।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
 फाल्गुन शुक्ल द्वादशी, वि.सं.-२०७४, मंगलवार
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोतानामजप और सुमिरनमें क्या फर्क है ?

स्वामीजीनामजप जबानसे होता है और सुमिरन (स्मरण) मनसे होता है ।

श्रोतारामायण कहती है‘साधु ते होइ कारज हानि’ (मानस, सुन्दर ) परन्तु मेरा अनुभव यह है कि सन्तोंने ही मुझे लूटा है !

स्वामीजीवे सन्त हैं ही नहीं‘कालनेमि जिमि रावन राहू’ (मानस, बाल ७ । ३) ! कालनेमि सन्त था क्या ? रावण सन्त था क्या ? आपको कालनेमि, रावण जैसे लोग मिले हैं, सन्त नहीं मिला है ! क्या रावण, कालनेमि मिलनेसे कल्याण हो जायगा ? उनसे तो दुःख ही मिलेगा ! यह तो होगा ही ! यह न्याय है !

श्रोताआप कहते हो कि मैं भगवान्का अंश हूँ और एक तरफ कहते हो कि ‘वासुदेवः सर्वम्’ सब भगवान्के स्वरूप हैं, तो मुझे स्पष्ट आज्ञा करो कि मैं कौन-सा मानूँ ? भगवान्का अंश मानूँ या भगवत्स्वरूप मानूँ ?

स्वामीजीआपको प्यारा कौन-सा लगता है ? मेरा बताया हुआ इतना काम नहीं करेगा, जितना आपको प्यारा लगनेवाला काम करेगा ।

श्रोताभगवान्का अंश अच्छा लगता है !

स्वामीजीबहुत अच्छा, यही मानो । हमारी सम्मति भी यही है ।

श्रोतायहाँके सत्संगसे मुझे बहुत लाभ होता है घरमें ऐसा सत्संग कैसे मिले ? इसका उपाय बतायें

स्वामीजीहमारी पुस्तकें पढ़ो । गीता ‘साधक-संजीवनी, परिशिष्ट-सहित’ सबसे मुख्य है ।

श्रोताससुरालवाले दहेज माँगते हैं, इसलिये हमको लड़की पैदा करनेमें डर लगता है, जिससे गर्भपात करवाते हैं, तो दहेज लेनेवाले पापी हैं कि हम पापी हैं ?

स्वामीजीदोनों ही पापी हैं ! पापी होनेमें कोई खर्चा लगता है क्या ? हमारा वंश माँसे चला है । माँका दर्जा सबसे ऊँचा है । छोटी-सी बच्ची भी मातृशक्ति है । उसका गर्भपात करना बड़ा भारी पाप है ! लड़केका गर्भपात करनेकी अपेक्षा लड़कीका गर्भपात करना ज्यादा पाप है ! कारण कि वह वंश पैदा करनेवाली मातृशक्ति है । आप-हम सब माँसे पैदा हुए हैं, माँका दूध पिया है, माँकी गोदीमें खेले हैं ! माँने खुद कष्ट पाकर हमारा पालन किया है ।

लोग समझते नहीं हैं ! दहेजके धनसे आप धनी हो जाओगे, यह बात है ही नहीं । जो पैसा दूसरेको दुःख देकर आया है, वह आपके घरके पैसेका भी नाश करेगा !

अन्यायोपार्जितं द्रव्यं दशवर्षाणि तिष्ठति ।
प्राप्ते  चैकादशे  वर्षे  समूलं  तद्विनश्यति ॥
                                (चाणक्यनीतिदर्पण १५ । ६)


‘अन्यायसे उपार्जित धन दस वर्षतक ठहरता है, पर ग्यारहवाँ वर्ष आनेपर वह मूलसहित नष्ट हो जाता है ।’

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे