।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
     पौष शुक्ल चतुर्दशी, वि.सं.-२०७४, सोमवार  
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोताहमारा कोई अपमान करता है तो उसके प्रति द्वेष पैदा हो जाता है और हमारे मनपर बहुत बुरा असर पड़ता है । इससे बचनेका क्या उपाय है ?

स्वामीजीजो निन्दा, अपमान करता है, वह आपके पापोंका नाश करता है । अपने शरीर-मन-इन्द्रियोंके प्रतिकूल जो परिस्थिति आती है, उससे पापोंका नाश होता है । यह एकदम पक्की बात है । आप सुख भोगते हो, उससे पुण्योंका नाश होता है । आप खुद विचार करो कि दुःख पुण्यका फल है क्या ? जो हमारे पापोंका नाश करता है, वह तो अपना नुकसान सहकर भी हमारा उपकार करता है ! अतः हमारी निन्दा करनेवाला वास्तवमें हमारा भला करनेवाला है, इस बातको आप दृढ़तासे समझ लो तो दुःख नहीं होगा, उल्टे आनन्द आयेगा !

               मन्निन्दया यदि जनः परितोषमेति
                   नन्वप्रयत्नसुलभोऽयमनुग्रहो मे ।
              श्रेयोऽर्थिनो हि पुरुषाः परतुष्टिहेतो-
                            र्दुःखार्जितान्यपि धनानि परित्यजन्ति ॥
                                                        (जीवन्मुक्तिविवेक २)

‘मेरी निन्दासे यदि किसीको सन्तोष होता है, तो बिना प्रयत्नके ही मेरी उनपर कृपा हो गयी; क्योंकि कल्याण चाहनेवाले पुरुष तो दूसरोंके सन्तोषके लिये अपने कष्टपूर्वक कमाये हुए धनका भी परित्याग कर देते हैं (मुझे तो कुछ करना ही नहीं पड़ा) !

निंदक नेड़ा  राखियै,   आंगणि   कुटी   बंधाइ ।
बिन साबण पाणी बिना, निरमल करै सुभाइ ॥

‘अपने निन्दकको अपने पास ही आँगनमें छप्पर डालकर रखना चाहिये; क्योंकि वह बिना साबुन और पानीके ही हमें सहजरूपसे निर्मल कर देता है ।

इसलिये अपमान करनेवालेका उपकार मानना चाहिये और छिपकर अर्थात् उसको मालूम न पड़े, इस तरहसे उसका उपकार करना चाहिये, उसकी सहायता करनी चाहिये ।

हमें जो दुःख होता है, वह हमारी बेसमझीसे होता है । बेसमझीसे होनेवाला दुःख समझनेसे मिट जाता है । सत्संगसे बातें जाननेमें आती हैं, और जाननेमें आनेसे दुःख मिट जाता है; क्योंकि अनजानपनेमें दुःख होता है, जाननेसे मिट जाता है ।

आपके पापोंका नाश हो जाय तो इसमें हानि क्या है ? इसमें लाभ-ही-लाभ है । इसमें आप निर्भय रहो । प्रशंसा हो, वाह-वाह हो, उसमें हानि है, खतरा है ! जितने सन्त हुए हैं, वे प्रायः दुःखदायी परिस्थिति आनेसे सन्त हुए हैं ।

हमारे मनके प्रतिकूल कोई निन्दा-अपमान करे तो हमारा फायदा होता है या नुकसान, आप बताओ ?

श्रोताफायदा तो होता है, पर समझमें नहीं आता !

स्वामीजीसमझमें नहीं आता तभी तो मेरेको कहना पड़ता है ! अगर आपके समझमें बात आ जाती तो मेरेको कहना क्यों पड़ता ?

बहुत वर्ष पहलेकी बात है । हमारे गुरु महाराजका शरीर शान्त हो गया । उसको जलानेको गये तो जलाते समय मेरे आँसू आ गये ! मेरे मनमें यह बात आयी कि लोग पूछेंगे कि क्या तुम्हारे गुरुजी हैं तो हम क्या कहेंगे ! इतनी बात मनमें आते ही आँसू आ गये । तब हमारे गुरुभाई रामधनजी बोले‘अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांक्ष..... (गीता २ । ११) । यह सुनते ही आँसू सूख गये ! तात्पर्य है कि जब बात समझमें आ जाय तो शोक मिट जाता है । आप सत्संग क्यों करते हो ? ऐसी बातें जाननेके लिये ही तो सत्संग करते हो ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे