।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
     माघ कृष्ण चतुर्थी, वि.सं.-२०७४, शुक्रवार  
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

पृथ्वी, जल, अग्नि आदि सब भगवान्की प्रकृति है । चौदह भुवनोंमें, करोड़ों ब्रह्माण्डोंमें अनन्तकोटि जीव हैं, वे सब भी भगवान्की प्रकृति हैं । जड़ प्रकृति भी भगवान्का स्वरूप हुई और चेतन प्रकृति भी भगवान्का स्वरूप हुई । जड़, चेतन और भगवान्तीनों मिलकर ‘वासुदेवः सर्वम्हुआ । भगवान् वासुदेव ही पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहम् बने । इन आठोंके सिवाय और संसारमें क्या है ? अब प्रश्न उठता है कि इसका अनुभव कैसे हो ? अपने-आपको भगवान्के चरणोंमें समर्पित कर दें । समर्पित ऐसे करें कि मैं हूँ ही नहीं, मेरी जगह भगवान् ही हैं । अपना अहम् अपनी सत्ता परमात्मासे अलग नहीं है । अपनी सत्ता छोड़कर हम भगवान्के ही शरण हो सकते हैं, और किसीके नहीं । इस प्रकार भगवान्के शरण होनेपर केवल भगवान् ही रहेंगे‒‘वासुदेव: सर्वम्। ऐसे महात्माको भगवान्ने अत्यन्त दुर्लभ बताया है‘स महात्मा सुदुर्लभः ऐसा सुदुर्लभ महात्मा आप सब बन सकते हैं । बस, भगवान्के चरणोंके शरण हो जाओ । अपना कुछ भी मत रखो ।

श्रोताद्विजाति (ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य)-के लिये जनेऊ लेना जरूरी क्यों है ?

स्वामीजीआप कितना ही धन कमाओ, पर टैक्स देना पड़ता है, ऐसे ही ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यतीनोंके लिये यह टैक्स है । इस विषयमें शास्त्रमें एक नयी बात आयी है कि इसको करनेसे कोई फल नहीं होगा, पर नहीं करनेसे दण्ड होगा ! यद्यपि हम ऐसा नहीं मानते । कारण कि कोई भी कर्म करे, उसका फल जरूर होता है ।

जनेऊ लेना बहुत जरूरी है । दो बार जन्म लेनेवालेको ‘द्विजकहते हैं । ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यये तीनों द्विज हैं । पक्षी भी द्विज हैं; क्योंकि वह पहले अण्डेके रूपमें पैदा होता है, फिर अण्डेके फूटनेसे पैदा होता है । ऐसे ही ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य पहले माता-पितासे पैदा होते हैं, फिर जनेऊ लेनेपर गायत्रीसे पैदा होते हैं । जनेऊ न लेनेसे उनका ‘द्विजनाम नहीं होता । जहाँ पूजन करनेकी बात आती है, वहाँ ‘द्विजशब्द केवल ब्राह्मणके लिये होता है; जैसे‘देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनम्’ (गीता १७ । १४)


गीताभवन (ऋषिकेश) -में सेठजी (श्रीजयदयालजी गोयन्दका)-ने हिन्दू-संस्कृतिकी रक्षाके लिये ही जनेऊ-संस्कार आरम्भ किया था । सेठजीने गीताप्रेस बनाकर मामूली काम नहीं किया है ! बड़ा भारी काम किया है ! जोरसे आनेवाले कलियुगके आगे आड़ लगा दी ! उनके जानेके बाद यह काम और तेज हुआ है ! पहले लगभग ६००-७०० टन कागज छपता था, अब लगभग ३३०० टन कागज छप रहा है ! सन्त-महात्माओंके जानेके बाद उनका प्रभाव ज्यादा होता है । कारण कि जबतक वे जीते रहते हैं, तबतक उनके भाव संकुचित रहते हैं । परन्तु शरीर छोड़नेके बाद उनके भाव बहुत व्यापक हो जाते हैं ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे