(गत ब्लॉगसे आगेका)
मनुष्यशरीर केवल परमात्माकी प्राप्तिके लिये मिला है ।
हमारे मनमें बड़ा विचार आता है कि मनुष्यशरीर प्राप्त करके
भी भगवान्की प्राप्ति नहीं की तो क्या दशा होगी !
बड़ी दुर्दशा होगी ! इसलिये भाई-बहनोंसे
कहना है कि आप विचार कर लो कि हमें भगवान्की प्राप्ति जरूर करनी
है । मैं बालकपनेसे इधर लगा हूँ और मेरेको कई तरहकी बातें मिली हैं, कई तरहके उदाहरण मिले हैं । वेदान्तकी पढ़ाई भी मैंने परमात्मप्राप्तिके लिये
ही की । पर उससे भी प्राप्ति नहीं हुई । अब मुझे ऐसी बातें मिली हैं, जिनसे बहुत सुगमतासे प्राप्ति हो सकती है । आपलोग मुक्ति प्राप्त करनेके लिये
ही यहाँ आये हो, गंगाजीके तटपर रहते हो, सेठजीके स्थानमें रहते हो । इतनेपर भी अगर प्राप्ति नहीं की तो यह बड़ी भारी
हानिकी बात है !
योगवासिष्ठमें ईश्वरका वर्णन नहीं है । उसके विषयमें सेठजी (श्रीजयदयालजी गोयन्दका)-ने सेवारामजी महाराज और मेरे सामने कहा था कि योगवासिष्ठके रचयिता या तो भगवान्की बात जानते नहीं थे अथवा उन्होंने लिखा नहीं । पंचदशी आदि वेदान्तके ग्रन्थोंमें
ईश्वरको कल्पित बताया गया है । एक दिन सेठजी जंगलमें बैठे थे और लेख लिखा रहे थे ।
उनके पास घनश्यामजी तथा एक-दो और व्यक्ति थे । मैं भी था । उस
समय सेठजीने कहा कि आजकल जिन (वेदान्तके) शास्त्रोंकी बातें पढ़ते हैं, उनमें ईश्वरको कल्पित बताया
गया है ! अगर मेरेपर भगवान्की विशेष कृपा
न होती तो मैं ईश्वरको कल्पित कहनेवालोंसे कम नहीं होता, मैं
भी वैसा ही होता । भगवान्की विशेष कृपा (दर्शन) होनेसे मैं वैसा नहीं बना । अतः मेरेपर भी विशेष
कृपा हुई है और आपलोग जो इधर आ गये तो आपपर भी विशेष कृपा हुई है ! परन्तु अब उससे भी विशेष कृपा है ! सेठजीने जो बातें
बतायीं हैं, उनसे भी सुगम ऐसी बातें हैं कि बहुत सुगमतासे भगवत्प्राप्ति
हो जाय ! ऐसा मौका मिला है कि बहुत जल्दी
कल्याण हो जाय ! ऐसे मौकेपर भी अगर
भगवत्प्राप्ति नहीं की तो कब करेंगे ? फिर कब मौका मिलेगा,
पता है ? ऐसा सत्संग मिलता नहीं है । मैंने
वर्षोंतक पढ़ाई की है, ऐसी बातें मिलती नहीं । ऐसी बातें मिलनेपर भी अपना उद्धार नहीं करेंगे तो क्या दशा होगी
! परमात्माकी प्राप्तिका बहुत
विशेष अवसर मिला है । ऐसा अवसर मिलता नहीं ! इस विषयमें
खोज करते मेरे बहुत दिन गये हैं । कम-से-कम मेरे व्याख्यानको सुनकर तो आपको विशेष ध्यान आना चाहिये कि आजसे पाँच-सात वर्ष पहले, दस वर्ष पहले, पन्द्रह
वर्ष पहले, बीस वर्ष पहले, तीस-चालीस वर्ष पहले ऐसी बातें नहीं थीं । मेरे व्याख्यानसे आपलोगोंको होश होना
चाहिये कि पहले कैसी बातें कहता था, आजकल कैसी बातें कहता हूँ
। मेरी बातोंमें प्रतिवर्ष फर्क पड़ता है । पिछले वर्षकी अपेक्षा
इस वर्ष ज्यादा फर्क पड़ा है ! पहले ‘गीता साधक-संजीवनी’ लिखी,
उसके बाद ‘परिशिष्ट’ लिखा । परिशिष्ट लिखनेके बाद
फिर बातें आ रही हैं । अब एक टीका और लिखनेकी मनमें आ रही है ! मैं अठारह वर्षकी उम्रसे व्याख्यान दे रहा हूँ । मेरे
यह लगन लगी हुई है कि पारमार्थिक उन्नति जल्दी तथा सुगमतासे कैसे हो ? मैं इसकी खोजमें लगा हुआ हूँ । मेरी खोज अभीतक
मिटी नहीं है !
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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