।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
चैत्र अमावस्या, वि.सं.-२०७४, शनिवार
                   मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोताकामना करनेसे लाभ नहीं हैयह बात तो समझमें गयी, पर कामना करनेसे नुकसान-ही-नुकसान हैयह आपकी बात समझमें नहीं आयी !

स्वामीजीसंसारमें जितने आदमी दुःख पा रहे हैं, उनकी कोई--कोई कामना है । जितने आदमी नरकमें पड़े हैं, सब कामनाके कारण पड़े हैं । जितने आदमी रो रहे हैं, वे सब कामनाके कारण रो रहे हैं । कहीं भी कोई आदमी दुःखी है तो उसके भीतर कोई--कोई कामना है । कामना न हो तो दुःख हो ही नहीं सकता ।

अपमान होता है तो पाप कटते हैं । झूठी निन्दा होती है तो पाप कटते हैं । बुखार आता है तो पाप कटते हैं । अगर दुःख होता है तो कामना है कि बुखार उतर जाय ।

कामना न हो तो दर्द होता है, पर दुःख नहीं होता । दर्द शरीरमें होता है, पर दुःख भीतर होता है । बेटा होनेपर माँको प्रसवका दर्द तो होता है, पर दुःख नहीं होता । काँटा निकालते समय दर्द तो होता है, पर दुःख नहीं होता । कामना न हो तो बुखारमें, निन्दामें, अपयशमें भी आनन्द आता है !

श्रोताकामनाका सर्वथा त्याग होनेपर परमात्माकी प्राप्ति तत्काल होती है या देरी लगती है ?

स्वामीजीतत्काल होती है ! कोई--कोई कामना होती है, तभी देरी लगती है । कोई भी कामना न हो तो देरी लगेगी ही नहीं । कामना ही आड़ है । कामनाके सिवाय और कोई आड़ है ही नहीं । आप निष्काम हो जाओ तो सब जगह ही भगवान् प्रत्यक्ष हैं‘सब जग ईस्वररूप है’ । सब जगह भगवान्-ही-भगवान् दीखेंगे ! मृत्युमें भी भगवान् दीखेंगे ! हरदम आनन्द रहेगा !

भगवान्‌से प्रार्थना करो कि महाराज ! ऐसी कृपा करो कि एक आपके सिवाय कुछ नहीं चाहूँ । भगवान्‌से माँगो; जरूर मिलेगा ।

श्रोताकामना पैदा होनेका कारण क्या है ?

स्वामीजीकारण हैमूर्खता, अनजानपना । भीतरमें मूर्खता भरी है, इसलिये निष्कामभाव समझमें नहीं आता !

श्रोतापहले आप नामजपकी बात कहते थे, अब आप कहते हैं कि भगवत्प्राप्ति क्रियासाध्य नहीं है ! इन दोनों बातोंमें मेल कैसे हो; क्योंकि नामजप भी क्रिया है ?

स्वामीजीनामजपमे क्रिया मुख्य नहीं है, प्रत्युत भाव मुख्य है । भाव मुख्य होनेपर क्रिया नहीं रहती, उपासना हो जाती है ।

श्रोताकीर्तनमें ‘हरे कृष्णा’ बोलना ठीक है या ‘हरे कृष्ण’ ?

स्वामीजी‘हरे कृष्ण’ बोलना चाहिये । ‘हरे रामा’ अथवा ‘हरे कृष्णा’ नहीं बोलना चाहिये ।


   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे