(गत ब्लॉगसे आगेका)
पढ़े-लिखेको जल्दी बोध नहीं होगा, पर अपढ़को तत्काल हो जायगा ! क्योंकि पढ़ा-लिखा अभ्यास करेगा । बोधमें भविष्य होता ही नहीं ! जो
बोधमें भविष्य मानते हैं, वे बोधको ठीक नहीं जानते । अभ्याससे
बहुत समय लगेगा, और समय लगनेपर भी बोध नहीं होगा । बोधके लिये अन्त:करण-शुद्धिकी जरूरत नहीं है, केवल
जोरदार चाहनाकी जरूरत है ।
आप शरीर नहीं हो‒इतनी ही बात समझनी है, कोई लम्बी-चौड़ी बात नहीं । शरीरको आप ‘मैं’ भी कहते हो
और ‘मेरा’ भी कहते हो । शरीर मैं हूँ‒यह अभेदभावका सम्बन्ध है,
और शरीर मेरा है‒यह भेदभावका सम्बन्ध है । आप दोनोंमें
एक बात कहो, चाहे अभेदभावका सम्बन्ध कहो, चाहे भेदभावका सम्बन्ध कहो । शरीरको ‘मैं’ भी कहना गलती है और ‘मेरा’ भी कहना
गलती है । आप ‘मेरी घड़ी है’‒यह तो कहते हो, पर ‘मैं घड़ी हूँ’‒यह नहीं कहते । वास्तवमें शरीर ‘मैं’
भी नहीं है और ‘मेरा’ भी नहीं है । जब चौरासी लाख योनियोंवाले शरीर ‘मैं’ नहीं,
तो फिर यह शरीर ‘मैं’ कैसे हुआ ? जब चौरासी लाख
योनियोंमें जानेपर वे शरीर आपके नहीं हुए, तो फिर यह शरीर आपका
कैसे हो गया ? शरीर मैं नहीं हूँ‒यह सीधी-सरल बात है । शरीर तो छूटेगा ।
जबतक अहम् रहेगा, तबतक बोध नहीं होगा‒‘निर्ममो निरहङ्कारः’ (गीता २ । ७१; १२ । १३) । गीतामें कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग‒तीनों ही योगोंमें निर्मम-निरहंकार होनेकी बात आयी है
।
श्रोता‒आप तत्काल बोध होनेकी बात कहते हैं, पर हमें तत्काल अनुभव नहीं हो रहा है
? हम तो तत्काल अनुभव चाहते हैं !
स्वामीजी‒अनुभव नहीं होनेका दुःख
होता है क्या ? असली चाहना होगी तो नींद नहीं आयेगी, भोजन
नहीं भायेगा ! ऐसी चाहना होगी तो तत्काल अनुभव हो जायगा ।
श्रोता‒बिना अभ्यासके तत्त्वप्राप्तिकी
तेज इच्छा, तीव्र जिज्ञासा हो सकती
है क्या ?
स्वामीजी‒हाँ हो सकती है । भूख लगती है, प्यास लगती है तो क्या
अभ्याससे लगती है ? अभ्याससे नयी स्थिति बनती है ।
श्रोता‒अभ्याससे नयी स्थिति होते-होते जिज्ञासा हो जायगी !
स्वामीजी‒यह बात ठीक है, पर यह लम्बा रास्ता
है ! कितने जन्मोंमें बोध होगा, पता नहीं
! अन्तमें अभ्यास छूटेगा । शरीर-मन-बुद्धिसे सम्बन्ध छूटेगा । तत्त्वका बोध जड़ताके छूटनेसे होगा, जड़ताके द्वारा नहीं होगा । अभ्यास जड़ताके द्वारा ही होता है । शरीर-मन-बुद्धिके बिना अभ्यास हो ही नहीं सकता । जड़ताकी सहायतासे
ही अभ्यास होगा । जो जड़ताकी सहायतासे होगा, उस अभ्याससे जड़ता
कैसे छूटेगी ? जड़ताका सर्वथा त्याग होनेसे ही अपने स्वरूपमें
स्थिति होगी ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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