(गत ब्लॉगसे आगेका)
कामना नहीं करनी चाहिये, पर कोई हमारी मदद करे
और हमें उसकी आवश्यकता हो, हम मुसीबतमें हों, तब भगवान्की मदद समझकर उसको ले लेनेमें कोई हर्जा नहीं है ।
गृहस्थके कामके लिये कामना करनेकी जरूरत है ही नहीं ।
किसीको वैरी बनाना हो तो उसको रुपये
उधारमें दे दो !
किसीको कानसे सुनायी न भी दे तो भी
सत्संगमें बैठनेमात्रसे, देखनेमात्रसे लाभ होता है ।
‘हे नाथ ! हे मेरे नाथ !‒यह
बहुत बढ़िया मन्त्र है । एकान्तमें रोकर भगवान्को पुकारों । इससे सब काम ठीक हो जायगा
। यह एक मन्त्र सबमें काम आयेगा । कीर्तन करो तो उस समय भी ‘हे नाथ ! हे नाथ !’ पुकारो । रात और दिन भगवान्को पुकारों कि
‘हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’ । भूख लगे तो रोटी खा लो,
प्यास लगे तो जल पी लो, नींद आये तो सो जाओ,
बाकी हर समय ‘हे नाथ ! हे नाथ !’ पुकारो । इस पुकारमें बड़ी ताकत है !
आप जीवमुक्त हो जायँ, जीते-जी मुक्त हो जायँ ! जन्म-मरणसे
रहित हो जायँ ! आपको जीवन्मुक्तिके आनन्दका अनुभव हो जाय,
इसके लिये ही यह सत्संग है ! उस तत्त्वका अनुभव सबको हो सकता है; क्योंकि उस तत्त्वका
अनुभव करनेके लिये ही यह शरीर है और उस तत्त्वका अनुभव करनेके लिये ही यह सत्संग है
।
हरदम रहनेवाले सत्के साथ सम्बन्ध होनेका नाम ही सत्संग है
। बातें करना सत्संग नहीं है, प्रत्युत सच्चर्चा है । सत्संग है‒भीतरसे परमात्माके साथ सम्बन्ध हो जाय ।
जन्मना-मरना अस्वाभाविक है । भगवान्की प्राप्ति, तत्त्वज्ञान स्वाभाविक
है । हम भगवान्के यहाँके हैं; क्योंकि हम उनके अंश हैं । भूलोक,
भुवर्लोक, स्वर्लोक, महर्लोक,
जनलोक, तपलोक और सत्यलोक‒ये ऊपरके सात लोक हैं, और अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल और पाताल‒ये नीचेके
सात लोक हैं । ये कुल चौदह भुवन (लोक) हैं,
पर ये सब मुसाफिरीमें हैं ! इनमेंसे कोई भी देश
अपना नहीं है ! केवल भगवान्का धाम अपना है, जहाँ जानेके बाद फिर कोई लौटकर संसारमें, जन्म-मरणमें नहीं आता ।
न तद्धासयते सूर्यो न शशाङ्को
न पावकः ।
यदगत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ॥
(गीता १५ ।
६)
‘उस परमपदको न सूर्य, न चन्द्र
और न अग्नि ही प्रकाशित कर सकती है और जिसको प्राप्त होकर जीव लौटकर संसारमें नहीं
आते, वही मेरा परम धाम है ।’
उसकी प्राप्तिके लिये ही यह सत्संगका आयोजन है । उसको
सभी भाई-बहन प्राप्त कर सकते
हैं । उसकी प्राप्तिके सब अधिकारी हैं । परन्तु जबतक भोग
भोगने तथा रुपये इकट्ठा करनेकी रुचि है, तबतक परमात्माकी प्राप्ति नहीं होगी, कल्याण नहीं होगा
।
‘हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’‒यह एक मन्त्र है । दिनमें प्रत्येक घण्टे तीन-चार-पाँच बार कह दो । नींद खुलनेसे लेकर नींद आनेतक ‘हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’ कहते रहो । भगवान्को केवल
याद रखनेमात्रसे अशान्ति दूर हो जायगी, दुःख दूर हो जायगा, सन्ताप दूर हो जायगा, जलन दूर हो जायगी, आनन्दकी प्राप्ति हो जायगी !
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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