Sep
30
(गत ब्लॉगसे आगेका)
अगर भगवन्नाममें अनन्यभाव हो और नामजप निरन्तर चलता रहे तो उससे
वास्तविक लाभ हो ही जाता है; क्योंकि भगवान्का नाम सांसारिक नामोंकी तरह नहीं है । भगवान् चिन्मय है; अतः
उनका नाम भी चिन्मय (चेतन) है । राजस्थानमें बुधारामजी नामक एक सन्त हुए हैं । वे जब नामजपमें लगे,
तब उनकी नामजपके बिना थोड़ा भी समय खाली जाना सुहाता नहीं था
। जब भोजन तैयार हो जाता, तब माँ उनको भोजनके लिये बुलाती और वे भोजन करके पुनः नामजपमें
लग जाते । एक दिन उन्होंने माँसे कहा कि माँ ! रोटी खानेमें बहुत समय लगता है;
अतः केवल दलिया बनाकर थालीमें परोस दिया कर और जब वह थोड़ा ठण्डा
हो जाया करे, तब मेरेको बुलाया कर माँने वैसा ही किया । एक दिन फिर उन्होंने
कहा कि माँ ! दलिया खानेमें भी समय लगता है;
अतः केवल राबड़ी बना दिया कर और जब वह ठण्डी हो जाया करे,
तब बुलाया कर । इस तरह लगनसे नाम-जप किया जाय तो उससे वास्तविक
लाभ होता ही है ।
शंका‒अगर
श्रद्धा-विश्वासपूर्वक किये हुए नामजपसे ही लाभ होता है, तो
फिर नामकी महिमा क्या हुई ? महिमा
तो श्रद्धा-विश्वासकी ही हुई ?
समाधान‒जैसे,
राजाको राजा न माननेसे राजासे होनेवाला लाभ नहीं होता;
पण्डितको पण्डित न माननेसे पण्डितसे होनेवाला लाभ नहीं होता;
सन्त-महात्माओंको सन्त-महात्मा न माननेसे उनसे होनेवाला लाभ
नहीं होता; भगवान् अवतार लेते हैं तो उनको भगवान् न माननेसे उनसे होनेवाला
लाभ नहीं होता; परंतु राजा आदिसे लाभ न होनेसे राजा आदिमें कमी थोड़े ही आ गयी
? कमी तो न माननेवालेकी ही हुई । ऐसे ही जो नाममें श्रद्धा-विश्वास
नहीं करता उसको नामसे होनेवाला लाभ नहीं होता, पर
इससे नामकी महिमामें कोई कमी नहीं आती । कमी तो नाममें श्रद्धा-विश्वास न करनेवालेकी
ही है ।
नाममें अनन्त शक्ति है । वह शक्ति नाममें श्रद्धा-विश्वास करनेसे
तो बढ़ेगी और श्रद्धा-विश्वास न करनेसे घटेगी‒यह बात है ही नहीं । हाँ, जो नाममें श्रद्धा-विश्वास करेगा, वह
तो नामसे लाभ ले लेगा, पर जो श्रद्धा-विश्वास नहीं करेगा, वह
नामसे लाभ नहीं ले सकेगा । दूसरी बात,
जो नाममें श्रद्धा-विश्वास नहीं करता, उसके
द्वारा नामका अपराध होता है । उस अपराधके कारण वह नामसे होनेवाले लाभको नहीं ले सकता
।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे
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