प्रश्न‒परिवारमें झगड़ा, कलह, अशान्ति आदि होनेका क्या कारण है ?
उत्तर‒हरेक प्राणी अपने
मनकी कराना चाहता है, अपनी अनुकूलता चाहता है, अपना सुख-आराम
चाहता है, अपनी महिमा चाहता
है, अपना स्वार्थ
सिद्ध करना चाहता है‒ऐसे व्यक्तिगत स्वार्थके कारण ही परिवारमें
झगडा, कलह, अशान्ति आदि होते हैं । जैसे, कुत्ते आपसमें
बड़े प्रेमसे खेलते हैं, पर रोटीका टुकड़ा सामने आते ही लड़ाई शुरू हो जाती है; अतः लड़ाईका कारण
रोटीका टुकड़ा नहीं है, प्रत्युत व्यक्तिगत स्वार्थ है ।
कुटुम्बमें जो
केवल अपना सुख-आराम चाहता है, वह कुटुम्बी नहीं होता, प्रत्युत एक व्यक्ति
होता है । कुटुम्बी वही होता है, जो कुटुम्बमें बड़े, छोटे और समान
अवस्थावाले‒सबका हित चाहता है और हित करता है । अतः जो कुटुम्बमें
शान्ति चाहता है, कलह नहीं चाहता, उसको
अपना कर्तव्य और दूसरोंका अधिकार देखना चाहिये अर्थात् अपने कर्तव्यका पालन करना चाहिये
और दूसरोंका हित करना चाहिये, आदर-सत्कार, सुख-आराम
देना चाहिये ।
प्रश्न‒भाई-भाई आपसमें लड़ें तो माता-पिताको क्या करना चाहिये ?
उत्तर‒माता-पिताको न्यायकी
बात कहनी चाहिये । वे छोटे पुत्रसे कहें कि तुम भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्नको देखो कि
वे रामजीके साथ कैसा बर्ताव करते थे; भीम, अर्जुन आदि अपने
बड़े भाई युधिष्ठिरके साथ कैसा बर्ताव करते थे । बड़े पुत्रसे कहें कि तुम रामजीको देखो
कि उन्होंने अपने छोटे भाइयोंके साथ कैसा बर्ताव किया था[*], और युधिष्ठिर
अपने छोटे भाइयोंके साथ कैसा बर्ताव करते थे । अतः तुम सबलोग उनके चरित्रोंको आदर्श
मानकर अपने आचरणमें लाओ ।
प्रश्न‒बहन-भाई आपसमें लड़ें तो माता-पिताको क्या करना चाहिये ?
उत्तर‒माता-पिताको लड़कीका
पक्ष लेना चाहिये; क्योंकि वह सुवासिनी है, दानकी पात्र है[†], थोड़े दिन रहनेवाली
है; अतः वह आदरणीय
है । लड़का तो घरका मालिक है, घरमें ही रहनेवाला है । लड़केको
एकान्तमें समझाना चाहिये कि ‘बेटा ! बहनका निरादर मत करो ।
यह यहाँ रहनेवाली नहीं है । यह तो अपने घर चली जायगी । तुम तो यहाँके मालिक हो ।’
बहनको
चाहिये कि वह भाईसे कुछ भी आशा न रखे । भाई जितना दे, उसमेंसे
थोड़ा ही ले । उसको यह सोचना चाहिये कि भाईके घरसे लेनेसे हमारा काम
थोड़े ही चलेगा ! हमारा काम तो हमारे घरसे ही चलेगा ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’
पुस्तकसे
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