।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
     माघ कृष्ण षष्ठी, वि.सं.-२०७४, रविवार  
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोताआप कहते हैं कि सब कुछ भगवान् ही हैं, किसीसे राग-द्वेष मत करो, पर यह बात व्यवहारमें ठीक नहीं बैठती ! बिना चाहे राग-द्वेष हो ही जाता है ! इसका उपाय क्या है ?

स्वामीजीआप राग-द्वेषसे दुःखी हो जायँइतना ही आपका काम है । आपके भीतर यह होना चाहिये कि मैं राग-द्वेषको चाहता नहीं । भगवान्ने कहा है‘तयोर्न वशमागच्छेत्’ (गीता ३ । ३४) राग-द्वेषके वशमें नहीं होना चाहिये । तात्पर्य है कि राग-द्वेष हो जायँ तो घबराओ मत, पर इनके वशीभूत होकर क्रिया मत करो । राग-द्वेषके वशीभूत होकर काम कर बैठते हैं, इससे बहुत नुकसान होता है । इसलिये इनके वशीभूत नहीं होना है, इतना ही काम है । राग-द्वेषके अनुसार काम नहीं करोगे तो ये अपने-आप कमजोर हो जायँगे । कभी इनके वशीभूत हो भी जाय तो एक समयका उपवास कर लो । ज्यादा हो जाय तो पूरा दिन उपवास कर लो । साधारण रीतिसे यह उसका उपाय है । आप करके देखो, राग-द्वेष कम हो जायँगे ।

श्रोतावासुदेव: सर्वम्की दृष्टि होनेपर हमें सब जगह चतुर्भुजरूपसे भगवान्के दर्शन होंगे या द्विभुजरूपसे दर्शन होंगे ?

स्वामीजीनिराकार ‘है’‒रूपसे दर्शन होगे । आपका स्वरूप भी निराकार है । भगवान् कहाँ रहते हैं, क्या करते हैं, कैसे करते हैं आदि बातोंको छोड़ दो । वे कहीं भी रहें, कुछ भी करें, वे ‘हैं’ । ‘हैमें सन्देह मत करो । इससे ज्यादा जाननेकी जरूरत नहीं । वह द्विभुजी है कि चतुर्भुजी है, साकार है कि निराकार है, सगुण है कि निर्गुण है, जैसा भी है, पर वह ‘है’इसमें सन्देह नहीं । वह सम्पूर्ण प्राणियोंका परम सुहद् है । भगवान् हैं और वे हमारे हैंइतनी दृढ़ता रखो । इससे ज्यादा विचार करनेकी जरूरत नहीं । उसको जाननेकी अपनी शक्ति नहीं है ।

अगर राग-द्वेष हो जायँ तो यह मत समझो कि हमारा भगवान्से सम्बन्ध नहीं रहा । राग-द्वेषको मिटाओ, भगवान्का सम्बन्ध मत मिटाओ । भगवान्के सम्बन्धको मुख्य रखो और राग-द्वेषको गौण रखो । ऐसा समझो कि राग-द्वेष हो गये तो इसमें मेरी गलती है, पर भगवान्के साथ मेरा सम्बन्ध हैइसमें सन्देह नहीं । फिर सब ठीक हो जायगा ।

श्रोतापहले भगवान्का अनुभव हो, तब उनपर विश्वास करें । अनुभवके बिना भगवान्पर विश्वास कैसे करें ?

स्वामीजीपहले विश्वास करना होगा । आप बताओ, विश्वास नहीं करोगे तो क्या करोगे ? संसारमें भी पहले विश्वास करते हो, फिर काम होता है । आप दूकानदारसे वस्तु भी लेते हैं तो पैसा पहले देते हैं, पीछे वस्तु लेते हैं । फिर भगवान्पर पहले विश्वास करनेमें क्या बाधा है ? पहले विश्वास किये बिना आप जी नहीं सकते, रोटी नहीं खा सकते ! विश्वास किये बिना रोटी कैसे खाओगे कि इसमें जहर है कि क्या है ! पहले विश्वास करोगे, पीछे रोटी खाओगे । हरेक काममें आप पहले विश्वास करते हो, फिर भगवान्ने क्या अपराध किया ? आप संसारपर विश्वास करते हो, जो विश्वासके लायक नहीं है । फिर जो विश्वासके लायक है, उसपर विश्वास करनेमें क्या हर्ज है ? संसारमें समझदारीसे काम करो । करनेमें सावधान, होनेमें प्रसन्न !

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे