।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
     माघ कृष्ण तृतीया, वि.सं.-२०७४, गुरुवार  
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोताक्या हमारा खराब प्रारब्ध किसी उपायसे बदला जा सकता है ?

स्वामीजीक्यों बदलें ? प्रारब्ध खराब है तो भोग करके नष्ट कर दो । लोभी आदमी टैक्सीके लिये पैसा खर्च न करके पैदल चला जाता है । हम प्रारब्धको मिटानेके लिये भगवान्का भजन क्यों खर्च करें ? शूरवीरतासे उसको भोग लें । भीष्मजी महाराजके शरीरमें दो अंगुल भी जगह ऐसी नहीं बची थी, जहाँ बाण लगनेसे घाव न हुआ हो । परन्तु उस अवस्थामें भी वे कहते हैं कि मेरे जितने कर्म हैं, सब फल भुगतानेके लिये आ जाओ !

उपतिष्ठन्तु   मां   सर्वे   व्याधयः   पूर्वसञ्चिताः ।
अनृणो गन्तुमिच्छामि तद् विष्णोः परमं पदम् ॥
                                 (महाभारत, शान्ति २०९)

‘पूर्वजन्ममें जिन कर्मोंका मेरे द्वारा संचय किया गया है, वे सभी रोग मेरे शरीरमें उपस्थित हो जायँ । मैं सबसे उऋण होकर भगवान् विष्णुके परमधामको जाना चाहता हूँ ।

गीतामें आया है कि जिसकी दृष्टिमें सब कुछ परमात्मा ही हैं, ऐसा महात्मा अत्यन्त दुर्लभ है‘वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभ’ (गीता ७ । १९) भगवान्ने पहले ‘पृथ्वी, जल, तेज, वायु आकाश (‒ये पंचमहाभूत) और मन, बुद्धि तथा अहंकार’‒इस प्रकार आठ प्रकारके भेदोवाली ‘अपरा प्रकृतिका और जीवरूप ‘परा प्रकृतिका वर्णन किया । इन दोनों प्रकृतियोंको भगवान्ने अपना बताया । प्रकृति और प्रकृतिवाला दो होते हुए भी एक हैं और एक होते हुए भी दो हैं । जैसे, आप और आपका स्वभाव दो होते हुए भी एक हैं और एक होते हुए भी दो हैं । आप अपने स्वभावको अपनेसे अलग करके दिखा नहीं सकते । स्वभाव बदलता है, पर आप नहीं बदलते । चौरासी लाख योनियोंमें जानेपर भी आप वे-के-वे ही रहते हैं ।


योगदर्शनमें लिखा है कि किसी एक ध्येयमें धारणा, ध्यान और समाधिइन तीनोंका होना ‘संयमकहलाता है‘त्रयमेकत्र संयमः’ (विभूति) मनुष्य जिसके बलमें संयम करेगा, उसको वैसा ही बल मिल जायगा‘बलेषु हस्तिबलादीनि’ (विभूति २४) जैसे हमने कभी हाथीका शरीर धारण किया था, उसको योगशक्तिसे जान लें और उसमें धारणा करें तो अपनेमें हाथीका बल आ जायगा । इस तरह जिस-जिस शरीरके बलकी धारणा करेंगे, उस-उसका बल इस शरीरमें आ जायगा । देवताओं, असुरों, राक्षसोंका बल भी आ जायगा । चौरासी लाख योनियोंकी जो शक्तियाँ हैं, वे सब शक्तियाँ धारणा करनेसे हमारेमें आ सकती हैं । अभी भाई-बहनोंने धारणा ही तो कर रखी है कि मैं स्त्री हूँ, मैं पुरुष हूँ, मैं पढ़ा-लिखा हूँ, मैं अपढ़ हूँ आदि । धारणाके अनुसार अपनेमें बल दीखता है । चौरासी लाख योनियोंमें हमने धारणा की है । हमें याद नहीं है, पर शास्त्र कहते हैं । हमने देवताओंका शरीर भी धारण किया तो उसको याद करके देवताओंकी शक्तिमें संयम किया जाय तो संयम करते ही वह शक्ति अपनेमें आ जायगी । इस तरह देवता, राक्षस, पशु, पक्षी आदि किसीके भी बलमें संयम करनेसे वह शक्ति आ जायगी । कण्ठके मूलमें संयम करनेसे भूख-प्यास मिट जाती है । वास्तवमें सब शक्तियाँ अपनेमें अर्थात् चेतनमें ही हैं ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे