Mar
01
(गत ब्लॉगसे आगेका)
श्रोता‒कई महिलाएँ
भूलसे गर्भपात करवा चुकी हैं
। उनके
लिये क्या प्रायश्चित्त है, जिससे उनके
कल्याणमें कोई बाधा नहीं रहे
?
स्वामीजी‒नामजप करें । सवा लाखसे कम नहीं और
तीन लाखसे ज्यादा नहीं‒इतना नामजप रोजाना (एक वर्षतक) करें । भगवान्से प्रार्थना करें कि फिर कभी ऐसा काम
नहीं करूँगी । सब माफ हो जायगा ।
श्रोता‒शरीरके रहते हुए भगवत्प्राप्ति
होनेकी क्या कसौटी है ? कैसे पता
चले कि भगवत्प्राप्ति हो गयी
?
स्वामीजी‒भोजन करनेकी क्या कसौटी है ? जल पीनेकी क्या कसौटी
है ? बताओ । मानो तृप्त हो गये, अब कुछ
भी नहीं चाहिये । इस तरह कुछ भी नहीं चाहिये, कभी भी नहीं चाहिये,
किंचिन्मात्र भी नहीं चाहिये-यह कसौटी है । भगवत्प्राप्ति होनेपर स्वप्नमें भी कोई चाहना नहीं रहती । सदाके
लिये तृप्ति हो जाती है ।
श्रोता‒सन्तकी लिखी हुई पुस्तक पढ़ना, सन्तके मुखसे प्रवचन सुनना और सन्तके
पास जाकर बैठना‒इन तीनोंमें कौन-सी बात श्रेष्ठ है ?
स्वामीजी‒सन्तके वचन पढ़ना-सुनना और वचनोंमें जो
अच्छा लगे, उनका पालन करना ।
श्रोता‒मेरी सन्तोंके दर्शनकी इच्छा होती है, पर पतिदेव मना करते हैं
! वे कहते हैं कि सन्तोंके दर्शनसे क्या मिलता है ? उनको क्या समझाऊँ ?
स्वामीजी‒सन्तोंके दर्शनसे पाप दूर हो जाते हैं‒‘संत
दरस जिमि पातक टरई’ (मानस, किष्णिन्धा॰ १७ । ३) ।
गंगा पापं शशी तापं दैन्यं कल्पतरुर्हरेत् ।
पापं ताप तथा दैन्यं सद्य: साधुसमागमः
॥
(र्गासहिता,
अश्वमेध॰ ६२ । ९)
‘गंगा पापका, चन्द्रमा
तापका और कल्पवृक्ष दीनताका नाश करता है । परन्तु सन्तोंका संग पाप, ताप और दीनता‒तीनोंका तत्काल नाश कर देता है ।’
श्रोता‒मैंने बहुत मन्दिरोंके, तीर्थोंके दर्शन किये, पर मेरी श्रद्धा
नहीं हो रही है, क्या करूँ ?
स्वामीजी‒कोई हर्ज नहीं । भगवान्पर श्रद्धा होती है
कि नहीं ?
श्रोता‒भगवान्पर श्रद्धा होती है ।
स्वामीजी‒बस, एक भगवान्पर श्रद्धा
करो । अन्य किसीपर श्रद्धा करनेकी जरूरत नहीं । न साधुओंपर श्रद्धा करनेकी जरूरत है,
न तीर्थोंपर । एक कहावत है कि हाथीके पैरमें सब पैर समा जाते हैं‒‘सर्वे पदा हस्तिपदे निमग्नाः’ ।
श्रोता‒भगवान्के स्मरण और ध्यानमें क्या अन्तर है ?
स्वामीजी‒स्मरण पहले होता है, ध्यान पीछे होता है
। स्मरणमें बार-बार भगवान्की याद आती है
। ध्यानमें वृत्ति भगवान्में लग जाती है । वृत्ति तल्लीन होनेपर
समाधि होती है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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