।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
     माघ कृष्ण दशमी, वि.सं.-२०७४, गुरुवार
                   एकादशी-व्रत कल है   
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

मैंने दो बातें आपको कही हैंएक तो ‘हम परमात्माके अंश हैं’, और एक ‘यह संसार भगवत्स्वरूप है। ये दोनों बातें बड़ी विलक्षणतासे ऐसे कही हैं कि हरेकके समझमें आ जाय । ऐसी सुगम बातें मिलनेपर भी अगर कल्याण नहीं करते हैं तो क्या दशा होगी ! ऐसी बातें आपको हरेक जगह, व्याख्यानमें, सत्संगमें मिलेंगी नहीं ! इसलिये यहाँका सत्संग किये हुए, ठीक समझे हुए व्यक्ति दूसरे सत्संगमें ठहर नहीं सकते । यह बात मैं अपनी तरफसे नहीं कहता हूँ प्रत्युत दूसरोंसे सुनकर कहता हूँ ।

संसार तो अपनी भावनासे है, वास्तवमें हम सब-के-सब ही हरदम परमपिता परमेश्वरकी गोदमें बैठे हैं । पृथ्वी भगवान्की गोद है । आप कृपा करके इतनी बात याद रखो । करना कुछ नहीं है, केवल याद रखना है । हम भगवान्की गोदमें बैठे हैं, हमारेपर भगवान्की दृष्टि है, हमारेपर भगवान्का हाथ है । हरदम आनन्द-ही- आनन्द है ! बालक रोता है तो अपनी मूर्खतासे रोता है । अगर वह माँकी गोदीमें रोता है तो फिर हँसेगा कहाँ ? माँकी गोद तो आनन्द देनेवाली है । जैसे बालक बेसमझ होता है, ऐसे ही हम भी बेसमझ हैं । भूमि भगवान्की प्रकृति होनेसे भगवान्का स्वरूप है‘भूमिरापोऽनलो वायुः’ (गीता ७ । ४) हम रात-दिन भगवान्की ही गोदीमें बैठे हैं । कितने आनन्दकी बात है !

जब लक्ष्मणजी वनवासकी आज्ञा लेनेके लिये माँ सुमित्राके पास गये तो माँने कहा

रामं दशरथ विद्धि मां विद्धि जनकात्मजाम् ।
अयोध्यामटवीं विद्धि गच्छ तात यथासुखम् ॥
                                                     (वाल्मीकि अयोध्या ४० । ९)

‘बेटा ! तुम श्रीरामको ही अपने पिता महाराज दशरथ समझो, जनकनन्दिनी सीताको ही अपनी माता समझो और वनको ही अयोध्या समझो । इस प्रकार समझकर तुम सुखपूर्वक प्रस्थान करो ।

जहाँ रामजी रहते हैं, वहीं अयोध्या है‘अवध तहाँ जहँ राम निवासू’ (मानस, अयोध्या ७४ । २) इसलिये जब माताएँ रामजीसे मिलीं, तब गोस्वामीजीने कहा कि जैसे गाय बछड़ेको छोड़कर जंगलमें चरने गयी हों और दिनका अन्त होनेपर बछड़ेसे मिलनेके लिये नगरकी तरफ दौड़कर आती हैं, ऐसे माताएँ रामजीकी तरफ दौड़कर आयीं ।

जनु धेनु बालक बच्छ तजि गृहँ चरन बन परबस गईं ।
दिन अंत पुर रुख स्रवत थन  हुंकार करि धावत भईं ॥
                                        (मानस, उत्तर छन्द ६)

विचार करें, जंगलमें गाय गयी कि बछड़ा गया ? जंगलमें तो बछड़ा (राम) गया । इसका तात्पर्य यह हुआ कि जहाँ रामजी हैं, वहाँ अयोध्या है । रामजी वनमें चले गये तो पीछे अयोध्या जंगल हो गयी !


माता सुमित्राने लक्ष्मणजीसे कहा कि वनमें भी सीतारामके रूपमें माता-पिता तुम्हारे साथ हैं । जब माता-पिता साथमें हों तो फिर बालकको और क्या चाहिये ? ऐसे ही आप सदा ही माता-पिताकी गोदमें हैं ! आपको सदा आनन्दमें, हरदम प्रसन्न रहना चाहिये ! भगवान्की स्मृति समस्त विपत्तियोंका नाश करनेवाली है‘हरिस्मृतिः सर्वविपद्विमोक्षणम्’ ( श्रीमद्भा ८ । १० । ५५) उस भगवान्की गोदीमें हम हरदम रहते हैं । गोदीमें रहेंगे तो उनकी याद अपने-आप आयेगी । केवल याद रखो कि हम भगवान्की गोदीमें हैं ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे