।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
चैत्र कृष्ण एकादशी, वि.सं.-२०७४, मंगलवार
            पापमोचनी एकादशी-व्रत (सबका)
                   मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोताआप कहते हैं कि भगवान्‌से मिलनेकी लगन, लालसा बढ़ाओ, पर जब भगवान् सब जगह हैं ही तो फिर लालसा बढ़ानेसे क्या लाभ ?

स्वामीजीगायके भीतर घी होता है, पर वह काम नहीं आता । घी निकालकर दिया जाय तो काम आता है । ऐसे ही भगवान् सब जगह होते हुए भी काम नहीं आते । उनसे मिलनेकी लालसा बढ़नेपर वे काम आयेंगे । इसलिये मैं लालसा बढानेके लिये कहता हूँ ।

श्रोता भजन एकान्तमें करना ठीक है या समूहमें ? समूहमें भजनका ध्यान कम रहता है, बाहरका ध्यान ज्यादा होता है

स्वामीजीएकान्तमे करनेका आशय यह है कि भजनमें दिखावटीपन नहीं होना चाहिये । ‘मेरेको लोग भजनानन्दी समझें’यह भाव बिल्कुल नहीं होना चाहिये । अगर एकान्तमें, दरवाजा बन्द करके भजन करनेपर भी मनमें भाव यह रहे कि लोग मेरेको भजनानन्दी समझें, लोगोंपर असर पड़े कि यह भजन करनेवाला है, तो यह एकान्त नहीं हुआ । लोग तो अपने रुपयोंको भी प्रकट नहीं करते, जो कि बाहरकी पूँजी है । भजन तो अन्तःकरणकी पूँजी, साथमें चलनेवाली पूँजी है । इसको प्रकट क्यों करें ? किसीको रुपये मिल जायँ तो वह किसीको बताता नहीं, पर मन-ही-मन प्रसन्न होता है, ऐसे ही भगवान्‌के भजनका आनन्द आना चाहिये । दिखावटीपना भगवान्‌का भजन नहीं है ।

लोग मेरेको सन्त समझें, भक्त समझेंऐसा भाव वास्तवमें भगवान्‌का भजन नहीं है, प्रत्युत लोगोंका भजन है । आज त्योहार है तो लोग ज्यादा आयेगेइस भावसे ठाकुरजीको बढ़िया सजाते हैं, तो यह ठाकुरजीका पूजन नहीं हुआ, प्रत्युत लोगोंका पूजन हुआ ।

एक राजा-रानी थे । रानी बहुत भजन करती, दान-पुण्य करती, ब्राह्मण-भोजन कराती । परन्तु राजा कुछ नहीं कहते, न मना करते, न अनुमोदन करते । रानीके मनमें आया कि राजाके भी मनमें भाव हो जाय, ये भी भगवान्‌में लग जायँ तो बड़ा अच्छा है ! एक दिन राजा सोये हुए थे । सहसा वे नींदमें ही ‘हे नाथ ! हे मेरे नाथ !’ पुकारने लग गये । सुबह होनेपर रानीने बड़ा उत्सव मनाया कि आज रात तो महाराजको भगवान् याद आ गये ! राजाने पूछा कि क्या बात है ? रानीने कहा कि आज रात नींदमें आपके मुखसे भगवान्‌का नाम निकला ! राजाने कहा कि क्या मुँहसे भगवान्‌का नाम निकल गया ? यह कहते ही राजाके प्राण निकल गये ! तात्पर्य है कि हमारे भजनको या तो हम जानें, या भगवान् जानें, दूसरेको पता ही न लगे ।

राम नाम की संतदास, दो अन्तर धक धूणका ।
या  तो  गुपती  बात  है,   कहो  बतावे  कुण ॥


लोगोंको रिझानेसे क्या फायदा है ? आप कथा, सत्संग, भजन आदि लोगोंको राजी करनेके लिये करते हैं और लोग वाह-वाह कर देते हैं, बस, ‘खेल खतम पैसा हजम’ ! वाह-वाहमें सब उड़ गया !

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे