।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
चैत्र कृष्ण चतुर्दशी, वि.सं.-२०७४, शुक्रवार
                   मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोतामैं कोई भी सत्कार्य करता हूँ तो अहंकार पैदा हो जाता है, क्या करूँ ? अहंकार कैसे मिटे ?

स्वामीजीसब बातोंकी दवाई एक ही है‘हे नाथ ! हे नाथ !’ पुकारो । अपने बलसे मिटाओ, न मिटे तो ‘हे नाथ ! हे मेरे नाथ !’ पुकारो ।

श्रोताआपने बताया कि हम मुसाफिर हैं, तो हम भगवान्‌के घरसे क्यों निकाल दिये गये ?

स्वामीजीआपको निकाला नहीं है, प्रत्युत आप खुद निकले हो । अगर भगवान् निकालते तो जिम्मेवारी भगवान्‌पर होती । आप खुद निकले हो, इसलिये आपपर जिम्मेवारी है । भगवान् कभी निकालते नहीं । कहाँ लिखा है कि भगवान्‌ने निकाल दिया ? उनका निकालनेका स्वभाव ही नहीं है । पूतनाने मारनेके लिये जहर दिया तो उसको भी भगवान्‌ने माँकी गति देकर अपने घर भेज दिया !

श्रोताकैंसर आदि भयंकर बीमारियाँ भी क्या भगवान्‌के नामसे ठीक हो सकती हैं ?

स्वामीजीहाँ हो सकती हैं । भगवान्‌के नामसे क्या नहीं हो सकता ! परन्तु भक्तलोग बीमारी आदि दूर करनेमें भगवान्‌के नामका प्रयोग नहीं करते । जो अत्यन्त लोभी होता है, वह पैदल चला जाता है, पर पैसा खर्च नहीं करता । भगवान्‌का नाम पैसोंसे बहुत कीमती है । उसको रोग दूर करनेमें क्यों लगायें ? समझदार आदमी कभी भी भगवान्‌के नामका प्रयोग बीमारी आदि दूर करनेमें नहीं करेगा । जन्म-मरण दूर करनेवाले भगवान्‌के नामको बीमारी आदि दूर करनेमें कैसे लगाया जाय ! नाम खर्च करके बीमारी मिटाये तो भी शरीर मरेगा और बीमारी रहे तो भी मरेगा । एक दिन जरूर मरेगा ही, फिर उसके लिये भगवान्‌का नाम क्यों खर्च करें ? भगवान्‌के नामके माहात्म्यको जाननेवाला ऐसा कभी नहीं करता । दुःख तो भोगनेसे दूर हो जायगा । मनुष्य सकामभाव तब रखता है, जब वह मूर्ख होता !

श्रोतासूआ-सूतक होनेपर घरमें जो ठाकुरजी हैं, उनकी पूजा करें कि नहीं ?

स्वामीजीघरके जो अपने लड्डूगोपाल हैं, उनमें सूआ-सूतक नहीं लगता । अगर मूर्तिकी प्राण-प्रतिष्ठा की हुई हो तो उसमें सूआ-सूतक लगता है । उसकी पूजा ब्राह्मणसे अथवा विवाहित बहन-बेटीसे करानी चाहिये । विवाह होनेपर बहन-बेटीका गोत्र दूसरा हो जाता है । परन्तु जिनकी प्राण-प्रतिष्ठा नहीं हुई है, ऐसे ठाकुरजी अपने घरके बालककी तरह ही हैं । अपने बालकको कोई सूआ-सूतक नहीं लगता ।

श्रोतामैं बचपनसे सत्संग करती हूँ पर भगवान्‌में वैसा प्रेम नहीं हो रहा है ! इसका क्या उपाय करूँ ?


स्वामीजीभगवान्‌से कहो कि ‘हे नाथ ! मुझे प्रेम दो’ । यह अपने उद्योगसे नहीं होता, प्रत्युत भगवान्‌की कृपासे होता है । भगवान्‌से एकान्तमें रोकर कहो कि महाराज ! अपने चरणोंका प्रेम दो । भगवान्‌का प्रेम, भक्ति माँगनेकी चीज है । भगवान्‌ने काकभुशुण्डिको सब कुछ देनेकी बात कही, पर अपनी भक्ति देनेकी बात नहीं कही‒‘भगति आपनी देन न कही’ (मानस, उत्तर ८४ । २) कोई भी मातहत (अधीन, दास) बने तो बड़ोंको शर्म आती है कि इसको अपनेसे छोटा कैसे बनाऊँ ? भगवान्‌को भी छोटा बनानेमें शर्म आती है । इसलिये भगवान्‌का प्रेम माँगो, भक्ति माँगो ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे