(गत ब्लॉगसे आगेका)
श्रोता‒आपने कहा था कि
जो बात मुझे चालीस सालमें मिली, वह चालीस मिनटमें बतायी जा सकती है, तो वह बात क्या है
?
स्वामीजी‒चालीस मिनट भी नहीं लगेगे ! वह बात यह है कि संसारकी इच्छा मिट जाय तो तत्काल तत्त्वप्राप्ति हो जायगी । संसारकी इच्छा रखनेसे फायदा कुछ नहीं और नुकसान बड़ा भारी है ! इच्छा छोड़नेसे तत्काल प्राप्ति हो जाय । भीतरकी इच्छाओंका त्याग किये बिना
काम होता नहीं ।
कबीर मनुआँ एक
है, भावे जिधर
लगाय ।
भावे हरि की भगति करे, भावे विषय
कमाय ॥
संसारकी इच्छा छोड़ दो तो बहुत जल्दी काम हो जायगा । पर
यह बात जल्दी अक्लमें आती नहीं ! मैं भुक्तभोगी हूँ ! संसारकी इच्छा छोड़ दो तो परमात्माकी इच्छा स्वतः-स्वाभाविक पूरी हो जायगी । उसके लिये उद्योग नहीं
करना पड़ेगा । संसारकी इच्छा न छूटे तो भगवान्से प्रार्थना करो कि ‘हे नाथ ! संसारकी इच्छासे पिण्ड
छुड़ाओ !’ उनकी कृपासे काम होगा । भगवान्
कृपा कैसे करते हैं‒यह मैं नहीं
जानता, पर वे कृपा करते हैं‒यह मैं जानता
हूँ । हमारी योग्यताके बिना काम होता है‒ऐसी कृपा भगवान् करते हैं !
सच्ची बातका दुःख भगवान्से सहा नहीं
जाता । परन्तु संसारके लिये रोओ तो भगवान् सह लेते हैं ! मर जाओ
तो भी परवाह नहीं करते ! परमात्माकी इच्छा जोरदार हो और रो पड़ो तो यह दुःख भगवान्
सह नहीं सकते;
क्योंकि यह सच्चा दुःख है । सांसारिक पदार्थोंके लिये रोओ तो भगवान्पर कुछ असर नहीं पड़ता । भगवान् यह देखते हैं कि पहलेसे ही काफी दुःख है,
फिर और दुःख क्यों माँगता है !
यह बहुत सुगम रास्ता है । परन्तु अपनेसे होता नहीं और
क्या बाधा है‒यह जानते नहीं तो आप दुःखी हो जाओ । वह दुःख भगवान् नहीं सहते । भगवान् किसी
सन्तको मिलायेंगे, कोई युक्ति बतायेंगे, कोई उपाय बतायेंगे ! भगवान्के
पासमें जितने उपाय हैं, उनको हम जानते नहीं हैं ! आप केवल दुःखी
हो जाओ । काम हो जायगा ! यह
उपाय हम सब जानते हैं और काममें भी लिया हुआ है । जब हम बालक थे, तब कोई इच्छा होती तो रो देते । काम बन जाता ! माँको
सब काम छोड़कर हमारा काम करना पड़ता ! भगवान् तो सदाकी माँ है !
इससे सुगम बात और क्या बताऊँ ? रोनेसे मुफ्तमें
काम बनता है ! भगवान्को ‘हे नाथ !
हे नाथ !’ पुकारो और व्याकुल हो जाओ । सब काम बन
जायगा ! यह सबके लिये एकदम बढ़िया दवाई है !
ज्ञानमार्गमें देरी हो सकती है, पर भक्तिमार्गमें देरी
नहीं होती । गीतामें गुरुकी बात ज्ञानमार्गवालोंके लिये आयी है‒‘आचार्योपासनम्’ (गीता १३ । ७) । भक्तिमार्गवालोंके
लिये गुरुकी बात नहीं आयी है । भक्तिमार्ग बड़ा सरल, सुगम है ।
इसमें भगवान्का बड़ा सहारा है ! ठाकुरजी
सब काम करते हैं ! आप भगवान्के आगे रोओ
तो सही ! देखो कैसे काम बनता है !
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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