(गत ब्लॉगसे आगेका)
श्रोता‒आप कहते हैं कि भगवान्से
मिलनेकी लगन, लालसा बढ़ाओ, पर जब भगवान्
सब जगह हैं ही तो
फिर लालसा बढ़ानेसे क्या लाभ
?
स्वामीजी‒गायके भीतर घी होता है, पर वह काम नहीं आता
। घी निकालकर दिया जाय तो काम आता है । ऐसे ही भगवान् सब जगह होते हुए भी काम नहीं
आते । उनसे मिलनेकी लालसा बढ़नेपर वे काम आयेंगे । इसलिये मैं लालसा बढानेके लिये कहता
हूँ ।
श्रोता‒ भजन एकान्तमें करना ठीक है
या समूहमें ? समूहमें भजनका
ध्यान कम रहता है, बाहरका ध्यान ज्यादा होता है
।
स्वामीजी‒एकान्तमे करनेका आशय यह है कि भजनमें
दिखावटीपन नहीं होना चाहिये । ‘मेरेको लोग भजनानन्दी समझें’‒यह भाव बिल्कुल नहीं
होना चाहिये । अगर एकान्तमें, दरवाजा बन्द करके भजन करनेपर भी
मनमें भाव यह रहे कि लोग मेरेको भजनानन्दी समझें, लोगोंपर असर
पड़े कि यह भजन करनेवाला है, तो यह एकान्त नहीं हुआ । लोग तो अपने रुपयोंको भी प्रकट नहीं करते, जो कि बाहरकी पूँजी है । भजन तो अन्तःकरणकी पूँजी,
साथमें चलनेवाली पूँजी है । इसको प्रकट क्यों करें ? किसीको रुपये मिल जायँ तो वह किसीको बताता नहीं, पर मन-ही-मन प्रसन्न होता है, ऐसे ही
भगवान्के भजनका आनन्द आना चाहिये । दिखावटीपना भगवान्का भजन नहीं है ।
लोग मेरेको सन्त समझें, भक्त समझें‒ऐसा
भाव वास्तवमें भगवान्का भजन नहीं है, प्रत्युत लोगोंका भजन है
। आज त्योहार है तो लोग ज्यादा आयेगे‒इस भावसे ठाकुरजीको बढ़िया सजाते हैं, तो यह ठाकुरजीका पूजन नहीं हुआ, प्रत्युत लोगोंका पूजन
हुआ ।
एक राजा-रानी थे । रानी बहुत भजन करती,
दान-पुण्य करती, ब्राह्मण-भोजन कराती । परन्तु राजा कुछ नहीं कहते, न मना करते,
न अनुमोदन करते । रानीके मनमें आया कि राजाके भी मनमें भाव हो जाय,
ये भी भगवान्में लग जायँ तो बड़ा अच्छा है ! एक
दिन राजा सोये हुए थे । सहसा वे नींदमें ही ‘हे नाथ ! हे मेरे
नाथ !’ पुकारने लग गये । सुबह होनेपर रानीने बड़ा उत्सव मनाया
कि आज रात तो महाराजको भगवान् याद आ गये ! राजाने पूछा कि क्या
बात है ? रानीने कहा कि आज रात नींदमें आपके मुखसे भगवान्का
नाम निकला ! राजाने कहा कि क्या मुँहसे भगवान्का नाम निकल गया
? यह कहते ही राजाके प्राण निकल गये ! तात्पर्य
है कि हमारे भजनको या तो हम जानें, या भगवान् जानें, दूसरेको
पता ही न लगे ।
राम नाम की संतदास, दो अन्तर
धक धूणका ।
या तो गुपती
बात है, कहो
बतावे कुण ॥
लोगोंको रिझानेसे क्या फायदा है ? आप कथा, सत्संग, भजन आदि लोगोंको राजी करनेके लिये करते हैं और
लोग वाह-वाह कर देते हैं, बस, ‘खेल खतम पैसा हजम’ !
वाह-वाहमें सब उड़ गया !
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
|