।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
     माघ कृष्ण द्वितीया, वि.सं.-२०७४, बुधवार  
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

जिसके मनमें ऐसा आता है कि हमारे खाने-पीनेका, रहनेका ठीक प्रकथ हो जाय तो हम बहुत अच्छी तरहसे भजन करें, वह कभी भजन नहीं कर सकता । उसकी आसक्ति मिटेगी नहीं । यह बिल्कुल सच्ची बात है । कुछ न होनेसे जो आनन्द है, वह आनन्द पदार्थोंके होनेसे नहीं है । वस्तुएँ मिलेंगी तो भोगी होओगे ! सांसारिक पदार्थोंसे उत्पन्न होनेवाला सुख शान्ति देनेवाला नहीं है । इस बातका सन्त-महात्माओंने ठीक अनुभव किया है और कह दिया है

   चाख चाख सब छाँडिया माया-रस खारा हो ।
नाम-सुधा-रस पीजिए छिन बारंबारा हो ॥
                             लगे मोहि राम पियारा हो ।

तुम मेहनत मत करना, हमने चख-चखकर ठीक देख लिया है । पर यह बात कहनेसे समझमें नहीं आती । अगर समझमें आ जाय तो सांसारिक सुखकी इच्छा पड़ाकसे छूट जायगी । सपनेमें भी इच्छा नहीं होगी कि रुपये होने चाहिये । निर्वाहकी वस्तुएँ अपने-आप मिलेंगी ।

प्रारब्ध पहले  रचा,   पीछे   रचा   सरीर ।
तुलसी चिंता क्यों करे, भज ले श्रीरधुबीर ॥

पदार्थोंका भरोसा रखेंगे तो असली भजन नहीं होगा । अगर भगवान्के भरोसे निश्चिन्त हो जायँ तो निर्वाहमें कोई कमी नहीं रहेगी । ऐसा मैंने देखा है । मनुष्य भी काम करनेवालेको मजदूरी देता है तो क्या भजन करनेवालेको भगवान् रोटी-कपड़ा नहीं देंगे ? विश्वका भरण-पोषण करनेवाले क्या भक्तोंकी उपेक्षा करेंगे ? इसका यह अर्थ नहीं है कि सब कुछ त्याग दो । खास बात यह है कि आप जैसी अवस्थामें हैं, उसीमें तत्परतासे भगवान्में लग जाओ ।

श्रोताभगवान्के कौन-से स्वरूपका विशेषतासे ध्यान करना चाहिये ?

स्वामीजीजो आपको प्रिय लगता हो, अपनी दृष्टिसे सर्वश्रेष्ठ मालूम देता हो, उस स्वरूपका ध्यान करना चाहिये । उसके ध्यानसे विशेष लाभ होगा । भगवान् तो एक ही हैं । आपका मन लगना चाहिये ।

श्रोताजब भगवान्का ध्यान करते हैं, तब नींद आने लगती है ! क्या करना चाहिये ?

स्वामीजीनींद आती है रुचि कम होनेसे । रुचि ज्यादा होती है तो नींद नहीं आती । सिनेमा देखते हैं तो क्या नींद आती है ? रुपये गिनते हैं तो क्या नींद आती है ? नींद आये तो खड़े होकर चलते-फिरते भगवान्का ध्यान करो, नामजप करो, कीर्तन करो ।

श्रोताभगवान् मेरे हैं तो वे सगुण-साकारकी दृष्टिसे ही मेरे हैं या निर्गुण-निराकारकी दृष्टिसे भी मेरे हैं ?

स्वामीजीभगवान् सगुण हों, निर्गुण हों, साकार हों, निराकार हों, दोभुजी हों, चारभुजी हों, हजारभुजी हों, कैसे ही हों, वे मेरे हैं । उनको ‘मेरा’ कहनेमात्रसे वे खुश हो जाते हैं ! बालक माँको ‘मैं तेरा हूँ तू मेरी हैकहे तो माँ राजी हो जाती है । ऐसे ही भगवान्से कहे कि ‘हे नाथ ! मैं आपका हूँ आप मेरे होतो वे खुश हो जाते हैं ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे