।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
चैत्र शुक्ल तृतीया, वि.सं.-२०७५, मंगलवार
                      मत्स्यावतार, गणगौर
                   मैं नहीं, मेरा नहीं 



(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोताकोई ऐसा उपाय बतायें, जिससे हम घरपर रहकर भगवान्‌की प्राप्ति कर सकें

स्वामीजीआपका जो यह विचार है कि घरपर रहकर कर लूँ यह विचार ही बाधा है और कोई बाधा है ही नहीं ! घरपर रहूँयह बाधा है ! घरपर रहते हुए आपको भगवान्‌की प्राप्ति हो सकती है, आप सन्त-महात्मा हो सकते हैंइसमें सन्देह नहीं है, पर मनमें यह आग्रह रहेगा कि ‘मैं घरपर रहूँ’ तो प्राप्ति नहीं होगी । आप घरपर रहो, पर आपका मन घरपर न रहे । आप घरपर रहो चाहे मत रहो, पर आग्रह नहीं होना चाहिये । यह आग्रह आपको परमात्माकी प्राप्ति नहीं होने देगा ।

घरपर रहना दोष नहीं है, पर घरपर कोई रह सकता ही नहीं, किसीकी ताकत ही नहीं कि रह जाय ! आप मुसाफिर हो । मुसाफिर घरपर कैसे रहेगा ? जो हरदम घरपर रहता है, वह मुसाफिर नहीं होता । सब जीव मुसाफिर हैं । घरपर रहनेसे बाधा नहीं होगी, पर मैं घरपर रहूँ और प्राप्ति हो जाययह बाधा जरूर होगी । यह आपको बाँधनेवाली है । इसलिये आग्रह बिल्कुल नहीं होना चाहिये । फिर घरपर रहते हुए ही काम हो जायगा, साधु-संन्यासी बननेकी जरूरत नहीं है । पासमें लाखों रुपये रहते हुए भी परमात्माकी प्राप्ति हो सकती है, पर रुपये भी रहें और परमात्माकी प्राप्ति भी हो जाययह नहीं होगा ।

जैसे ‘मैं गृहस्थ हूँ’यह बन्धन है, ऐसे ही ‘मैं साधु हूँ’यह भी बन्धन है । हमारा सम्बन्ध केवल भगवान्‌के साथ होना चाहिये‘मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई’ । जबतक दूसरा कोई है, तबतक सिद्धि नहीं होगी । आप कहीं रहो, कहीं जाओ, भगवान्‌का सम्बन्ध मिटेगा नहीं ।

श्रोताहम ध्यानसहित नामजप करना चाहते हैं, पर बाहर बहुत हल्ला होनेके कारण नामजप हो नहीं पाता, क्या करें ?

स्वामीजीयह कारण नहीं है । नामजपमें आपका मन नहीं लगता, तभी बाहरका हल्ला बाधा देता है । आप रुपये गिनते हो, तब बाधा लगती है क्या ? मन लग जायगा, तब बाधा नहीं लगेगी, भले ही बाहर ढोल बजे !

लगन लगन सब ही कहैं,  लगन कहावै सोय ।
नारायन जिस लगन में, तन मन दीजै खोय ॥

जबतक मन न लगे, एकान्तमें बैठकर भजन करो ।

श्रोताआपने कहा था कि साधन-सम्बन्धी असली बात सन्तोंकी कृपासे समझमें आती है इस बातका क्या आशय है ?

स्वामीजीमैं तो मुख्य कृपा भगवान्‌की ही मानता हूँ । भगवान्‌की कृपाके अन्तर्गत ही सन्तोंकी कृपा है । सन्त-महात्माओंकी जो कृपा है, वह वास्तवमें भगवान्‌की ही कृपा है । माँ-बापकी कृपा भी भगवान्‌की ही कृपा है । माँके स्नेहमें भी भगवान्‌की कृपा है । आप भगवान्‌में लगे रहो, पर काम कृपासे ही होगा, अपने उद्योगसे नहीं ।

खास बात यह है कि सिवाय भगवान्‌के कोई अपना नहीं है । ज्ञानमार्ग जाननेका है, पर लम्बा है । भक्तिमार्ग माननेका है, पर बहुत जल्दी सिद्ध होनेवाला है; परन्तु एक बात माननी पड़ेगी कि भगवान्‌के सिवाय मेरा कोई नहीं है । यह बात दृढ़तासे मान लेनी चाहिये कि ‘मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई’भगवान्‌के सिवाय और कोई मेरा नहीं है । अगर कोई मेरा दीखता है तो वह धोखा है ।


सार बात है कि भगवान् मेरे हैं । भगवान्‌में मेरा-पना इतना विचित्र है कि उसमें मैं-पना भी खत्म हो जाता है और केवल भगवान् रह जाते हैं !

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे