(गत ब्लॉगसे आगेका)
श्रोता‒एक माँका
प्रश्न है कि मेरा पचीस
वर्षका लड़का है, वह मेरी बात मानता नहीं, झगड़ा करता है ! मैं क्या करूँ ?
स्वामीजी‒उसको प्रेमसे समझाओ कि माँ-बेटा भी आपसमें लड़े
तो कहाँ प्रेम रहेगा ? पचीस वर्षका जवान लड़का माँसे लड़े तो वह
सेवा कब करेगा ? माँ चाहे जितना शासन करे, कुछ भी कहे, माँसे लड़ाई मत
करो । जो माँ-बापका आदर करता है, उसका भगवान्
आदर करते हैं । शास्त्रमें सबसे ऊँचा माँका दर्जा बताया
है । माँका नाम सबसे पहले लेते हैं; जैसे‒सीताराम, राधेश्याम, गौरीशंकर आदि
। उपनिषद्में भी सबसे पहले माँका नाम आया है‒
मातृदेवो भव । पितृदेवो भव । आचार्यदेवो भव । अतिथिदेवो भव ।
(तैत्तिरीयोपनिषद्
१ । ११)
‘तुम मातामें देवबुद्धि रखनेवाले बनो, पितामें
देवबुद्धि रखनेवाले बनो, आचार्यमें देवबुद्धि रखनेवाले बनो,
अतिथिमें देवबुद्धि रखनेवाले बनो ।’
उस माँकी बात न मानना बड़ा भारी अन्याय है ! हमारा पालन करनेमें
माँने कितना कष्ट सहा है ! रातों जगकर पालन किया है !
पेशाब कर देते तो गीली जगह माँ सोती और सूखी जगह बेटेको सुलाती कि बच्चेको
सरदी न लग जाय ! माँके समान कोई सेवा करनेवाला नहीं है !
दाईका काम, नाईका काम, नौकरका
काम, मेहतरका काम, छोटे-से-छोटा और ऊँचे-से-ऊँचा सब काम माँ करती है ! माँने खाना सिखाया,
बैठना सिखाया, चलना सिखाया, पढ़ना सिखाया ! उस माँसे भी लड़े तो
वह कलियुगकी मूर्ति है !
माँसे मेरा कहना है कि तुम क्षमा कर
दो । तुम्हारी
गोदीमें टट्टी फिरी है, तुम्हारी गोदीमें पेशाब किया है‒ऐसा आपने
सहा है, तो और भी सहो ! माँ पृथ्वीका स्वरूप है । अन्न, जल सब पृथ्वीसे मिलता है । हम पृथ्वीको लातोंसे मारते हैं, उसपर धूकते हैं, टट्टी-पेशाब करते
हैं, फिर भी पृथ्वी माता क्षमा करती है । ऐसे आप भी क्षमा करो
और प्रेमसे समझाओ । जब वह लड़ाई करे, उस समय मत बोलो, चुप रहो । दूसरे समय प्यारसे, सिरपर हाथ रखकर समझाओ ।
वह माने तो अच्छी बात, नहीं माने तो बहुत अच्छी बात !
हृदयमें यह धारण कर लो कि सिवाय भगवान्के कोई अपना है ही नहीं ! केवल भगवान्को अपना मानो । न कोई बेटा है, न पोता है, न स्त्री है, न भाई है, न सम्बन्धी
है, न माँ है, न बाप है, केवल भगवान् अपने हैं । सच्ची बात तो यह है कि
अनन्त ब्रह्माण्डोंमें तिल-जितनी चीज भी आपकी नहीं है !
इसलिये उपाय यह है कि मनसे सबको छुट्टी दे दो । छुट्टी नहीं दोगे तो
और करोगे क्या ? बताओ ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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