(गत ब्लॉगसे आगेका)
परमात्माकी प्राप्ति भविष्यपर निर्भर नहीं है । समयसे अतीत वस्तु समयके अधीन नहीं होती । कितने ही जन्मोंके
पाप हों, बहुत जल्दी खत्म हो
जायँगे । पापकी जड़ नहीं होती । गुफामें पड़ा हुआ लाखों वर्षोका अन्धकार दीपक करते ही
नष्ट हो जाता है । अन्धकारमें ताकत नहीं है । शास्त्रोंमें ऐसी छोटी-छोटी कई बातें हैं, जिनसे बहुत जल्दी पारमार्थिक उनति
हो सकती है । जैसे, ‘जो मिलती है और बिछुड़
जाती है, वह अपनी नहीं होती’‒यह इतनी दामी बात है, जिसका आदमी अन्दाजा नहीं लगा सकता
! अपनी चीज वह है, जो पहलेसे ही
मिली हुई है और कभी बिछुडती ही नहीं । ऐसे केवल भगवान् ही हैं । वे पहलेसे ही सबके
हृदयमें विराजमान हैं । वे हमसे कभी दूर जाते नहीं, जा सकते ही
नहीं । आपने संसारको सत्ता और महत्ता दी हुई है, तभी वह ठहरा
हुआ है, नहीं तो उसमें ठहरनेकी सामर्थ्य ही नहीं है !
भूत, भविष्य और वर्तमान‒ये
तीन काल हमारी दृष्टिमें हैं । ये तीन काल अज्ञानमें होते हैं । भगवान्की दृष्टिमें तीन काल नहीं हैं । वे सदा ही वर्तमान हैं । इसलिये भगवान्की कृपासे उनकी प्राप्ति बहुत जल्दी हो सकती है । हमारी उत्कट अभिलाषा होनी
चाहिये । ‘हे नाथ ! हे मेरे नाथ !’ पुकारते-पुकारते कभी हृदयसे पुकार निकली तो उसी क्षण काम बन जायगा ! भगवान्की कृपासे जो कार्य होता है, वह अपने उद्योगसे नहीं होता
।
श्रोता‒काम-धन्धेमें लगे रहनेसे समय नहीं मिलता,
फिर भजन कैसे करें ?
स्वामीजी‒काम-धन्धा ही तो भजन है ! भजनको आपने अलग माना है, यह गलती है । ऐसा मानो कि भगवान्का ही काम-धन्धा करते हैं । भगवान्की आज्ञाका पालन करते हैं ।
कर्णवासकी बात है । भाईजी (श्रीहनुमानप्रसादजी
पोद्दार) बिस्तर बाँधकर आ गये कि अब मैं एकान्तमें रहकर भजन करूँगा
। सेठजी (श्रीजयदयालजी गोयन्दका)-ने कहा
कि एकान्तमें भजन करना अच्छा है, पर भगवद्भावोंका प्रचार करना ज्यादा बढ़िया है । भाईजी बोले कि भगवद्भावोंका प्रचार तो भगवान्की कृपासे होता है,
मनुष्य थोड़े ही कर सकता है ! सेठजीने उत्तर दिया
कि भगवद्भावोंका प्रचार करना भक्तका काम है, भगवान्का काम नहीं है । यह भक्तकी जिम्मेवारी है । फिर
भाईजी वापिस गोरखपुर चले गये । यह मेरे सामनेकी बात है ।
श्रोता‒किसी व्यक्तिने गुरु बना लिया
और गुरुजीने चेलेको छोड़ दिया
तो क्या उस चेलेका कल्याण हो जायगा ?
स्वामीजी‒कल्याण होना मुश्किल है ! कल्याण करनेकी शक्ति
रखनेवाला गुरु चेलेको छोड़ता नहीं, और छोड़ दे तो कल्याण होता नहीं
! परन्तु आजकलके गुरु तो पैसोंके गुरु
हैं । उनकी कोई इज्जत नहीं है । उनमें चेलेका कल्याण करनेकी शक्ति नहीं है ।
जिसमें कल्याण करनेकी ताकत है, वह छोड़ दे तो उस चेलेको भगवान्
भी माफ नहीं कर सकते !
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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