Nov
02
(गत ब्लॉगसे आगेका)
देवता भोगयोनि है । वे भी चाहते हैं कि भगवान् हमारेको मिलें—‘देवा अप्यस्य रूपस्य नित्यं दर्शनकाङ्क्षिणः’ (गीता ११/५२) । वे भगवान्को चाहते तो हैं, पर भोगोंकी इच्छाको नहीं छोडते । यही दशा मनुष्योंकी है । अगर आप हृदयसे भगवान्को चाहो तो उनको मिलना ही पड़ेगा, इसमें
सन्देह नहीं है । पर आप ही बाधा लगा दो कि भगवान् नहीं मिलेंगे, तो
फिर वे नहीं मिलेंगे ! गीतामें साफ
लिखा है—
अपि चेत्सुदुराचारो
भजते मामनन्यभाक् ।
साधुरेव स मन्तव्यः
सम्यग्व्यवसितो हि सः ॥
क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति ।
कौन्तेय प्रतिजानीहि
न मे भक्तः प्रणश्यति ॥
(९/३०-३१)
‘अगर कोई दुराचारी-से-दुराचारी भी अनन्य भक्त होकर मेरा भजन करता है तो उसको साधु
ही मानना चाहिये । कारण कि उसने निश्चय बहुत अच्छी तरह कर लिया है ।’
‘वह तत्काल (उसी क्षण) धर्मात्मा हो जाता है और निरन्तर रहनेवाली शान्तिको प्राप्त
हो जाता है । हे कुन्तीनन्दन ! मेरे भक्तका पतन नहीं होता—ऐसी तुम प्रतिज्ञा करो ।’
तात्पर्य है कि दुराचारी-से-दुराचारी मनुष्य भी यदि ‘अनन्यभाक्’ हो जाय अर्थात् भगवान्के सिवाय कोई चाहना न रखे तो उसको भी साधु मान लेना चाहिये;
क्योंकि उसने निश्चय पक्का कर लिया है कि भगवान् जरूर मिलेंगे
।
आप केवल भगवान्की ही इच्छा करो, और
कोई इच्छा मत करो । न जीनेकी
इच्छा करो, न मरनेकी इच्छा करो । न मानकी इच्छा करो,
न बड़ाईकी इच्छा करो । न भोगोंकी इच्छा करो,
न रुपयोंकी इच्छा करो । केवल एक भगवान्की इच्छा करो तो वे मिल
जायँगे । कम-से-कम मेरी बातकी परीक्षा तो करके देखो ! भगवान् आपको मिलते नहीं; क्योंकि आप उनको चाहते
नहीं । आपके भीतर रुपयोंकी चाहना हो तो भगवान् बीचमें कूदकर क्यों पड़ेंगे ?
संसारमें सबसे रद्दी वस्तु रुपया है । रुपयोंसे रद्दी चीज दूसरी
कोई है ही नहीं । ऐसी रद्दी चीजमें आपका मन अटका हुआ हो तो भगवान् कैसे मिलेंगे ?
रुपये देकर आप भोजन,
वस्त्र, सवारी आदि खरीद सकते हो,
पर रुपया खुद न तो खानेके काम आता है,
न पहननेके काम आता है,
न सवारीके काम आता है । तात्पर्य है
कि रुपये काम नहीं आते, प्रत्युत उनका खर्च काम आता है ।
परमात्मा इच्छामात्रसे मिलते हैं । उनको रोकनेकी
ताकत किसीमें भी नहीं है । छोटा बालक रोता है तो माँ आ ही जाती है । बालक घरका कुछ काम नहीं करता,
उल्टे काम करनेमें आपको बाधा लगाता है,
पर जब वह रोने लगता है,
तब सब घरवाले उसके पक्षमें हो जाते हैं । सास-ससुर,
देवर-जेठ सभी कहते हैं कि बहू ! बालक रो रहा है,
उसको उठा ले । माँको सब काम छोड़कर बालकको उठाना पडता है । बालकका
एकमात्र बल रोना ही है—‘बालानां रोदनं बलम्’ । रोनेमें बड़ी ताकत है । आप सच्चे
हृदयसे व्याकुल होकर भगवान्के लिये रोने लग जाओ तो जितने भगवान्के भक्त हुए हैं, सन्त-महात्मा
हुए हैं, वे सब-के-सब आपके पक्षमें हो जायँगे और भगवान्को
उलाहना देंगे कि आप मिलते क्यों नहीं ?
वे ही भगवान्के सास-ससुर आदि हैं !
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
—‘मानवमात्रके कल्याणके लिये’ पुस्तकसे
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