(गत ब्लॉगसे आगेका)
श्रोता‒कोई ऐसा उपाय बतायें, जिससे हम घरपर रहकर भगवान्की
प्राप्ति कर सकें ।
स्वामीजी‒आपका जो यह विचार है कि घरपर रहकर कर
लूँ यह विचार ही बाधा है और कोई बाधा है ही नहीं ! घरपर रहूँ‒यह बाधा
है ! घरपर रहते हुए आपको भगवान्की प्राप्ति हो सकती है,
आप सन्त-महात्मा हो सकते हैं‒इसमें सन्देह नहीं है, पर मनमें यह आग्रह रहेगा कि ‘मैं
घरपर रहूँ’ तो प्राप्ति नहीं होगी । आप घरपर रहो, पर आपका मन घरपर न रहे । आप घरपर रहो चाहे मत रहो,
पर आग्रह नहीं होना चाहिये । यह आग्रह आपको परमात्माकी प्राप्ति नहीं
होने देगा ।
घरपर रहना दोष नहीं है, पर घरपर कोई रह सकता ही नहीं,
किसीकी ताकत ही नहीं कि रह जाय ! आप मुसाफिर हो
। मुसाफिर घरपर कैसे रहेगा ? जो हरदम घरपर रहता है, वह मुसाफिर नहीं होता । सब जीव मुसाफिर हैं । घरपर रहनेसे बाधा नहीं होगी,
पर मैं घरपर रहूँ और प्राप्ति हो जाय‒यह बाधा जरूर
होगी । यह आपको बाँधनेवाली है । इसलिये आग्रह बिल्कुल नहीं
होना चाहिये । फिर घरपर रहते हुए ही काम हो जायगा, साधु-संन्यासी बननेकी जरूरत नहीं है । पासमें लाखों रुपये रहते हुए भी परमात्माकी
प्राप्ति हो सकती है, पर रुपये भी रहें और परमात्माकी प्राप्ति
भी हो जाय‒यह नहीं होगा ।
जैसे ‘मैं गृहस्थ हूँ’‒यह बन्धन
है, ऐसे ही ‘मैं साधु हूँ’‒यह भी बन्धन
है । हमारा सम्बन्ध केवल भगवान्के साथ होना चाहिये‒‘मेरे तो गिरधर गोपाल
दूसरो न कोई’ । जबतक दूसरा कोई है, तबतक
सिद्धि नहीं होगी । आप कहीं रहो, कहीं जाओ, भगवान्का सम्बन्ध मिटेगा नहीं ।
श्रोता‒हम ध्यानसहित नामजप करना चाहते
हैं, पर बाहर बहुत हल्ला होनेके कारण नामजप हो नहीं पाता, क्या करें ?
स्वामीजी‒यह कारण नहीं है । नामजपमें आपका मन
नहीं लगता,
तभी बाहरका हल्ला बाधा देता है । आप रुपये गिनते हो, तब बाधा लगती है क्या ? मन लग जायगा, तब बाधा नहीं लगेगी, भले
ही बाहर ढोल बजे !
लगन लगन सब ही कहैं, लगन कहावै सोय ।
नारायन जिस लगन में, तन मन दीजै
खोय ॥
जबतक मन न लगे, एकान्तमें
बैठकर भजन करो ।
श्रोता‒आपने कहा था कि साधन-सम्बन्धी असली बात सन्तोंकी कृपासे समझमें आती है
। इस
बातका क्या आशय है ?
स्वामीजी‒मैं तो मुख्य कृपा भगवान्की ही मानता
हूँ । भगवान्की कृपाके अन्तर्गत ही सन्तोंकी कृपा है । सन्त-महात्माओंकी जो कृपा
है, वह वास्तवमें भगवान्की ही कृपा है । माँ-बापकी कृपा भी भगवान्की ही कृपा है । माँके स्नेहमें भी भगवान्की कृपा है
। आप भगवान्में लगे रहो, पर काम कृपासे ही होगा, अपने
उद्योगसे नहीं ।
खास बात यह है कि सिवाय भगवान्के कोई अपना नहीं है ।
ज्ञानमार्ग जाननेका है, पर लम्बा है । भक्तिमार्ग माननेका है, पर
बहुत जल्दी सिद्ध होनेवाला है; परन्तु एक बात माननी पड़ेगी कि
भगवान्के सिवाय मेरा कोई नहीं है । यह बात दृढ़तासे मान लेनी चाहिये कि ‘मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई’ । भगवान्के सिवाय और कोई मेरा नहीं है । अगर कोई मेरा दीखता है तो
वह धोखा है ।
सार बात है कि भगवान् मेरे हैं । भगवान्में मेरा-पना इतना विचित्र है
कि उसमें मैं-पना भी खत्म हो जाता है और केवल भगवान् रह जाते
हैं !
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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