।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
चैत्र कृष्ण प्रतिपदा, वि.सं.-२०७४, शुक्रवार
                      होली (वसन्तोत्सव)
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

शान्ति त्यागसे मिलती है‘त्यागाच्छान्तिरनन्तरम्’ (गीता १२ । १२) मुश्किल यह हो गयी कि सभी शान्ति चाहते हैं, पर त्याग करना नहीं चाहते ! पुण्यका फल (सुख) चाहते हैं, पर पुण्य करना नहीं चाहते ! पापका फल (दुःख) नहीं चाहते, पर पाप करते हैं

पुण्यस्य फलमिच्छन्ति पुण्यं नेच्छन्ति मानवाः ।
न  पापफलमिच्छन्ति    पापं  कुर्वन्ति  यत्नतः ॥

शान्ति चाहते हो तो मैं-मेरेका त्याग करो । भगवान्‌ने अपरा प्रकृतिको अपना बताया है । जैसे पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाशपर अपना अधिकार नहीं है, ऐसे ही मन, बुद्धि और अहंकारपर भी अपना अधिकार नहीं है । मन, बुद्धि और अहंकार भी अपने नहीं हैं । ये सब भगवान्‌के हैं । भगवान्‌की चीज भगवान्‌को सौंप दें तो स्वतः शान्ति प्राप्त हो जायगी ।

अहंकार दो तरहका होता हैप्रकृतिका धातुरूप अहंकार और जड-चेतनकी ग्रन्थिरूप अहंकार । धातुरूप अहंकार तो परमात्माका है । परन्तु जड़ और चेतनकी एकता माननेसे जो अहंकार होता है, वह अपना माना हुआ है । उस अहंकारमें जड़-अंश प्रकृतिका मिला हुआ है और चेतन-अंश अपना मिला हुआ है । प्रकृतिके अंशको प्रकृतिका मानें और उसमें अपनापन छोड़ दें । फिर स्वतः-स्वाभाविक शान्ति प्राप्त हो जायगी । उसमें अपनापन करना ही बन्धन है ।

सब संसार ईश्वररचित है । उसमें अपनापन छोड़ दो तो सब ठीक हो जायगा । उसमें अपनापन रहेगा नहीं, रहनेवाला है ही नहीं । अपनापन छोड़ दो तो निहाल हो जाओगे, और रखोगे तो दुःख पाओगे । जिस संसारमें हम रहते हैं, उसमें अपनी चीज कोई नहीं है । अपने केवल भगवान् हैं । जो चीज अपनी नहीं है, उसका सदुपयोग करनेकी हमपर जिम्मेवारी है ।


आप कम जाननेवाले हैं, मैं ज्यादा जाननेवाला हूँइस भावसे मैं नहीं कह रहा हूँ । मैंने बहुत दिनोंतक व्याख्यान दिया, अब भाई-बहन साधनमें लग जायँ परमात्मप्राप्तिमे तत्परतासे लग जायँइस भावसे कह रहा हूँ । आप सबसे प्रार्थना है कि सच्चे हृदयसे भगवान्‌में लग जाओ । ‘हे नाथ ! हे नाथ !यह प्रार्थना मेरेको अच्छी लगती है ! यह प्रार्थना बड़ी लाभदायक है । चलते-फिरते, उठते-बैठते ‘हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’यह प्रार्थना करो । प्रभुसे माँगना है तो यही माँगो कि किसी भी अवस्थामें आपको भूलूँ नहीं ।


   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे