । उस समय राधाजी उस चमारकी कन्याका रूप धारण करके उसके पास आयीं और बोलीं कि पिताजी ! मैं आपके लिये जल लायी हूँ, पी लो । चमारने कहा कि बेटी ! मैं अभी नन्दगाँवकी सीमामें हूँ; अतः मैं यहाँका पानी नहीं पी सकता । राधाजीने कहा कि पिताजी ! मैं तो बरसानेका जल लायी हूँ । उसने वह जल पी लिया और कहा कि बेटी ! अब तुम जाओ, मैं आता हूँ । राधाजी चली गयीं । चमार अपने घर पहुँचा तो उसने अपनी बेटीको गोदमें लेकर कहा कि बेटी ! तुमने जल पिलाकर मेरे प्राण बचा लिये ! अगर तुम जल लेकर नहीं आती तो मेरे प्राण चले जाते । कन्याने कहा कि पिताजी ! मैं तो जल लेकर आयी ही नहीं थी ! तब चमार समझ गया कि राधाजी ही मेरी कन्याका रूप धारण करके जल पिलाने आयी थीं । तात्पर्य है कि पहले लोग अपनी बेटीके गाँवका भी अन्न-जल नहीं लेते थे ।

जबतक कन्याकी सन्तान न हो जाय, तबतक उसके घरका अन्न-जल नहीं लेना चाहिये । परंतु कन्याकी सन्तान होनेपर माता-पिता कन्याके यहाँका अन्न-जल ले सकते हैं । कारण कि दामादने केवल पितृऋणसे मुक्त होनेके लिये ही दूसरेकी कन्या स्वीकार की है । उससे सन्तान होनेपर दामाद पितृऋणसे मुक्त हो जाता है; अतः कन्यापर माँ-बापका अधिकार हो जाता है, तभी तो दौहित्र अपने नाना-नानीका श्राद्ध-तर्पण करता है, उनको पिण्ड-पानी देता है और परलोकमें नाना-नानी अपने दौहित्रके द्वारा किया हुआ श्राद्ध-तर्पण, पिण्ड-पानी स्वीकार भी करते हैं । यदि कन्याकी सन्तान पुत्री हो, पुत्र न हो, तो भी उसके घरका अन्न-जल ले सकते हैं; क्योंकि सन्तान होनेसे कन्यादान सफल हो जाता है ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे


[1] बरसानेके लोग राधाजीको अपनी कन्या मानते हैं ।