।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
     माघ कृष्ण नवमी, वि.सं.-२०७४, बुधवार  
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

मनुष्यशरीर केवल परमात्माकी प्राप्तिके लिये मिला है । हमारे मनमें बड़ा विचार आता है कि मनुष्यशरीर प्राप्त करके भी भगवान्की प्राप्ति नहीं की तो क्या दशा होगी ! बड़ी दुर्दशा होगी ! इसलिये भाई-बहनोंसे कहना है कि आप विचार कर लो कि हमें भगवान्की प्राप्ति जरूर करनी है । मैं बालकपनेसे इधर लगा हूँ और मेरेको कई तरहकी बातें मिली हैं, कई तरहके उदाहरण मिले हैं । वेदान्तकी पढ़ाई भी मैंने परमात्मप्राप्तिके लिये ही की । पर उससे भी प्राप्ति नहीं हुई । अब मुझे ऐसी बातें मिली हैं, जिनसे बहुत सुगमतासे प्राप्ति हो सकती है । आपलोग मुक्ति प्राप्त करनेके लिये ही यहाँ आये हो, गंगाजीके तटपर रहते हो, सेठजीके स्थानमें रहते हो । इतनेपर भी अगर प्राप्ति नहीं की तो यह बड़ी भारी हानिकी बात है !


योगवासिष्ठमें ईश्वरका वर्णन नहीं है । उसके विषयमें सेठजी (श्रीजयदयालजी गोयन्दका)-ने सेवारामजी महाराज और मेरे सामने कहा था कि योगवासिष्ठके रचयिता या तो भगवान्की बात जानते नहीं थे अथवा उन्होंने लिखा नहीं । पंचदशी आदि वेदान्तके ग्रन्थोंमें ईश्वरको कल्पित बताया गया है । एक दिन सेठजी जंगलमें बैठे थे और लेख लिखा रहे थे । उनके पास घनश्यामजी तथा एक-दो और व्यक्ति थे । मैं भी था । उस समय सेठजीने कहा कि आजकल जिन (वेदान्तके) शास्त्रोंकी बातें पढ़ते हैं, उनमें ईश्वरको कल्पित बताया गया है ! अगर मेरेपर भगवान्की विशेष कृपा न होती तो मैं ईश्वरको कल्पित कहनेवालोंसे कम नहीं होता, मैं भी वैसा ही होता । भगवान्की विशेष कृपा (दर्शन) होनेसे मैं वैसा नहीं बना । अतः मेरेपर भी विशेष कृपा हुई है और आपलोग जो इधर आ गये तो आपपर भी विशेष कृपा हुई है ! परन्तु अब उससे भी विशेष कृपा है ! सेठजीने जो बातें बतायीं हैं, उनसे भी सुगम ऐसी बातें हैं कि बहुत सुगमतासे भगवत्प्राप्ति हो जाय ! ऐसा मौका मिला है कि बहुत जल्दी कल्याण हो जाय ! ऐसे मौकेपर भी अगर भगवत्प्राप्ति नहीं की तो कब करेंगे ? फिर कब मौका मिलेगा, पता है ? ऐसा सत्संग मिलता नहीं है । मैंने वर्षोंतक पढ़ाई की है, ऐसी बातें मिलती नहीं । ऐसी बातें मिलनेपर भी अपना उद्धार नहीं करेंगे तो क्या दशा होगी ! परमात्माकी प्राप्तिका बहुत विशेष अवसर मिला है । ऐसा अवसर मिलता नहीं ! इस विषयमें खोज करते मेरे बहुत दिन गये हैं । कम-से-कम मेरे व्याख्यानको सुनकर तो आपको विशेष ध्यान आना चाहिये कि आजसे पाँच-सात वर्ष पहले, दस वर्ष पहले, पन्द्रह वर्ष पहले, बीस वर्ष पहले, तीस-चालीस वर्ष पहले ऐसी बातें नहीं थीं । मेरे व्याख्यानसे आपलोगोंको होश होना चाहिये कि पहले कैसी बातें कहता था, आजकल कैसी बातें कहता हूँ । मेरी बातोंमें प्रतिवर्ष फर्क पड़ता है । पिछले वर्षकी अपेक्षा इस वर्ष ज्यादा फर्क पड़ा है ! पहले ‘गीता साधक-संजीवनीलिखी, उसके बाद ‘परिशिष्टलिखा । परिशिष्ट लिखनेके बाद फिर बातें आ रही हैं । अब एक टीका और लिखनेकी मनमें आ रही है ! मैं अठारह वर्षकी उम्रसे व्याख्यान दे रहा हूँ । मेरे यह लगन लगी हुई है कि पारमार्थिक उन्नति जल्दी तथा सुगमतासे कैसे हो ? मैं इसकी खोजमें लगा हुआ हूँ । मेरी खोज अभीतक मिटी नहीं है !

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे