Nov
01
(गत ब्लॉगसे आगेका)
हम तो भगवान्के पास नहीं पहुँच सकते तो क्या भगवान् भी
हमारे पास नहीं पहुँच सकते ? हम कितना ही जोर लगायें,
पर भगवान्के पास नहीं पहुँच सकते । परन्तु भगवान् तो
हमारे हृदयमें ही विराजमान हैं । द्रौपदीने भगवान्को ‘गोविन्द
द्वारकावासिन्’ कहकर
पुकारा तो भगवान्को द्वारका जाकर आना पड़ा । वह यहाँ कहती तो वे चट यहीं प्रकट हो
जाते ! अगर हम ऐसा मानते हैं कि भगवान् अभी नहीं मिलेंगे तो वे नहीं मिलेंगे; क्योंकि
हमने आड़ लगा दी ।
गोरखपुरकी एक घटना है । संवत् २००० से पहलेकी बात है । मैं
गोरखपुरमें व्याख्यान देता था । वहाँ सेवारामजी
नामके एक सज्जन थे, जो बैंकमें काम करते थे । एक दिन मैंने व्यख्यानमें कह दिया कि अगर आपका दृढ़ विचार हो जाय कि भगवान्
आज मिलेंगे तो वे आज ही मिल जायँगे ! उन सज्जनको यह बात लग गयी
। उन्होंने विचार कर
लिया कि हमें तो आज ही भगवान्से मिलना है । वे पुष्पमाला,
चन्दन आदि ले आये कि भगवान् आयेंगे तो उनको माला पहनाऊँगा,
चन्दन चढाऊँगा ! वे कमरा बन्द करके भगवान्के आनेकी प्रतीक्षामें बैठ गये । समयपर भगवान्के आनेकी सम्भावना भी हो
गयी और सुगन्ध भी आने लगी, पर भगवान् प्रकट नहीं हुए । दूसरे दिन उन्होंने मेरेसे कहा
कि आज आप मेरे घरसे भिक्षा लें । मैं कई घरोंसे भिक्षा लेकर पाता था । उस दिन उनके
घर गया तो उन्होंने मेरेसे पूछा कि भगवान् मिलनेवाले थे,
सुगन्ध भी आ गयी थी,
फिर बाधा क्या लगी कि वे मिले नहीं ?
मैंने कहा कि भाई ! मेरेको इसका क्या पता ? परन्तु मैं तुम्हारेसे पूछता हूँ कि क्या तुम्हारे
मनमें यह बात आती थी कि इतनी जल्दी भगवान् कैसे मिलेंगे ? वे
बोले कि यह बात तो आती थी ! मैंने कहा कि इसी बातने अटकाया ! अगर मनमें यह बात होती कि भगवान् मेरेको अवश्य मिलेंगे, उनको
मिलना ही पड़ेगा तो वे जरूर मिलते । भगवान् ऐसे कैसे जल्दी मिलेंगे—ऐसा
भाव करके तुमने ही बाधा लगायी है ।
अगर आप
विचार कर लें कि भगवान् आज मिलेंगे तो वे आज ही मिल जायँगे ! परन्तु
मनमें यह छाया नहीं आनी चाहिये कि इतनी जल्दी कैसे मिलेंगे ?
भगवान् आपके कर्मोंसे अटकते नहीं । अगर आपके दुष्कर्मसे,
पापकर्मसे भगवान् अटक जायँ तो वे मिलकर भी क्या निहाल
करेंगे ? परन्तु भगवान् किसी कर्मसे अटकते नहीं । ऐसी कोई शक्ति है ही नहीं, जो
भगवान्को मिलनेसे रोक दे । वे न तो
पापकर्मोंसे अटकते हैं, न पुण्यकर्मोंसे अटकते हैं । वे सबके लिये सुलभ हैं । अगर भगवान् हमारे पापोंसे अटक जायँ तो हमारे पाप भगवान्से
प्रबल हुए ! अगर पाप प्रबल (बलवान्) हैं तो भगवान् मिलकर भी क्या निहाल करेंगे ?
जो पापोंसे अटक जाय,
उसके मिलनेसे क्या लाभ ?
परन्तु भगवान् इतने निर्बल नहीं हैं,
जो पापोंसे अटक जायँ । उनके समान बलवान् कोई है नहीं,
हुआ नहीं, होगा नहीं, हो सकता ही नहीं । आपकी जोरदार
इच्छा हो जाय तो आप कैसे ही हों,
भगवान् तो मिलेंगे, मिलेंगे, मिलेंगे ! उनको मिलना पड़ेगा, इसमें सन्देह नहीं है । परमात्माकी प्राप्तिके लिये ही तो
मानवजन्म मिला है, नहीं तो पशुमें और मनुष्यमें क्या
फर्क हुआ ?
खादते मोदते नित्यं शुनकः शूकरः
खरः ।
तेषामेषां को विशेषो वृत्तिर्येषां तु
तादृशी ॥
........
......... ..........
सूकर कूकर ऊँट खर,
बड़ पशुअन में
चार ।
तुलसी हरि की भगति बिनु, ऐसे
ही नर नार ॥
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
—‘मानवमात्रके कल्याणके लिये’ पुस्तकसे
|