(गत ब्लॉगसे आगेका)
संसारमें भगवान् इतने दुर्लभ नहीं हैं । वास्तवमें साधन
बतानेवाला दुर्लभ है ! एक श्लोक आता है‒
अमन्त्रमक्षरं नास्ति नास्ति मूलमनौषधम् ।
अयोग्यः पुरुषो नास्ति योजकस्तत्र दुर्लभः
॥
‘संसारमें ऐसा कोई अक्षर नहीं है, जो मन्त्र
न हो; ऐसी कोई जड़ी-बूटी नहीं है,
जो ओषधि न हो; और ऐसा कोई मनुष्य नहीं है,
जो योग्य न हो; परन्तु इनका संयोजक दुर्लभ है ।’
तात्पर्य है कि इस अक्षरका ऐसे उच्चारण किया जाय तो यह
अमुक काम करेगा,
इस जड़ी-बूटीको इस प्रकार दिया जाय तो अमुक रोग
दूर हो जायगा, यह मनुष्य इस प्रकार करे तो बहुत जल्दी इसकी उन्नति
हो जायगी‒इस प्रकार बतानेवाले पुरुष संसारमें दुर्लभ हैं ।
वास्तवमें ठीक तरहसे साधन बतानेवाला
दुर्लभ है, इसलिये देरी हो रही है । साधन बतानेवाला अनुभवी हो और जाननेकी
उत्कट इच्छा हो तो बहुत जल्दी काम होता है । मेहनत गुरु करता है, सिद्धि चेलेकी होती
है ! ठीक बतानेवाला वही होता है, जिसने
अनुभव किया है । अनुभव किये बिना बतानेवाला ठीक नहीं होता । बिना अनुभवके वह क्या बताये
? जिसने ठीक तरहसे अनुभव कर लिया है, वह
बतायेगा तो पट काम हो जायगा !
कई लोग कहते हैं कि इस जन्ममें तो हमारा कल्याण नहीं होगा
! यह बड़ी भारी गलती है
! परमात्माकी प्राप्तिमें भविष्य नहीं है; परन्तु कब ? जब जाननेवाला (अनुभवी)
मिल जाय और हमारेमें जाननेकी उत्कण्ठा हो । जिस विषयको आदमी जानता नहीं,
उस विषयमें वह अन्धा होता है । अन्धा आदमी दूसरेको मार्ग कैसे बताये
? आजकल ऐसे ही आदमी मिलते हैं ! उनमें गुरु
बननेका शौक तो है, पर गुरु बननेकी योग्यता नहीं है । वे शिष्यकी
पीड़ाको जानते ही नहीं ! श्ष्यिका हित किस बातमें है‒इस बातको वे जानते ही नहीं ! शंकराचार्यजी कहते हैं‒‘को वा गुरुर्यो हि हितोपदेष्टा’ (प्रश्नोत्तरी ७) ‘गुरु कौन है ? जो केवल हितका ही उपदेश करनेवाला है ।’ हितका
उपदेष्टा होनेपर भी अनुभवी होनेकी आवश्यकता है । जानकार अनुभवी बताता है तो काम पट
हो जाता है !
वास्तवमें काम बना-बनाया है ! आध्यात्मिक
बात आपकी अपनी बात है । कारण कि आप ईश्वरके अंश हैं‒‘ईस्वर
अंस जीव अबिनासी’ । ईश्वरका अंश होनेसे ईश्वर हमारे घरके हैं ! माता-पिता जितने घरके होते हैं, इतने घरका कोई नहीं होता । पर यह बात लोग समझते नहीं ! इसलिये मैं आप सबसे प्रार्थना करता हूँ कि कृपा करके
भगवत्प्राप्तिको कठिन मत मानो । एकदम सच्ची बात है ! क्योंकि यह तो अपने घरकी बात है । अपने माँ-बापकी बात बतानेवाला कोई मिल जाय तो कठिनता
किस बातकी ? ऐसे ही कोई बतानेवाला मिल जाता है तो परमात्मप्राप्ति
कठिन नहीं रहती । देरी तभी लगती है, जब हमारी जोरदार इच्छा नहीं
है अथवा गुरु समर्थ नहीं है ।
पारस केरा गुण किसा, पलट्या नहीं लोहा
।
कै तो निज पारस नहीं, कै बीच रहा
बिछोहा ॥
पारस भी असली हो, लोहा भी असली हो और बीचमें कोई आड़ न
हो तो तत्काल काम होता है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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