।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
  फाल्गुन शुक्ल सप्तमी, वि.सं.-२०७४, गुरुवार
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोतागीताजीका पाठ, रामायणका पाठ और भगवन्नाम-जपइन तीनोंमें कौन श्रेष्ठ है ?

स्वामीजीइनमें लगन श्रेष्ठ है । भीतरकी लगन होनी चाहिये, चाहे वह पाठके साथ हो, चाहे नामके साथ हो ।

श्रोताआप कहते हैं कि भलाई करो, पर भलाई करते हैं तो हमारा नुकसान होता है ! नुकसान सहते रहें और भलाई करें या भलाई करना छोड़ दें ?

स्वामीजीभलाई करना मत छोड़ो । नुकसान सह लो । परिणाममें नुकसान नहीं होगा । कृपा करके कृपानाथ ! आप भलाई मत छोड़ो, मत छोड़ो, मत छोड़ो ! दुःख पा लो, पर भलाई मत छोड़ो । भलाई छोड़ोगे तो दुःखोंका अन्त नहीं आयेगा ! आज आप भले ही बात मानो, चाहे मत मानो, बहुत दुःख पाना पड़ेगा, पड़ेगा, पड़ेगा !!

श्रोताआपने कहा कि मनसे सम्बन्ध छोड़ दो, तो मनसे सम्बन्ध कैसे छोड़े ?

स्वामीजीमन नहीं माने तो आप मान जाओ ! मन नहीं लगता तो आप लग जाओ । आप मनसे अलग हो । आप और मन एक हो क्या ? बताओ । आपसे हम पूछें कि आपका मन है या मनके आप हो अथवा मन आप हो ? आपको कहना ही पड़ेगा कि मन हमारा है । मनको हमारा (अपना) मत मानो । मन हमारा कहना नहीं मानता, इसलिये हम मनको हमारा नहीं मानेंगे ।

श्रोताआपने कहा था कि सबको छुट्टी दे दो अगर बच्चोंको छुट्टी दे दें तो वे उद्दण्ड हो जायँगे इस विषयमें क्या करना चाहिये ?

स्वामीजीउनको प्रेमसे न्याययुक्त बात कह दो और मनसे छुट्टी दे दो । पर लोगोंमें इसकी प्रसिद्धि नहीं करनी है । वे मानें तो आनन्द, नहीं मानें तो बहुत आनन्द ! आजकल प्रायः करके बच्चे कहना नहीं मानते । जब कहना ही नहीं मानें तो क्या करें ? बताओ । छुट्टी देनेका यह अर्थ नहीं है कि बालकोंका पालन-पोषण नहीं करना चाहिये, उनको शिक्षा नहीं देनी चाहिये । छुट्टी देनेका अर्थ है कि हम मालिक नहीं बनेगे ।


हमने तो पहलेसे ही सबको छुट्टी दे रखी है ! हम न किसीके गुरु बनते हैं, न किसीके मालिक बनते हैं, पर बातें बढ़िया सुना देते हैं । नीयत अच्छी रखते हैं । बातें सुनानेमें कपट करते नहीं । आप बात नहीं मानें तो नाराज होते नहीं । आप हमारा कहना नहीं मानें तो क्या करें ? बताओ । छुट्टी देनेका मतलब है कि आपपर शासन नहीं करेंगे । अच्छी बात कह देंगे, फिर जैसी मरजी हो, वैसे करो !

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे