(गत ब्लॉगसे आगेका)
श्रोता‒कामना करनेसे लाभ नहीं है‒यह बात तो समझमें आ गयी, पर कामना करनेसे नुकसान-ही-नुकसान है‒यह आपकी बात
समझमें नहीं आयी !
स्वामीजी‒संसारमें जितने आदमी दुःख पा रहे हैं, उनकी कोई-न-कोई कामना है । जितने आदमी नरकमें पड़े हैं,
सब कामनाके कारण पड़े हैं । जितने आदमी रो रहे हैं, वे सब कामनाके कारण रो रहे हैं । कहीं भी कोई आदमी
दुःखी है तो उसके भीतर कोई-न-कोई कामना है । कामना न हो तो दुःख हो ही नहीं सकता ।
अपमान होता है तो पाप कटते हैं । झूठी निन्दा होती है
तो पाप कटते हैं । बुखार आता है तो पाप कटते हैं । अगर दुःख होता है तो कामना है कि
बुखार उतर जाय ।
कामना न हो तो दर्द होता है, पर दुःख नहीं होता
। दर्द शरीरमें होता है, पर दुःख भीतर होता है । बेटा होनेपर
माँको प्रसवका दर्द तो होता है, पर दुःख नहीं होता । काँटा निकालते
समय दर्द तो होता है, पर दुःख नहीं होता । कामना न हो तो बुखारमें,
निन्दामें, अपयशमें भी आनन्द आता है !
श्रोता‒कामनाका सर्वथा त्याग होनेपर परमात्माकी प्राप्ति तत्काल होती है या देरी
लगती है ?
स्वामीजी‒तत्काल होती है ! कोई-न-कोई कामना होती है, तभी देरी
लगती है । कोई भी कामना न हो तो देरी लगेगी ही नहीं । कामना ही आड़ है । कामनाके सिवाय
और कोई आड़ है ही नहीं । आप निष्काम हो जाओ तो सब जगह ही
भगवान् प्रत्यक्ष हैं‒‘सब जग ईस्वररूप है’ । सब जगह भगवान्-ही-भगवान् दीखेंगे ! मृत्युमें
भी भगवान् दीखेंगे ! हरदम आनन्द रहेगा !
भगवान्से प्रार्थना करो कि महाराज ! ऐसी कृपा करो कि एक
आपके सिवाय कुछ नहीं चाहूँ । भगवान्से माँगो; जरूर मिलेगा ।
श्रोता‒कामना पैदा होनेका कारण क्या
है ?
स्वामीजी‒कारण है‒मूर्खता, अनजानपना । भीतरमें मूर्खता भरी है, इसलिये निष्कामभाव समझमें नहीं आता !
श्रोता‒पहले आप नामजपकी बात कहते
थे, अब आप कहते हैं कि
भगवत्प्राप्ति क्रियासाध्य नहीं है ! इन दोनों बातोंमें मेल कैसे
हो; क्योंकि नामजप भी क्रिया है ?
स्वामीजी‒नामजपमे क्रिया मुख्य नहीं है, प्रत्युत भाव मुख्य
है । भाव मुख्य होनेपर क्रिया नहीं रहती, उपासना हो जाती है ।
श्रोता‒कीर्तनमें ‘हरे कृष्णा’ बोलना ठीक है या ‘हरे कृष्ण’ ?
स्वामीजी‒‘हरे कृष्ण’ बोलना चाहिये । ‘हरे रामा’ अथवा ‘हरे कृष्णा’
नहीं बोलना चाहिये ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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