(गत ब्लॉगसे आगेका)
जैसे बालक माँको मानता है,
ऐसे आप भगवान्को मान लो । इससे आपके जीवनमें फर्क पड़ेगा,
भीतरसे एक बड़ा सन्तोष होगा,
शान्ति मिलेगी । आप रात-दिन नामजप
करो और भगवान्से बार-बार कहो कि ‘हे
नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’ । पाँच मिनटमें, सात मिनटमें, दस मिनटमें, आधे घण्टेमें, एक घण्टेमें कहते रहो कि ‘हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’
। एक घण्टेसे अधिक समय न निकले । निहाल हो जाओगे ! इसमें लाभ-ही-लाभ
है, हानि है ही नहीं । यह सभीके लिये बहुत बढ़िया चीज है । आपका लोक और परलोक सब सुधर
जायगा । भगवान् सुग्रीवसे कहते हैं‒
सखा सोच त्यागहु बल
मोरें ।
सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥
(मानस, किष्किन्धा॰ ७ । ५)
इस तरह भगवान् सब काम करनेको तैयार हैं । आप विचार करके देखो,
भगवान्ने मनुष्यजन्म दिया है,
सत्संग दिया है, सत्संगमें अच्छी-अच्छी बातें दी हैं तो यह हमें उनकी कृपासे
मिला है, अपने उद्योगसे नहीं मिला है । इतना काम जिसने किया है,
वही आगे भी काम करेगा ! हमारे द्वारा प्रार्थना किये बिना,
माँगे बिना जब भगवान्ने अपने-आप इतना दिया है,
तो फिर ‘हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’
ऐसी प्रार्थना करनेपर क्या वे हमें छोड़ेंगे ? अपने-आप कृपा करेंगे
! जरूर कृपा करेंगे !
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हरेक भाई-बहन विचार करे कि यह मकान,
यह कुटुम्ब, ये भोग, ये रुपये हमारे साथ कितने दिन रहनेवाले हैं ?
और भगवान्का आश्रय ले लें तो वह कितने दिन रहनेवाला है ?
भगवान् तो सदाके लिये हमारे साथ रहनेवाले हैं । महान् लाभके लिये थोड़ा लाभ छोड़ना, बड़ी
चीजके लिये छोटी चीज छोड़ना सुगम होता है । एक तरफ हजार रुपये मिलते हों और एक तरफ एक रुपया मिलता हो तो क्या एक रुपया छोड़नेमें
जोर आता है ? आप भगवान्का आश्रय ले लो तो सदाके लिये मौज रहेगी ! ये सांसारिक
वस्तुएँ तो थोड़े दिनोंके लिये हैं और एक दिन याद भी नहीं रहेंगी । अगर याद रहती हों
तो बताओ इस जन्मसे पहले आप कहाँ थे ? आपका कुटुम्ब, रुपये, मकान आदि क्या थे ?
नहीं बता सकते तो यही दशा इस कुटुम्ब,
रुपये, मकान आदिकी होगी ! आप खुद सोचो,
एक सहारा थोड़े दिन रहनेवाला है और एक सहारा सदा रहनेवाला है,
दोनोमें कौन-सा बढ़िया है ?
एक रुपया और हजार रुपये तो एक जातिके (नाशवान्) हैं,
पर संसार और भगवान् एक जातिके नहीं हैं । संसार जड़ तथा नाशवान्
है, पर भगवान् चेतन तथा अविनाशी हैं । संसारका सहारा एकतरफा है । आप उसका सहारा लेते
हो, पर वह आपको सहारा नहीं देता । परन्तु भगवान् सबको सहारा देते हैं‒
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥
(गीता
१८ । ६६)
‘सम्पूर्ण धर्मोंका आश्रय छोड़कर तू केवल मेरी शरणमें आ जा । मैं तुझे सम्पूर्ण पापोंसे
मुक्त कर दूँगा, चिन्ता मत कर ।’
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे |