।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
चैत्र शुक्ल द्वितीया, वि.सं.-२०७५, सोमवार
                   मैं नहीं, मेरा नहीं 



(गत ब्लॉगसे आगेका)

कामना नहीं करनी चाहिये, पर कोई हमारी मदद करे और हमें उसकी आवश्यकता हो, हम मुसीबतमें हों, तब भगवान्‌की मदद समझकर उसको ले लेनेमें कोई हर्जा नहीं है ।

गृहस्थके कामके लिये कामना करनेकी जरूरत है ही नहीं ।

किसीको वैरी बनाना हो तो उसको रुपये उधारमें दे दो !

किसीको कानसे सुनायी न भी दे तो भी सत्संगमें बैठनेमात्रसे, देखनेमात्रसे लाभ होता है ।

‘हे नाथ ! हे मेरे नाथ !‒यह बहुत बढ़िया मन्त्र है । एकान्तमें रोकर भगवान्‌को पुकारों । इससे सब काम ठीक हो जायगा । यह एक मन्त्र सबमें काम आयेगा । कीर्तन करो तो उस समय भी ‘हे नाथ ! हे नाथ !’ पुकारो । रात और दिन भगवान्‌को पुकारों कि ‘हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’ । भूख लगे तो रोटी खा लो, प्यास लगे तो जल पी लो, नींद आये तो सो जाओ, बाकी हर समय ‘हे नाथ ! हे नाथ !’ पुकारो । इस पुकारमें बड़ी ताकत है !

आप जीवमुक्त हो जायँ, जीते-जी मुक्त हो जायँ ! जन्म-मरणसे रहित हो जायँ ! आपको जीवन्मुक्तिके आनन्दका अनुभव हो जाय, इसके लिये ही यह सत्संग है ! उस तत्त्वका अनुभव सबको हो सकता है; क्योंकि उस तत्त्वका अनुभव करनेके लिये ही यह शरीर है और उस तत्त्वका अनुभव करनेके लिये ही यह सत्संग है ।

हरदम रहनेवाले सत्के साथ सम्बन्ध होनेका नाम ही सत्संग है । बातें करना सत्संग नहीं है, प्रत्युत सच्चर्चा है । सत्संग हैभीतरसे परमात्माके साथ सम्बन्ध हो जाय ।

जन्मना-मरना अस्वाभाविक है । भगवान्‌की प्राप्ति, तत्त्वज्ञान स्वाभाविक है । हम भगवान्‌के यहाँके हैं; क्योंकि हम उनके अंश हैं । भूलोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक, महर्लोक, जनलोक, तपलोक और सत्यलोकये ऊपरके सात लोक हैं, और अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल और पातालये नीचेके सात लोक हैं । ये कुल चौदह भुवन (लोक) हैं, पर ये सब मुसाफिरीमें हैं ! इनमेंसे कोई भी देश अपना नहीं है ! केवल भगवान्‌का धाम अपना है, जहाँ जानेके बाद फिर कोई लौटकर संसारमें, जन्म-मरणमें नहीं आता ।

न तद्धासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावकः ।
यदगत्वा न निवर्तन्ते    तद्धाम परमं मम ॥
                                         (गीता १५ । ६)

‘उस परमपदको न सूर्य, न चन्द्र और न अग्नि ही प्रकाशित कर सकती है और जिसको प्राप्त होकर जीव लौटकर संसारमें नहीं आते, वही मेरा परम धाम है ।’

उसकी प्राप्तिके लिये ही यह सत्संगका आयोजन है । उसको सभी भाई-बहन प्राप्त कर सकते हैं । उसकी प्राप्तिके सब अधिकारी हैं । परन्तु जबतक भोग भोगने तथा रुपये इकट्ठा करनेकी रुचि है, तबतक परमात्माकी प्राप्ति नहीं होगी, कल्याण नहीं होगा ।


‘हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’यह एक मन्त्र है । दिनमें प्रत्येक घण्टे तीन-चार-पाँच बार कह दो । नींद खुलनेसे लेकर नींद आनेतक ‘हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’ कहते रहो । भगवान्‌को केवल याद रखनेमात्रसे अशान्ति दूर हो जायगी, दुःख दूर हो जायगा, सन्ताप दूर हो जायगा, जलन दूर हो जायगी, आनन्दकी प्राप्ति हो जायगी !

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे