।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
मार्गशीर्ष शुक्ल त्रयोदशी, वि.सं.२०७३, सोमवार
लड़ाई-झगड़ेका समाधान


  (गत ब्लॉगसे आगेका)

प्रश्न‒बेटा और बहू आपसमें लड़ें तो माता-पिताका क्या कर्तव्य होता है ?

उत्तर‒माता-पिता उन दोनोंको समझायें कि हम कबतक बैठे रहेंगे ? इस घरके मालिक तो आप ही हो । यदि आप ही परस्पर लड़ोगे तो इस कुटुम्बका पालन कौन करेगा ? क्योंकि भार तो सब आपपर ही है ।

बेटेको अलगसे समझाना चाहिये कि बेटा ! तुम्हारे लिये ही तुम्हारी पत्नीने अपने माता-पिता आदि सबका त्याग किया है । तुम तो अपने बापकी गद्दीपर बैठे हुए हो, तुमने क्या त्याग किया ? अतः ऐसी त्यागमूर्ति स्त्रीको तन, मन, धन आदिसे प्रसन्न रखना, उसका पालन करना तुम्हारा खास कर्तव्य है । पर हाँ, यह याद रखना कि तुम पति हो; अतः स्त्रीकी दासतामें मत फँसना, उसका गुलाम मत बनना । जिसमें उसका हित हो, आसक्तिरहित होकर वही कार्य करो । मनुष्यमात्रका यह कर्तव्य है कि वह जीवमात्रका हित करे । तुम एक पत्नीका भी हित नहीं करोगे तो क्या करोगे ?

पुत्रवधूको समझाना चाहिये कि बेटी ! तुमने केवल पतिके लिये अपने माता-पिता, भाई-भौजाई, भतीजे आदि सबका त्याग कर दिया, अब उसको भी राजी नहीं रख सकती, उसकी भी सेवा नहीं कर सकती तो और क्या कर सकती हो । कोई समुद्र तर जाय, पर किनारेपर आकर डूब जाय तो यह कितनी शर्मकी बात है ! तुमको तो एक ही व्रत निभाना है‒

एकइ   धर्म   एक   ब्रत  नेमा ।
कायँ बचन मन पति पद प्रेमा ॥
                           (मानस, अरण्य ५ । ४)

प्रश्न‒ननद (लड़की) और भौजाई (बहू) आपसमें लड़ें तो माता-पिताको क्या करना चाहिये ?

उत्तर‒माँ लड़कीको समझाये कि देखो बेटी ! यह (भौजाई) तो आजकलकी छोरी है । यह कुछ भी कह दे, तुम बड़ी समझकर इसका आदर करो । यह घरकी मालकिन है; अतः तुम मेरेसे भी बढ़कर विशेषतासे इसका आदर करो । मेरा आदर कम करोगी तो मैं जल्दी नाराज नहीं होऊँगी; क्योंकि मेरी कन्या होनेके नाते मेरे साथ तुम्हारी ममता है ।’

भौजाईको चाहिये कि वह ननदका ज्यादा आदर करे; क्योंकि वह अतिथिकी तरह आयी है । वह ननदके बच्चोंको अपने बच्चोंसे भी ज्यादा प्यार करे[1] । बच्चे राजी होनेसे उनकी माँ भी राजी हो जाती है‒यह सिद्धान्त है । इस तरह ननदको राजी रखना चाहिये । दूसरोंको राजी रखना अपने कल्याणमें कारण है ।

बेटीमें मोह होनेके कारण माँ बेटीको कुछ देना चाहे तो बेटीको नहीं लेना चाहिये । बेटीको माँसे कहना चाहिये कि मेरी भौजाई देगी, तभी मैं लूँगी । अगर तू देगी तो भौजाईको बुरा लगेगा और वह आपसे लड़ेगी तो मैं कलह कराने यहाँ थोड़े ही आयी हूँ ! माँ ! तेरेसे लूँगी तो थोड़े ही दिन मिलेगा, पर भौजाईके हाथसे लूँगी तो बहुत दिनतक मिलता रहेगा । अतः त्यागदृष्टिसे, व्यवहारदृष्टिसे और स्वार्थदृष्टिसे भौजाईके हाथसे लेना ही अच्छा है ।’

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे


[1] बहूको एक नम्बरमें (सबसे अधिक) ननदके बच्चोंको लाड़-प्यार करना चाहिये । ऐसे ही दूसरे नम्बरमें देवरानीके बच्चोंको, तीसरे नम्बरमें जेठानीके बच्चोंको, चौथे नम्बरमें सासके बच्चोंको और पाँचवें नम्बरमें अपने बच्चोंको लाड़-प्यार करना चाहिये ।