(गत ब्लॉगसे आगेका)
श्रोता‒अपना इष्टदेव हनुमान् हो और
गुरुमन्त्र ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ हो तो क्या दोनोंका सामंजस्य बैठ जायगा ?
स्वामीजी‒हाँ बैठ जायगा । ऊपरसे दो दीखते हैं, पर भीतरसे सब एक हैं
। परमात्मतत्व एक है, रूप अनेक हैं ।
श्रोता‒स्त्रियोंको शालग्रामकी पूजा करनी चाहिये
कि नहीं ?
स्वामीजी‒स्त्रियोंको शालग्रामकी, हनुमान्जीकी और शिवलिंगकी पूजा नहीं करनी चाहिये । परन्तु यह शास्त्रकी विधि है ।
भीतरका भाव हो तो विधि नहीं चलती । जहाँ प्रेम होता है, वहाँ विधि नहीं होती । ऐसी भक्त कन्याएँ हुई हैं, जिन्होंने पूजा की तो शिवजी
प्रसन्न होकर प्रकट हो गये !
आप सच्चे हृदयसे भगवान्में लगे
रहो । फिर सब ठीक होगा, यह नियम है ।
तुलसी सीताराम कहु दृढ़ राखहु
बिस्वास ।
कबहूँ बिगरे ना
सुने रामचंद्र के दास ॥
सांसारिक काममें तो नफा और नुकसान दोनों होते हैं, पर पारमार्थिक काममें
नुकसान होता ही नहीं । सुख-दुःख आते हैं, अनुकूलता-प्रतिकूलता आती है, पर
नुकसान नहीं होता । प्रतिकूलता आनेपर भी नुकसान नहीं होता, प्रत्युत
फायदा होता है ।
आजकल अच्छी बात बतानेवाले बहुत कम मिलते
हैं । व्याख्यान देनेवाले, सत्संग करानेवाले, लोगोंको
इकट्ठा करनेवाले बहुत मिलेंगे, पर जिससे जीवका कल्याण हो जाय‒ऐसी बात बतानेवाले बहुत कम मिलेंगे !
जो यहाँ सत्संगमें आते हैं, वे आदमी मामूली नहीं
हैं । हमारेको वे इतने ऊँचे नहीं दीखते हैं, पर मैं विचार करता
हूँ तो वे मामूली आदमी नहीं हैं । जो आते हैं, वे विशेष पुण्यशाली
हैं, भाग्यशाली हैं, महात्माओंकी कृपाके
पात्र हैं, नहीं तो आ नहीं सकते । सेठजी ( श्रीजयदयालजी गोयन्दका) -ने पूर्वजन्मकी बात बतायी थी
तो कहा था कि उस समय मेरा परिचय बहुत था । वे आदमी अब पहलेके संस्कारके कारण इकट्ठे
होते हैं । इसलिये यहाँके सब-के-सब आदमी
वन्दनीय हैं ! जो यहाँ आते हैं, उनपर भगवान्की कृपा विशेष
है । अतः आप दृढ़तासे यह निश्चय कर लें कि हमें इसी जन्ममें अपना कल्याण करना है । इसमें
जो देरी होती है, वह सही नहीं जानी चाहिये । आध्यात्मिक उन्नतिमें समय नहीं लगता, आज अभी हो सकती
है ! गोस्वामीजीने लिखा है‒
बिगरी जनम अनेक
की सुधरै अबहीं
आजु ।
होहि राम को नाम जपु तुलसी
तजि कुसमाजु ॥
(दोहावली २२)
इसमें खास बात है‒‘होहि राम को नाम जपु’ अर्थात् भगवान्का होकर भगवान्को पुकारे; जैसे‒बालक माँका होकर
माँको पुकारता है । इसमें नामजप दामी नहीं है, प्रत्युत भगवान्का होना दामो है । नामजप निरन्तर नहीं होता, पर ‘मैं
भगवान्का हूँ’‒इसमें अन्तर पड़ता ही नहीं
!
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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