।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
     माघ अमावस्या, वि.सं.-२०७४, मंगलवार
भौमवती अमावस्या, मौनी अमावस्या
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोताअपना इष्टदेव हनुमान् हो और गुरुमन्त्र ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ हो तो क्या दोनोंका सामंजस्य बैठ जायगा ?

स्वामीजीहाँ बैठ जायगा । ऊपरसे दो दीखते हैं, पर भीतरसे सब एक हैं । परमात्मतत्व एक है, रूप अनेक हैं ।

श्रोतास्त्रियोंको शालग्रामकी पूजा करनी चाहिये कि नहीं ?

स्वामीजीस्त्रियोंको शालग्रामकी, हनुमान्जीकी और शिवलिंगकी पूजा नहीं करनी चाहिये । परन्तु यह शास्त्रकी विधि है । भीतरका भाव हो तो विधि नहीं चलती । जहाँ प्रेम होता है, वहाँ विधि नहीं होती । ऐसी भक्त कन्याएँ हुई हैं, जिन्होंने पूजा की तो शिवजी प्रसन्न होकर प्रकट हो गये !

आप सच्चे हृदयसे भगवान्में लगे रहो । फिर सब ठीक होगा, यह नियम है ।

तुलसी सीताराम कहु दृढ़ राखहु बिस्वास ।
कबहूँ  बिगरे  ना  सुने  रामचंद्र  के  दास ॥

सांसारिक काममें तो नफा और नुकसान दोनों होते हैं, पर पारमार्थिक काममें नुकसान होता ही नहीं । सुख-दुःख आते हैं, अनुकूलता-प्रतिकूलता आती है, पर नुकसान नहीं होता । प्रतिकूलता आनेपर भी नुकसान नहीं होता, प्रत्युत फायदा होता है ।

आजकल अच्छी बात बतानेवाले बहुत कम मिलते हैं । व्याख्यान देनेवाले, सत्संग करानेवाले, लोगोंको इकट्ठा करनेवाले बहुत मिलेंगे, पर जिससे जीवका कल्याण हो जायऐसी बात बतानेवाले बहुत कम मिलेंगे !

जो यहाँ सत्संगमें आते हैं, वे आदमी मामूली नहीं हैं । हमारेको वे इतने ऊँचे नहीं दीखते हैं, पर मैं विचार करता हूँ तो वे मामूली आदमी नहीं हैं । जो आते हैं, वे विशेष पुण्यशाली हैं, भाग्यशाली हैं, महात्माओंकी कृपाके पात्र हैं, नहीं तो आ नहीं सकते । सेठजी ( श्रीजयदयालजी गोयन्दका) -ने पूर्वजन्मकी बात बतायी थी तो कहा था कि उस समय मेरा परिचय बहुत था । वे आदमी अब पहलेके संस्कारके कारण इकट्ठे होते हैं । इसलिये यहाँके सब-के-सब आदमी वन्दनीय हैं ! जो यहाँ आते हैं, उनपर भगवान्की कृपा विशेष है । अतः आप दृढ़तासे यह निश्चय कर लें कि हमें इसी जन्ममें अपना कल्याण करना है । इसमें जो देरी होती है, वह सही नहीं जानी चाहिये । आध्यात्मिक उन्नतिमें समय नहीं लगता, आज अभी हो सकती है ! गोस्वामीजीने लिखा है

बिगरी  जनम  अनेक  की  सुधरै अबहीं  आजु ।
होहि राम को नाम जपु तुलसी तजि कुसमाजु ॥
                                                                         (दोहावली २२)

इसमें खास बात है‘होहि राम को नाम जपु’ अर्थात् भगवान्का होकर भगवान्को पुकारे; जैसेबालक माँका होकर माँको पुकारता है । इसमें नामजप दामी नहीं है, प्रत्युत भगवान्का होना दामो है । नामजप निरन्तर नहीं होता, पर ‘मैं भगवान्का हूँ’इसमें अन्तर पड़ता ही नहीं !

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे