।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
     माघ कृष्ण पंचमी, वि.सं.-२०७४, शनिवार  
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोतामाताओं-बहनोंको गायत्री-मन्त्रका जप करना चाहिये या नहीं ?

स्वामीजीबिल्कुल नहीं.....बिल्कुल नहीं.....बिल्कुल नहीं !

श्रोताक्यों नहीं करना चाहिये ?

स्वामीजीक्योंकि इनको छूट दी गयी है । पतिके घर जाना और रसोई बनाना ही इनके लिये अग्निहोत्र है[1] । आजकल अभिमान करते हैं कि हम गायत्रीका जप करेंगे । अभिमानसे पतन होता है । नारदभक्तिसूत्रमें आया है‒‘ईश्वरस्याप्यभिमानद्वेषित्वाद् दैन्यप्रियत्वाच्च’  (नारदभक्ति २७) ‘ईश्वरका भी अभिमानसे द्वेषभाव और दैन्यसे प्रियभाव है ।’ वे सोचते हैं कि जनेऊ लेनेसे हम बड़े हो जायँगे, पर वास्तवमें पतन होगा ।

श्रोताआवाज साफ सुनायी नहीं दे रही है !

स्वामीजीहम कहनेमें कपट तो करेंगे नहीं, सरलतासे बतायेंगे । अब सुनायी दे या न दे, यह आप जानें, आपका काम जाने ! हमने देखा है कि विवाहमें तो (माइक्रोफोन, लाउडस्पीकर आदि) बढ़िया लायेंगे, पर सत्संगमें रद्दी लायेंगे ! सत्संगको रद्दी काम समझ रखा है ! यह मैंने देखा है, मेरी बीती हुई है, मैं जानता हूँ ! सत्संगको रद्दी समझोगे तो फिर उसका महान् फल कैसे होगा ? आपका भाव गिर गया ! वस्तुओंका भाव गिर जाय तो दीवाला निकल जाता है ! इसलिये भाव ऊँचा होना चाहिये । सत्संगमें, भजन-ध्यानमें बढ़िया-से-बढिया चीज लाओ । बढ़िया-से-बढ़िया चीज वास्तवमें पारमार्थिक कार्यके लिये ही है ! पर आपलोगोंने पारमार्थिक कार्यको रद्दी समझ रखा है । यह मेरा वर्षोंका अनुभव है ! दान-पुण्यमें लगायेंगे तो रद्दी चीज लगायेंगे । थाली-गिलास लायेंगे तो ऐसे लायेंगे कि फूँकसे उड़ जाय ! अन्न लायेंगे तो खराब लायेंगे । छाता ऐसा लायेंगे कि वर्षा होनेपर कपड़े काले हो जायँ !

श्रोताअगर यह कहें कि ‘हे प्रभो, मैं तेरा हूँ, मैं तेरा हूँतो इतनेसे काम हो जायगा क्या ?

स्वामीजीकेवल कहनेसे काम नहीं चलेगा । भीतरसे भगवान्के हो जाओ तो उद्धार हो ही जायगा । नकली कहनेसे कुछ नहीं होगा । भगवान्के यहाँ नकली नहीं चलती । आज सब चीजें नकली हैं । साधु भी नकली, गृहस्थ भी नकली, ब्राह्मण भी नकली, क्षत्रिय भी नकली, वैश्य भी नकली, अदरख भी नकली, हल्दी भी नकली, मिरचें भी नकली, आटा भी नकली !! सब नकली-ही-नकली है ! असली चीज बहुत कम है । सत्संग करनेवालोंमें भी असली सत्संग करनेवाले बहुत कम हैं, नकली ज्यादा हैं !!

यहाँ मैंने एक बात कही थी कि मैं पाँच-सात-दस वर्ष रह गया तो आपको परमात्माकी प्राप्ति बहुत सुगम बता दूँगा । अब आठ-दस वर्षसे ज्यादा हो गये, और वैसी बातें मेरेको मिली हैं कि बहुत जल्दी उद्धार हो जाय, पर आपके मनमें ही नहीं है ! अगर पैसा पैदा करनेकी बात बताते तो पीछे पड़ जाते ! मेरे मनमें आती है कि कुछ व्यक्तियोंको इकट्ठा करके बात बतायें, पर आप लोगोंके मनमें आती ही नहीं ! असली लगन ही नहीं है !


  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे


[1] वैवाहिको विधिः स्त्रीणां संस्कारो वैदिकः स्मृतः ।
   पतिसेवा   गुरौ   वासो   गृहार्थोऽदुग्निपरिक्रिया ॥
                                              (मनुस्मृति २ । ६७)

‘स्त्रियोंका विवाह-संस्कार ही वैदिक संस्कार (यज्ञोपवीत), पतिसेवा ही गुरुकुल-निवास (वेदाध्ययन) और गृहकार्य ही अग्निहोत्र-कर्म कहा गया है ।