।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
  फाल्गुन शुक्ल नवमी, वि.सं.-२०७४, शनिवार
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

सज्जनो ! अपने धर्मका पालन करो । अधर्म मत करो । अन्याय मत करो । प्रेमका बर्ताव करो । उद्दण्डता मत करो । सत्संग करनेवाले भाई-बहन भी अगर प्रेमका, आदरका बर्ताव नहीं करेंगे तो हम किनसे आशा रखेंगे ? सत्संग करनेवाले भी नहीं करेंगे तो कौन करेगा ? आप मामूली नहीं हो । आप सत्संगी हो, सत्संगमें रुचि रखते हो । यहाँ आने-जानेमें कितना कष्ट सहते हो ! कितने पैसे खर्च करते हो ! आपसे ही हम अच्छी बातकी आशा नहीं रखें तो और किससे रखें ? सबके साथ अच्छा बर्ताव आप भी नहीं करोगे तो कौन करेगा ? दूसरोंको तो अच्छी बातें सुननेको भी नहीं मिलतीं‒श्रवणायापि बहुभिर्यो न लभ्यः’ (कठोपनिषद् १ । २७) कौन सुनायेगा ? क्यों सुनायेगा ?

सबसे प्यारसे बोलो, प्यारसे सुनो, प्यारसे देखो । किसीको कोई चीज भी दो तो प्यारसे दो । हरेक बर्तावमें प्यारका सम्पुट लगा दो । शरीरोंका भरोसा नहीं है कि कबतक जीयेंगे ! अब आगे जितना जीवन है, उसमें सबसे प्रेमका, आदरका बर्ताव करो । दूसरा करे या न करे, उसकी परवाह मत करो । दूसरा माने या न माने, राजी हो या नाराज हो, आप अपना काम ठीकसे करो‘स्वे स्वे कर्मण्यभिरत संसिद्धिं लभते नरः’ (गीता १८ । ४५) ‘अपने-अपने कर्ममें प्रीतिपूर्वक लगा हुआ मनुष्य सम्यक् सिद्धि (परमात्मा)-को प्राप्त कर लेता है ।’ सबके साथ स्नेहका, आदरका, मीठा, अच्छा बर्ताव करो । पहले दुःख पाना पड़ता है, पर अन्तमें विजय आपकी है ।

सब कुछ एक परमात्मा ही है‘वासुदेवः सर्वम्’ (गीता ७ । १९) परमात्माके सिवाय कुछ नहीं है । पृथ्वी, जल, तेज, वायु आकाश, मन, बुद्धि, अहंकार, जीव और ईश्वरये सब-के-सब एक परमात्मा ही है । इसमें उद्योग इतना ही है कि इसको याद रखना है । जहाँ दृष्टि जाय, केवल याद रखो कि यह परमात्मा है । देखने, सुनने, समझनेमें जो आये, वह सब परमात्माका स्वरूप है । कितनी सुगम बात है ! इस सुगम बातको केवल याद रखना है । इतना ही नहीं करोगे तो फिर क्या करोगे ? वृक्ष देखो तो भगवान् हैं, मनुष्य देखो तो भगवान् हैं, पशु-पक्षी देखो तो भगवान् हैं, पहाड़ देखो तो भगवान् हैं, जल देखो तो भगवान् हैं, हवा देखो तो भगवान् हैं, आकाश देखो तो भगवान् हैं । सब भगवान् ही हैं, और है ही क्या ! इसको केवल याद रखना है । यह नामजपसे कम नहीं है । यह नामजपसे भी श्रेष्ठ बात है !

श्रोताइसको व्यवहारमें कैसे लायें ?


स्वामीजीव्यवहारमे यह लाना है कि राग-द्वेष, काम-क्रोध नहीं करना है । सब भगवान् हैंयह बात दृढ़ हो जायगी तो राग-द्वेष, काम-क्रोध अपने-आप शान्त हो जायँगे । अगर व्यवहारमें राग- द्वेष, काम-क्रोध हो जायँ तो ‘हे नाथ ! हे मेरे नाथ !’ पुकारो ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे