।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
     माघ कृष्ण सप्तमी, वि.सं.-२०७४, सोमवार  
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोताकोई आदमी गलत काम करता हो तो क्या उसको हम भगवान्का विधान मानकर सहन कर लें ?

स्वामीजीअपनी शक्ति हो तो विरोध करो । शक्ति नहीं हो तो क्या करोगे, बताओ ! क्या यह आपके अधीन है ? विदेशमें एक जगह युद्ध हो रहा था । वहाँ घोड़ेपर चढ़ी हुई एक स्त्री कहती है कि ‘इस युद्धमें मेरी सम्मति नहीं है। इसके सिवाय और क्या कर सकते हैं ? गीताप्रेसके एक ट्रस्टी थेमोहनलालजी पटवारी । वे कहते थे कि आपकी सम्मति यह है और हमारी सम्मति यह है, पर हम राजी आपकी सम्मतिमें हैं ! अपनी सम्मति देनेका सबको अधिकार है, इसलिये अपनी सम्मति देते हैं, पर राजी आपकी सम्मतिमें हैं । कितनी बढ़िया बात है ! शक्ति हो तो उलटफेर कर दो, नहीं तो राजी हो जाओ ।

परमात्मप्राप्तिको लोगोंने कठिन माना है, पर वास्तवमें वह अपना घर है । अपने घर जानेमें क्या संकोच ? हम ईश्वरके अंश हैं । फिर ईश्वरकी गोदमें जानेमें संकोचकी क्या बात है ? परमात्माको प्राप्त करना अपने असली घर जाना है । वह घर कहाँ है ? जहाँ आप बैठे हो, वहीं है ! जबतक आप परमात्माको नहीं पहचानते, तबतक आप मुसाफिरीमें हैं । परमात्माके घरको पहचान लोगे तो फिर उस घरको छोड़कर जा सकते ही नहीं । उसको छोड़नेकी किसीकी ताकत नहीं ! छोड़कर कहाँ जायगा ?

नीतिमें एक वचन आता है‒

शतं  विहाय  भोक्तव्यं    सहस्त्रं   स्नानमाचरेत् ।
लक्षं विहाय दातव्यं कोटिं त्यक्त्वा हरिं स्मरेत् ॥

‘सौ काम छोड़कर भोजन करना चाहिये, हजार काम छोड़कर स्नान करना चाहिये, लाख काम छोड़कर दान करना चाहिये और करोड़ काम छोड़कर भगवान्का स्मरण करना चाहिये ।


तात्पर्य है कि करोड़ काम बिगड़ते हों तो बिगड़ने दो, पर भगवान्का स्मरण नहीं छोड़ना चाहिये । अतः भगवान्का स्मरण करना सबसे मुख्य रहा ! वह नहीं करोगे तो जन्म-मरण कैसे छूटेगा ? इसके बिना मनुष्यजन्मका क्या मतलब हुआ ? विचार करो, क्या आपने करोड़ काम छोड़कर भगवान्का स्मरण किया है ? क्या आपने भगवान्के स्मरणको ऐसी मुख्यता दी है ? पारमार्थिक उन्नतिके लिये आपने कितने काम छोड़े हैं ? आपने इतने वर्ष सत्संग किया, पर सत्संगका आदर कितना किया है ? कोई पूछे कि आज सत्संगमें आये नहीं, तो कहेंगे कि आनेवाले ही थे कि जरूरी काम पड़ गया ! आज जरूर आना ही था, पर वकीलसे मिलना था, वहाँ चले गये ! आज आना ही था, पर बैठे-बैठे नींद आ गयी ! इसका तात्पर्य हुआ कि कोई काम नहीं हो, निरर्थक समय हो तो सत्संग करें !! सत्संग सबसे रद्दी हुआ ! अन्य काम मुख्य हुए, सत्संग गौण हुआ । पर विचार यह करते हैं कि हम इतने वर्षोंसे सत्संग करते हैं ! आप कैसे कह सकते हैं कि हम इतने वर्षोंसे लगे हैं, अभीतक परमात्माकी प्राप्ति नहीं हुई ! कहनेका अधिकार ही नहीं है । आप सत्संगको जितनी मुख्यता दोगे, उतना लाभ जरूर होगा । हम जितना आदर करते हैं, उसकी अपेक्षा भगवान्की कृपा विशेष है

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे