(गत ब्लॉगसे आगेका)
श्रोता‒आप कहते हैं कि सब कुछ भगवान् ही हैं, किसीसे राग-द्वेष
मत करो, पर यह बात व्यवहारमें ठीक नहीं बैठती ! बिना चाहे राग-द्वेष हो ही जाता है ! इसका उपाय क्या है ?
स्वामीजी‒आप राग-द्वेषसे
दुःखी हो जायँ‒इतना ही आपका काम है । आपके भीतर यह होना चाहिये
कि मैं राग-द्वेषको चाहता नहीं । भगवान्ने कहा है‒‘तयोर्न वशमागच्छेत्’ (गीता ३ । ३४) राग-द्वेषके
वशमें नहीं होना चाहिये । तात्पर्य है कि राग-द्वेष हो जायँ तो
घबराओ मत, पर इनके वशीभूत होकर क्रिया मत करो । राग-द्वेषके
वशीभूत होकर काम कर बैठते हैं, इससे बहुत नुकसान होता है । इसलिये
इनके वशीभूत नहीं होना है, इतना ही काम है । राग-द्वेषके अनुसार काम नहीं करोगे तो ये अपने-आप कमजोर हो जायँगे । कभी इनके वशीभूत हो भी जाय तो एक समयका उपवास कर लो ।
ज्यादा हो जाय तो पूरा दिन उपवास कर लो । साधारण रीतिसे यह उसका उपाय है । आप करके
देखो, राग-द्वेष कम हो जायँगे ।
श्रोता‒‘वासुदेव: सर्वम्’
की दृष्टि होनेपर हमें सब
जगह चतुर्भुजरूपसे भगवान्के दर्शन
होंगे या द्विभुजरूपसे दर्शन होंगे ?
स्वामीजी‒निराकार ‘है’‒रूपसे दर्शन होगे ।
आपका स्वरूप भी निराकार है । भगवान् कहाँ रहते हैं, क्या करते
हैं, कैसे करते हैं आदि बातोंको छोड़ दो । वे कहीं भी रहें,
कुछ भी करें, वे ‘हैं’ । ‘है’ में सन्देह मत करो । इससे ज्यादा जाननेकी जरूरत नहीं । वह द्विभुजी है कि चतुर्भुजी
है, साकार है कि निराकार है, सगुण है कि
निर्गुण है, जैसा भी है, पर वह ‘है’‒इसमें सन्देह नहीं । वह सम्पूर्ण प्राणियोंका परम सुहद् है । भगवान् हैं और वे हमारे हैं‒इतनी दृढ़ता रखो । इससे ज्यादा विचार करनेकी जरूरत
नहीं । उसको जाननेकी अपनी शक्ति नहीं है ।
अगर राग-द्वेष हो
जायँ तो यह मत समझो कि हमारा भगवान्से सम्बन्ध नहीं रहा । राग-द्वेषको मिटाओ, भगवान्का सम्बन्ध
मत मिटाओ । भगवान्के सम्बन्धको मुख्य रखो और राग-द्वेषको गौण रखो । ऐसा समझो कि राग-द्वेष हो गये तो इसमें
मेरी गलती है, पर भगवान्के साथ मेरा सम्बन्ध
है‒इसमें सन्देह नहीं । फिर सब ठीक हो जायगा ।
श्रोता‒पहले भगवान्का अनुभव हो, तब उनपर विश्वास
करें । अनुभवके बिना भगवान्पर विश्वास कैसे करें ?
स्वामीजी‒पहले विश्वास करना होगा । आप बताओ, विश्वास नहीं करोगे
तो क्या करोगे ? संसारमें भी पहले विश्वास करते हो, फिर काम होता है । आप दूकानदारसे वस्तु भी लेते हैं तो पैसा पहले देते हैं,
पीछे वस्तु लेते हैं । फिर भगवान्पर पहले विश्वास
करनेमें क्या बाधा है ? पहले विश्वास किये बिना आप जी नहीं सकते,
रोटी नहीं खा सकते ! विश्वास किये बिना रोटी कैसे
खाओगे कि इसमें जहर है कि क्या है ! पहले विश्वास करोगे,
पीछे रोटी खाओगे । हरेक काममें आप पहले विश्वास करते हो, फिर भगवान्ने क्या अपराध किया ? आप संसारपर विश्वास करते हो, जो विश्वासके लायक नहीं है । फिर जो विश्वासके
लायक है, उसपर विश्वास करनेमें क्या हर्ज है ? संसारमें समझदारीसे काम करो । करनेमें सावधान, होनेमें
प्रसन्न !
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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