।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
     माघ शुक्ल प्रतिपदा, वि.सं.-२०७४, गुरुवार
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोतापरमात्मा सर्वत्र व्यापक हैं, फिर भी लोगोंकी दुःख-निवृत्ति और परमानन्दकी प्राप्ति क्यों नहीं हो रही है ?

स्वामीजीसर्वत्र परिपूर्ण परमात्माकी तरफ ध्यान नहीं है !

आनँद-सिंधु-मध्य   तव   वासा ।
बिनु जाने कस मरसि पियासा ॥
                            (विनयपत्रिका १३६ । २)

गंगाजीके किनारे बैठे हैं और प्यासे मर रहे हैं और जल रहे हैं ! गंगाजीके किनारे प्यास और जलन कैसी ? उल्टी बात है ! वास्तवमें गंगाजीकी तरफ ध्यान ही नहीं है ! गंगाजी यहाँ हैं, इसका पता ही नहीं है ! उसीका पता लगानेके लिये ही यह सत्संग-समारोह है !

श्रोतावैद्य दवा देता है तो उसपर विश्वास हो जाता है, कोई रास्ता बता देता है तो विश्वास हो जाता है, पर वासुदेव: सर्वम्जैसी ऊँची बात आप हमको बता रहे हैं, फिर भी सहजतापूर्वक विश्वास क्यों नहीं होता ? इसमें असली कारण क्या है ? हमारी भूल कहाँ है ?

स्वामीजीसंसारका महत्त्व आपके हृदयमें अंकित है । आपके भीतर उत्पत्ति-विनाशशील वस्तुका महत्त्व है, पर अनुत्पन्न अविनाशी तत्त्वका महत्व नहीं है । उधर आपका ख्याल ही नहीं है । यही कारण है ।

श्रोताआप जो परा और अपरा प्रकृतिकी बात बताते हैं, वह हमारे हृदयमें अच्छी तरहसे बैठ गयी है परन्तु भगवत्प्राप्ति क्या होती है, उसका साक्षात्कार क्या होता है, यह हमारी समझमें नहीं आया !

स्वामीजीयह समझमें नहीं आयेगा । यह तो मानना ही पड़ेगा । भगवान् समझमें नहीं आते । माँ-बाप समझमें आते हैं क्या ? माँ-बाप समझमें नहीं आते, उनको तो मानना ही पड़ता है । जैसे आपने माँ-बापको माना है, ऐसे ही भगवान्को मान लो । भगवान्की प्राप्ति हो जायगी । माननेके सिवाय और कर भी क्या सकते हो ! चाहे उसको मान लो, चाहे उसकी खोज करो, पर समय बर्बाद मत करो ।

श्रोतासंसार नाशवान् है और सब कुछ परमात्माका स्वरूप हैइन दोनोंमें हमारे लिये श्रेष्ठ बात कौन-सी है ?

स्वामीजीआपमें अगर राग है तो मिटाना श्रेष्ठ है, और वैराग्य है तो मानना श्रेष्ठ है ।


श्रोतासंसार अपना नहीं है, संसारकी कोई वस्तु अपनी नहीं है, फिर हम बैठे-बैठे करें क्या ?


स्वामीजीराम-राम करो और सबकी सेवा करो । सब वस्तुएँ सेवाके लिये हैं, सुख भोगनेके लिये नहीं । मनुष्यमात्रके लिये दो ही बातें हैंभगवान्को याद करो और संसारकी सेवा करो । कुछ बाकी नहीं रहेगा, सब ठीक हो जायगा ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे