(गत ब्लॉगसे आगेका)
जिसके मनमें ऐसा आता है कि हमारे खाने-पीनेका,
रहनेका ठीक प्रकथ हो जाय तो हम बहुत अच्छी तरहसे भजन करें, वह कभी भजन नहीं कर सकता । उसकी आसक्ति मिटेगी नहीं । यह बिल्कुल सच्ची बात है ।
कुछ न होनेसे जो आनन्द है, वह आनन्द पदार्थोंके होनेसे नहीं है । वस्तुएँ मिलेंगी तो भोगी
होओगे ! सांसारिक पदार्थोंसे उत्पन्न होनेवाला सुख शान्ति देनेवाला
नहीं है । इस बातका सन्त-महात्माओंने ठीक अनुभव किया है और कह
दिया है‒
चाख चाख सब छाँडिया माया-रस खारा हो
।
नाम-सुधा-रस पीजिए छिन बारंबारा हो ॥
लगे मोहि
राम पियारा हो ।
तुम मेहनत मत करना, हमने चख-चखकर ठीक
देख लिया है । पर यह बात कहनेसे समझमें नहीं आती । अगर समझमें आ जाय तो सांसारिक सुखकी
इच्छा पड़ाकसे छूट जायगी । सपनेमें भी इच्छा नहीं होगी कि रुपये होने चाहिये । निर्वाहकी
वस्तुएँ अपने-आप मिलेंगी ।
प्रारब्ध पहले रचा, पीछे रचा सरीर
।
तुलसी चिंता क्यों करे, भज ले श्रीरधुबीर
॥
पदार्थोंका भरोसा रखेंगे तो असली भजन नहीं होगा । अगर
भगवान्के भरोसे निश्चिन्त
हो जायँ तो निर्वाहमें कोई कमी नहीं रहेगी । ऐसा मैंने देखा है । मनुष्य भी काम करनेवालेको
मजदूरी देता है तो क्या भजन करनेवालेको भगवान् रोटी-कपड़ा नहीं
देंगे ? विश्वका भरण-पोषण करनेवाले क्या
भक्तोंकी उपेक्षा करेंगे ? इसका यह अर्थ नहीं है कि सब कुछ त्याग
दो । खास बात यह है कि आप जैसी अवस्थामें हैं, उसीमें तत्परतासे भगवान्में लग जाओ ।
श्रोता‒भगवान्के कौन-से स्वरूपका विशेषतासे
ध्यान करना चाहिये ?
स्वामीजी‒जो आपको प्रिय लगता हो, अपनी दृष्टिसे सर्वश्रेष्ठ
मालूम देता हो, उस स्वरूपका ध्यान करना चाहिये । उसके ध्यानसे
विशेष लाभ होगा । भगवान् तो एक ही हैं । आपका मन लगना चाहिये ।
श्रोता‒जब भगवान्का ध्यान करते हैं, तब
नींद आने लगती है ! क्या करना चाहिये ?
स्वामीजी‒नींद आती है रुचि कम होनेसे । रुचि
ज्यादा होती है तो नींद नहीं आती । सिनेमा देखते हैं तो क्या नींद आती है ? रुपये गिनते हैं तो
क्या नींद आती है ? नींद आये तो खड़े होकर चलते-फिरते भगवान्का ध्यान करो, नामजप
करो, कीर्तन करो ।
श्रोता‒भगवान् मेरे हैं तो वे सगुण-साकारकी दृष्टिसे ही मेरे हैं या निर्गुण-निराकारकी दृष्टिसे भी मेरे हैं ?
स्वामीजी‒भगवान् सगुण हों, निर्गुण हों,
साकार हों, निराकार हों, दोभुजी हों, चारभुजी हों, हजारभुजी
हों, कैसे ही हों, वे मेरे हैं । उनको ‘मेरा’
कहनेमात्रसे वे खुश हो जाते हैं ! बालक माँको ‘मैं तेरा हूँ तू
मेरी है’ कहे तो माँ राजी हो जाती है । ऐसे ही भगवान्से
कहे कि ‘हे नाथ ! मैं आपका हूँ आप मेरे हो’ तो वे खुश हो जाते हैं ।
(शेष आगेके
ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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