Feb
24
(गत ब्लॉगसे आगेका)
सज्जनो ! अपने धर्मका पालन करो । अधर्म मत करो
। अन्याय मत करो । प्रेमका बर्ताव करो । उद्दण्डता मत करो । सत्संग करनेवाले भाई-बहन भी अगर प्रेमका, आदरका बर्ताव नहीं करेंगे तो हम
किनसे आशा रखेंगे ? सत्संग करनेवाले भी नहीं करेंगे तो कौन करेगा
? आप मामूली नहीं हो । आप सत्संगी हो, सत्संगमें
रुचि रखते हो । यहाँ आने-जानेमें कितना कष्ट सहते हो !
कितने पैसे खर्च करते हो ! आपसे ही हम अच्छी बातकी
आशा नहीं रखें तो और किससे रखें ? सबके साथ अच्छा बर्ताव आप भी
नहीं करोगे तो कौन करेगा ? दूसरोंको तो अच्छी बातें सुननेको भी
नहीं मिलतीं‒‘श्रवणायापि बहुभिर्यो न
लभ्यः’ (कठोपनिषद् १ । २७) । कौन सुनायेगा ? क्यों सुनायेगा ?
सबसे प्यारसे बोलो, प्यारसे सुनो, प्यारसे
देखो । किसीको कोई चीज भी दो तो प्यारसे दो । हरेक बर्तावमें प्यारका सम्पुट लगा दो
। शरीरोंका भरोसा नहीं है कि कबतक जीयेंगे ! अब आगे जितना जीवन
है, उसमें सबसे प्रेमका, आदरका बर्ताव करो
। दूसरा करे या न करे, उसकी परवाह मत करो । दूसरा माने या न माने,
राजी हो या नाराज हो, आप अपना काम ठीकसे करो‒‘स्वे स्वे कर्मण्यभिरत संसिद्धिं लभते नरः’ (गीता १८ । ४५) ‘अपने-अपने कर्ममें प्रीतिपूर्वक लगा हुआ मनुष्य सम्यक् सिद्धि (परमात्मा)-को प्राप्त कर लेता है ।’ सबके साथ स्नेहका, आदरका, मीठा,
अच्छा बर्ताव करो । पहले दुःख पाना पड़ता है, पर
अन्तमें विजय आपकी है ।
सब कुछ एक परमात्मा ही है‒‘वासुदेवः
सर्वम्’ (गीता ७ । १९) । परमात्माके सिवाय कुछ नहीं है । पृथ्वी,
जल, तेज, वायु आकाश,
मन, बुद्धि, अहंकार,
जीव और ईश्वर‒ये सब-के-सब एक परमात्मा ही है । इसमें उद्योग इतना ही है कि इसको याद रखना है । जहाँ
दृष्टि जाय, केवल याद रखो कि यह परमात्मा है । देखने,
सुनने, समझनेमें जो आये, वह सब परमात्माका स्वरूप है । कितनी सुगम बात है ! इस
सुगम बातको केवल याद रखना है । इतना ही नहीं करोगे तो फिर क्या करोगे ? वृक्ष देखो तो भगवान् हैं, मनुष्य देखो तो भगवान् हैं,
पशु-पक्षी देखो तो भगवान् हैं, पहाड़ देखो तो भगवान् हैं, जल देखो तो भगवान् हैं,
हवा देखो तो भगवान् हैं, आकाश देखो तो भगवान् हैं
। सब भगवान् ही हैं, और है ही क्या ! इसको
केवल याद रखना है । यह नामजपसे कम नहीं है । यह नामजपसे भी श्रेष्ठ बात है !
श्रोता‒इसको व्यवहारमें कैसे लायें ?
स्वामीजी‒व्यवहारमे यह लाना है कि राग-द्वेष, काम-क्रोध नहीं करना है । सब भगवान् हैं‒यह बात दृढ़ हो जायगी तो राग-द्वेष, काम-क्रोध अपने-आप शान्त हो जायँगे
। अगर व्यवहारमें राग- द्वेष, काम-क्रोध हो जायँ तो ‘हे नाथ ! हे मेरे नाथ !’ पुकारो ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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