।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
     माघ कृष्ण अष्टमी, वि.सं.-२०७४, मंगलवार  
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोताशास्त्रविहित कर्तव्य कर्म करें या भगवान्का स्मरण करें ?

स्वामीजीइसका तात्पर्य कर्तव्य कर्म छोड़नेमें नहीं है, प्रत्युत भगवान्के स्मरणको सबसे अधिक मुख्यता देनेमें है । संसारके जितने भी काम हैं, सब-के-सब एक दिन बिगड़ेंगे ही, आप चाहे कितना ही सुधार कर लो ! पर भगवान्का स्मरण कभी बिगड़ेगा नहीं । संसारका काम सुधर गया तो भी बिगड़ गया, बिगड़ गया तो भी बिगड़ गया ! वह तो बिगड़ा हुआ ही है । भगवत्प्राप्ति कर लो तो सब काम ठीक हो जायगा । मनुष्यजन्म सफल हो जायगा । सब कर्तव्योंका मूल कर्तव्य हैभगवान्का स्मरण करना । भगवान्के स्मरणके आगे सब कर्तव्य कर्म गौण हैं । आप स्वयं विचार करो, कहनेसे बात समझमें नहीं आती ।

आप कर्तव्य कर्मका बहाना लगाते हो, पर वास्तवमें अपनी आयुका नाश कर रहे हो ! आपने कर्तव्यको समझा ही नहीं । असली कर्तव्य वह है, जिससे संसारसे ऊँचा उठ जाय । कर्मयोगसे मनुष्य संसारसे ऊँचा उठ जाता है । क्या आप कर्तव्य कर्म करनेसे संसारसे ऊँचा उठ गये ? क्या पैसोंमें, बच्चोंमें, स्त्री आदिमें आपका मन नहीं जाता ? क्या पैसोंके लिये झूठ-कपट नहीं करते ? कर्तव्य कर्म करनेसे मनुष्य संसारसे ऊँचा उठ जाता है । उसको शान्ति मिल जाती है ।

श्रोताकोई बीमार हो तो क्या उसकी सेवा छोड़कर भगवान्का भजन करना चाहिये ?

स्वामीजीमैं भगवान्की सेवा करता हूँऐसा समझकर बीमारकी सेवा करो तो क्या बाधा लगी ? घरका काम भी भगवान्का काम समझकर करो । भगवान् कहते हैं

यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत् ।
यत्तपस्यसि  कौन्तेय   तत्कुरुष्व  मदर्पणम् ॥
                                            (गीता ९ । २७)

‘हे कुन्तीपुत्र ! तू जो कुछ करता है, जो कुछ भोजन करता है, जो कुछ यज्ञ करता है, जो कुछ दान देता है और जो कुछ तप करता है, वह सब मेरे अर्पण कर दे ।

श्रोतामाताओ-बहनोंको शिवलिंगकी पूजा करनी चाहिये या नहीं ?

स्वामीजीनहीं करनी चाहिये । एक विधि होती है, एक प्रेम होता है । प्रेमसे लड़कियोंने शंकरका पूजन किया तो भगवान् प्रकट हो गये ! ऐसा शिवपुराण और स्कन्दपुराणमें आता है । जहाँ भाव होता है, वहाँ विधि-निषेध नहीं होता ।

श्रोतामाताओं-बहनोंको गायत्री-मन्त्र बोलना चाहिये या नहीं ?

स्वामीजीनहीं बोलना चाहिये । जिसका जनेऊ नहीं है, उस ब्राह्मणको भी गायत्री-मन्त्र बोलनेका अधिकार नहीं है ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे