Nov
26
(गत ब्लॉगसे आगेका)
संसारी मनुष्य सांसारिक विषयको ही पूरा नहीं जानते,
पारमार्थिक विषयको जानना तो दूर रहा ! कारण कि संसारका ज्ञान
संसारसे अलग होनेपर ही होता है और परमात्माका ज्ञान परमात्मासे अभिन्न होनेपर ही होता
है । अशुद्ध प्रकृतिका ज्ञान अशुद्ध प्र[*]कृतिसे
अलग होनेपर ही होता है । अशुद्ध प्रकृतिसे अलग हुए बिना मनुष्य शुद्ध प्रकृतिको आदर
दे ही नहीं सकता । दूसरा बड़ा भारी फर्क यह है कि संसारी (अशुद्ध प्रकृतिवाले) लोग पारमार्थिक
(शुद्ध प्रकृतिवाले) साधकोंसे वैर करते है[†],
परन्तु पारमार्थिक साधक संसारी लोगोंसे वैर करते ही नहीं [‡]।
गर्भपात, नसबन्दी आदिके द्वारा कृत्रिम सन्तति-निरोध करना अशुद्ध प्रकृतिवाले
मनुष्योंका काम है । अशुद्ध प्रकृति ज्यादा होनेपर फिर मिटनी कठिन होती है । जैसे दुर्व्यसनोंकी
ज्यादा आदत पड़ जाये तो उनको छोड़ना बड़ा कठिन होता है,
ऐसे ही कृत्रिम उपायोंसे सन्तति-निरोध करनेकी आदत या रीति पड़
जायगी तो उसको हटाना बड़ा कठिन हो जायगा ।[§] यह आदत मनुष्यको ही नष्ट कर देगी,
मनुष्यताको तो नष्ट करेगी ही । कारण कि नाशकी तरफ बुद्धि लगेगी
तो फिर उधर-ही-उधर चलेगी, नाशकी तरफ ही बुद्धिका विकास होगा,
नाश करनेके नये-नये तरीकोंका आविष्कार होगा । इसका परिणाम भयंकर
अनर्थकारी होगा ।
देशमें आज भोगेच्छाका ताण्डव नृत्य हो रहा है ! सन्तति-निरोधके
पीछे भी भोगेच्छाके सिवाय दूसरा कोई कारण नहीं है । भोगी व्यक्ति ज्यादा होनेसे पुरुषार्थियोंकी
कमी हो रही है । पुरुषार्थी व्यक्तियोंकी कमीसे उत्पादन कम और खर्चा अधिक हो रहा है;
क्योंकि सांसारिक आवश्यकताएँ भोगियोंको ही ज्यादा होती हैं,
त्यागियोंको नहीं । खर्चा अधिक होनेसे देश कर्जदार होता चला
जा रहा है ।
शेष आगेके ब्लॉगमें
‒‘देशकी वर्तमान दशा तथा उसका परिणाम’ पुस्तकसे
लुब्धकधीवरपिशुना निष्कारणवैरिणौ जगति ॥
(नारदपुराण, पूर्व॰ ३७ । ३८; भर्तृहरिनीति॰ ६१)
‘हरिण, मछली और सज्जन क्रमशः तृण, जल और सन्तोषपर अपना जीवन-निर्वाह करते हैं (किसीको
दुःख नहीं देते), परन्तु व्याध, मछुए और दुष्टलोग बिना कारण इनसे वैर करते हैं ।’
निज प्रभुमय देखहि जगत केहि सन करहिं बिरोध ॥
(मानस, उत्तर॰ ११२ ख)
[§] उदाहरणार्थ, तमिलनाडुके उसलियाम पट्टी और उसके आस-पासके गाँवोंमें नवजात
कन्याकी हत्या कर देनेकी ऐसी रीति पड़ गयी है कि उसको बन्द करवानेमें '
भारतीय बाल-कल्याण-परिषद् '
एवं वहाँकी सरकारके भी सारे प्रयास विफल हो रहे हैं । सन् ११९३-९४
के बीच वहाँ ४१० नवजात कन्याओंकी हत्या की गयी ! यह बात अनेक समाचार-पत्रों एवं पत्रिकाओंमें
प्रकाशित हुई है ।
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