Jan
27
(गत ब्लॉगसे आगेका)
मैं तीन बातें बार-बार कहता हूँ । ‘शरीर मैं हूँ’‒यह बात नहीं है, ‘शरीर मेरा है’‒यह बात भी नहीं है, और तीसरी खास बात है, जिसपर आप ध्यान नहीं देते,
वह है‒‘शरीर मेरे लिये नहीं है’ । शरीर आपके लिये
कैसे ? वह तो छूट जायगा । शरीरसे परमात्माकी प्राप्ति होगी‒यह बात है ही नहीं । जड़ताके द्वारा चेतनकी प्राप्ति कैसे होगी ? अगर परमात्माकी प्राप्ति चाहते हो तो बुराई छोड़ो । शरीर संसारकी सेवाके लिये
है, मेरे लिये नहीं । शरीर, धन-सम्पत्ति, वैभव आदि सब-की-सब सामग्री संसारके लिये ही है ।
शास्त्रकी विधि है कि श्राद्धमें ब्राह्मणको एक दिनमें
एक ही जगह भोजन करना चाहिये, दूसरी जगह नहीं । मेरेको एक सज्जनने सुनाया
कि आजकल श्राद्धमें ब्राह्मण चार-पाँच जगहका निमन्त्रण ले लेते
हैं; क्योंकि भोजनके साथ दक्षिणा भी मिलती है । सब जगह थोड़ा-थोड़ा खा लिया और दक्षिणा ले ली ! ऐसी स्थितिमें परमात्माकी
प्राप्ति कैसे होगी ? अच्छे-अच्छे साधु
भी पैसा लेने और मकान बनानेमें लगे हुए हैं ! एकान्तमें रहते
हुए भी शरीरका ही पालन-पोषण करेंगे । एकान्तमें भजन ज्यादा होता
है या नींद ज्यादा आती है, बताओ ?
आप देह नहीं हो, प्रत्युत देही अर्थात् देहवाले हो । वास्तवमें
देहवाला कहना भी बिल्कुल असंगत है; परन्तु कैसे बताया जाय ?
गीतामें देह-देहीका वर्णन है, पर आप देही (देहवाले) नहीं हो ।
परन्तु देही कहे बिना समझायें कैसे ? समझानेका और कोई तरीका नहीं
है । इसलिये गीताने देही स्वीकार किया है । क्या देह सदा आपके साथमें रहेगा ?
क्या आप सदा देही बने रहेंगे ? नहीं रहेंगे,
नहीं रहेंगे, नहीं रहेंगे ! अतः ‘देही’ कहनेका तात्पर्य देहसे अलग बतानेमें है ।
आप बातें तो बड़ी-बड़ी बनाते हो, पर
मुख्यता शरीरकी रहती है । आप जड़ताका तो पोषण कर रहे हो, और चाहते
हो परमात्माकी प्राप्ति ! कैसे होगी ? समाधि भी परमात्माकी प्राप्ति करानेवाली नहीं है । यह सिद्धियाँ
प्राप्त करानेवाली चीज है । जड़ताको महत्त्व देकर चिन्मयताको कैसे
प्राप्त करोगे ? अगर आप जड़तासे रहित हो जाओ तो चिन्मयताकी प्राप्तिके
सिवाय और क्या होगा, बताओ ?
श्रोता‒आप कहते हैं कि लगन
लगनेसे तत्काल भगवत्प्राप्ति हो सकती
है, तो जिनको भगवान्की कृपाका भरोसा है, उनको लगन बढ़ानी
चाहिये या भगवान्की कृपाका भरोसा बढ़ाना चाहिये ?
स्वामीजी‒कृपाका भरोसा बढ़ाओ तो लगन अपने-आप बढ़ जायगी,
मनका उत्साह बढ़ जायगा, चिन्ता मिट जायगी,
शंका मिट जायगी, सन्देह मिट जायगा ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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