(गत ब्लॉगसे आगेका)
श्रोता‒क्या हमारा खराब प्रारब्ध किसी उपायसे बदला जा सकता है ?
स्वामीजी‒क्यों बदलें ? प्रारब्ध खराब है तो
भोग करके नष्ट कर दो । लोभी आदमी टैक्सीके लिये पैसा खर्च न करके पैदल चला जाता है
। हम प्रारब्धको मिटानेके लिये भगवान्का भजन क्यों खर्च करें
? शूरवीरतासे उसको भोग लें । भीष्मजी महाराजके शरीरमें दो अंगुल
भी जगह ऐसी नहीं बची थी, जहाँ बाण लगनेसे घाव न हुआ हो । परन्तु
उस अवस्थामें भी वे कहते हैं कि मेरे जितने कर्म हैं, सब फल भुगतानेके
लिये आ जाओ !
उपतिष्ठन्तु मां सर्वे व्याधयः
पूर्वसञ्चिताः
।
अनृणो गन्तुमिच्छामि तद्
विष्णोः परमं पदम् ॥
(महाभारत,
शान्ति॰ २०९)
‘पूर्वजन्ममें जिन कर्मोंका मेरे द्वारा
संचय किया गया है, वे सभी रोग मेरे शरीरमें उपस्थित हो जायँ
। मैं सबसे उऋण होकर भगवान् विष्णुके परमधामको जाना चाहता हूँ ।’
गीतामें आया है कि जिसकी दृष्टिमें सब कुछ परमात्मा ही
हैं, ऐसा महात्मा अत्यन्त
दुर्लभ है‒‘वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभ’ (गीता ७ । १९) । भगवान्ने पहले ‘पृथ्वी, जल,
तेज, वायु आकाश (‒ये पंचमहाभूत)
और मन, बुद्धि तथा अहंकार’‒इस प्रकार आठ प्रकारके भेदोवाली ‘अपरा प्रकृति’ का और
जीवरूप ‘परा प्रकृति’ का वर्णन किया । इन दोनों प्रकृतियोंको
भगवान्ने अपना बताया । प्रकृति और प्रकृतिवाला दो होते हुए भी
एक हैं और एक होते हुए भी दो हैं । जैसे, आप और आपका स्वभाव दो
होते हुए भी एक हैं और एक होते हुए भी दो हैं । आप अपने स्वभावको अपनेसे अलग करके दिखा
नहीं सकते । स्वभाव बदलता है, पर आप नहीं बदलते । चौरासी लाख योनियोंमें जानेपर भी आप वे-के-वे ही रहते हैं ।
योगदर्शनमें लिखा है कि किसी एक ध्येयमें धारणा, ध्यान और समाधि‒इन तीनोंका होना ‘संयम’ कहलाता है‒‘त्रयमेकत्र संयमः’ (विभूति॰ ४) । मनुष्य जिसके बलमें संयम करेगा, उसको वैसा ही बल मिल
जायगा‒‘बलेषु हस्तिबलादीनि’ (विभूति॰ २४) । जैसे हमने कभी हाथीका शरीर धारण किया
था, उसको योगशक्तिसे जान
लें और उसमें धारणा करें तो अपनेमें हाथीका बल आ जायगा । इस तरह जिस-जिस शरीरके बलकी धारणा करेंगे, उस-उसका बल इस शरीरमें आ जायगा । देवताओं, असुरों,
राक्षसोंका बल भी आ जायगा । चौरासी लाख योनियोंकी जो शक्तियाँ हैं,
वे सब शक्तियाँ धारणा करनेसे हमारेमें आ सकती हैं । अभी भाई-बहनोंने धारणा ही तो कर रखी है कि मैं स्त्री हूँ, मैं पुरुष हूँ, मैं पढ़ा-लिखा हूँ, मैं अपढ़ हूँ आदि । धारणाके अनुसार अपनेमें बल दीखता है । चौरासी
लाख योनियोंमें हमने धारणा की है । हमें याद नहीं है, पर शास्त्र
कहते हैं । हमने देवताओंका शरीर भी धारण किया तो उसको याद करके देवताओंकी शक्तिमें
संयम किया जाय तो संयम करते ही वह शक्ति अपनेमें आ जायगी । इस तरह देवता, राक्षस, पशु, पक्षी आदि किसीके
भी बलमें संयम करनेसे वह शक्ति आ जायगी । कण्ठके मूलमें संयम करनेसे भूख-प्यास मिट जाती है । वास्तवमें सब शक्तियाँ अपनेमें
अर्थात् चेतनमें ही हैं ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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