।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
  फाल्गुन शुक्ल अष्टमी, वि.सं.-२०७४, शुक्रवार
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोताएक माँका प्रश्न है कि मेरा पचीस वर्षका लड़का है, वह मेरी बात मानता नहीं, झगड़ा करता है ! मैं क्या करूँ ?

स्वामीजीउसको प्रेमसे समझाओ कि माँ-बेटा भी आपसमें लड़े तो कहाँ प्रेम रहेगा ? पचीस वर्षका जवान लड़का माँसे लड़े तो वह सेवा कब करेगा ? माँ चाहे जितना शासन करे, कुछ भी कहे, माँसे लड़ाई मत करो । जो माँ-बापका आदर करता है, उसका भगवान् आदर करते हैं । शास्त्रमें सबसे ऊँचा माँका दर्जा बताया है । माँका नाम सबसे पहले लेते हैं; जैसेसीताराम, राधेश्याम, गौरीशंकर आदि । उपनिषद्में भी सबसे पहले माँका नाम आया है

मातृदेवो भव । पितृदेवो भव । आचार्यदेवो भव । अतिथिदेवो भव ।
                                                      (तैत्तिरीयोपनिषद् १ । ११)

‘तुम मातामें देवबुद्धि रखनेवाले बनो, पितामें देवबुद्धि रखनेवाले बनो, आचार्यमें देवबुद्धि रखनेवाले बनो, अतिथिमें देवबुद्धि रखनेवाले बनो ।’

उस माँकी बात न मानना बड़ा भारी अन्याय है ! हमारा पालन करनेमें माँने कितना कष्ट सहा है ! रातों जगकर पालन किया है ! पेशाब कर देते तो गीली जगह माँ सोती और सूखी जगह बेटेको सुलाती कि बच्चेको सरदी न लग जाय ! माँके समान कोई सेवा करनेवाला नहीं है ! दाईका काम, नाईका काम, नौकरका काम, मेहतरका काम, छोटे-से-छोटा और ऊँचे-से-ऊँचा सब काम माँ करती है ! माँने खाना सिखाया, बैठना सिखाया, चलना सिखाया, पढ़ना सिखाया ! उस माँसे भी लड़े तो वह कलियुगकी मूर्ति है !


माँसे मेरा कहना है कि तुम क्षमा कर दो । तुम्हारी गोदीमें टट्टी फिरी है, तुम्हारी गोदीमें पेशाब किया हैऐसा आपने सहा है, तो और भी सहो ! माँ पृथ्वीका स्वरूप है । अन्न, जल सब पृथ्वीसे मिलता है । हम पृथ्वीको लातोंसे मारते हैं, उसपर धूकते हैं, टट्टी-पेशाब करते हैं, फिर भी पृथ्वी माता क्षमा करती है । ऐसे आप भी क्षमा करो और प्रेमसे समझाओ । जब वह लड़ाई करे, उस समय मत बोलो, चुप रहो । दूसरे समय प्यारसे, सिरपर हाथ रखकर समझाओ । वह माने तो अच्छी बात, नहीं माने तो बहुत अच्छी बात ! हृदयमें यह धारण कर लो कि सिवाय भगवान्के कोई अपना है ही नहीं ! केवल भगवान्को अपना मानो । न कोई बेटा है, न पोता है, न स्त्री है, न भाई है, न सम्बन्धी है, न माँ है, न बाप है, केवल भगवान् अपने हैं । सच्ची बात तो यह है कि अनन्त ब्रह्माण्डोंमें तिल-जितनी चीज भी आपकी नहीं है ! इसलिये उपाय यह है कि मनसे सबको छुट्टी दे दो । छुट्टी नहीं दोगे तो और करोगे क्या ? बताओ ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे