।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
  फाल्गुन शुक्ल दशमी, वि.सं.-२०७४, रविवार
एकादशी-व्रत कल है
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

अपने मित्रोंको कह दो कि वे आपको याद दिला दिया करें कि ये भगवान् हैं । एक ऐसा मित्र बना लो, जो आपको याद दिलाता रहे । आपसमें एक-दूसरेकी सहायता करो । राग-द्वेष हो जाय तो एक-दूसरेको चेत करा दो । केवल याद दिलानेमात्रसे बड़ा फायदा है, और बड़ा भारी उपकार है ! भगवान्की याद सम्पूर्ण विपत्तियोंका नाश करनेवाली है‘हरिस्मृतिः सर्वविपद्विमोक्षणम्’ (श्रीमद्भा ८ । १० । ५५) असली मित्र वही है, जो भगवान्की याद करा दे । सन्त, श्रेष्ठ पुरुष, हमारे हितैषी, माता, पिता, सुहृद मित्र वही हैं, जो हमें भगवान्की याद करा दें । अच्छे मित्रके लक्षण इस प्रकार बताये गये हैं

पापान्निवारयति  योजयते हिताय
गह्यानि गूहति गुणान् प्रकटीकरोति ।
आपद्गतं च न जहाति ददाति काले
सन्मित्रलक्षणमिदं  प्रवदन्ति   सन्तः ॥
                                 (भर्तहरिनीतिशतक ७३)

‘सन्तलोग अच्छे मित्रका यह लक्षण बताते हैं कि वह मित्रको पापोंसे रोकता है, कल्याणकारी कामोंमें लगाता है, उसकी गुप्त बातको छिपाता है, उसके गुणोंको प्रकट करता है, विपत्तिमें उसका साथ नहीं छोड़ता और समय पड़नेपर (धन आदि) देता है ।’

असली सत्संग अर्थात् सत्का संग हैभगवान् याद रहें । परमात्मा ‘सत्’ हैं और उनको याद रखना ‘सत्संग’ है । केवल इतना याद कर लो कि यह परमात्मा है तो इतनेमात्रसे भाव शुद्ध हो जायगा । चित्रकार पहले रेखा खींचता है, फिर उसमें रंग भरता है । ऐसे ही भगवान्को याद करना रेखाचित्र हो गया ! भगवान्को याद करना मामूली बात नहीं है । हरदम जप करनेसे इतनी सिद्धि नहीं होती, जितनी भगवान्को याद करनेसे होती है ।

हमने सोचा कि सुगमतासे सब भाइयोंका कल्याण कैसे हो ? सब बहनोंका कल्याण कैसे हो ? सबका उद्धार कैसे हो ? तो सुगम मार्ग यह है कि हरदम भगवान्को याद रखो कि यह सब भगवान् हैं । यह सबका कल्याण करनेवाली बात है !

श्रोताआपने कहा कि सबको वासुदेव मानो‘वासुदेवः सर्वम्’, तो भक्त अपने-आपको क्या माने ? वासुदेव माने या सेवक माने ?


स्वामीजीदोनों मान सकते हैं । ऐसा माने कि सभी परमात्माके स्वरूप हैं तो मैं भी परमात्माका स्वरूप हूँ; परन्तु इसका ज्ञान पूरा न होनेतक ऐसा माने कि मैं भक्त हूँ, मैं दास हूँ, मैं जिज्ञासु हूँ । तात्पर्य है कि वास्तवमें मैं परमात्मस्वरूप ही हूँ पर जबतक इसको पूरा नहीं समझा, तबतक मैं दास हूँ ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे