।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
     माघ शुक्ल अष्टमी, वि.सं.-२०७४, गुरुवार
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

पढ़े-लिखेको जल्दी बोध नहीं होगा, पर अपढ़को तत्काल हो जायगा ! क्योंकि पढ़ा-लिखा अभ्यास करेगा । बोधमें भविष्य होता ही नहीं ! जो बोधमें भविष्य मानते हैं, वे बोधको ठीक नहीं जानते । अभ्याससे बहुत समय लगेगा, और समय लगनेपर भी बोध नहीं होगा । बोधके लिये अन्त:करण-शुद्धिकी जरूरत नहीं है, केवल जोरदार चाहनाकी जरूरत है ।

आप शरीर नहीं होइतनी ही बात समझनी है, कोई लम्बी-चौड़ी बात नहीं । शरीरको आप ‘मैं’ भी कहते हो और ‘मेरा’ भी कहते हो । शरीर मैं हूँयह अभेदभावका सम्बन्ध है, और शरीर मेरा हैयह भेदभावका सम्बन्ध है । आप दोनोंमें एक बात कहो, चाहे अभेदभावका सम्बन्ध कहो, चाहे भेदभावका सम्बन्ध कहो । शरीरको ‘मैं’ भी कहना गलती है और ‘मेरा’ भी कहना गलती है । आप ‘मेरी घड़ी है’यह तो कहते हो, पर ‘मैं घड़ी हूँ’यह नहीं कहते । वास्तवमें शरीर ‘मैं’ भी नहीं है और ‘मेरा’ भी नहीं है । जब चौरासी लाख योनियोंवाले शरीर ‘मैं’ नहीं, तो फिर यह शरीर ‘मैं’ कैसे हुआ ? जब चौरासी लाख योनियोंमें जानेपर वे शरीर आपके नहीं हुए, तो फिर यह शरीर आपका कैसे हो गया ? शरीर मैं नहीं हूँयह सीधी-सरल बात है । शरीर तो छूटेगा ।

जबतक अहम् रहेगा, तबतक बोध नहीं होगा‒‘निर्ममो निरहङ्कारः’ (गीता २ । ७१; १२ । १३) गीतामें कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोगतीनों ही योगोंमें निर्मम-निरहंकार होनेकी बात आयी है ।

श्रोताआप तत्काल बोध होनेकी बात कहते हैं, पर हमें तत्काल अनुभव नहीं हो रहा है ? हम तो तत्काल अनुभव चाहते हैं !

स्वामीजीअनुभव नहीं होनेका दुःख होता है क्या ? असली चाहना होगी तो नींद नहीं आयेगी, भोजन नहीं भायेगा ! ऐसी चाहना होगी तो तत्काल अनुभव हो जायगा ।

श्रोताबिना अभ्यासके तत्त्वप्राप्तिकी तेज इच्छा, तीव्र जिज्ञासा हो सकती है क्या ?

स्वामीजीहाँ हो सकती है । भूख लगती है, प्यास लगती है तो क्या अभ्याससे लगती है ? अभ्याससे नयी स्थिति बनती है ।

श्रोताअभ्याससे नयी स्थिति होते-होते जिज्ञासा हो जायगी !


स्वामीजीयह बात ठीक है, पर यह लम्बा रास्ता है ! कितने जन्मोंमें बोध होगा, पता नहीं ! अन्तमें अभ्यास छूटेगा । शरीर-मन-बुद्धिसे सम्बन्ध छूटेगा । तत्त्वका बोध जड़ताके छूटनेसे होगा, जड़ताके द्वारा नहीं होगा । अभ्यास जड़ताके द्वारा ही होता है । शरीर-मन-बुद्धिके बिना अभ्यास हो ही नहीं सकता । जड़ताकी सहायतासे ही अभ्यास होगा । जो जड़ताकी सहायतासे होगा, उस अभ्याससे जड़ता कैसे छूटेगी ? जड़ताका सर्वथा त्याग होनेसे ही अपने स्वरूपमें स्थिति होगी ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे