।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
चैत्र शुक्ल चतुर्थी, वि.सं.-२०७५, बुधवार
                   मैं नहीं, मेरा नहीं 



(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोताशरीर बीमार रहता है यदि शरीरको ठीक करनेकी कामना करें तो भजन होगा, सेवा होगी ?

स्वामीजीयह बिल्कुल गलत बात है ! भजन शरीरके अधीन नहीं है । केवल नामजप ही भजन नहीं है । भगवान् मेरे हैंयह भी भजन है । सेवा भावके अधीन है, पदार्थके अधीन नहीं । असली भजन हैभगवान् प्यारे लगें, मीठे लगें ।

पन्नगारि  सुनु  प्रेम  सम   भजन  न  दूसर  आन ।
अस बिचारि मुनि पुनि पुनि करत राम गुन गान ॥
                             (मानस, अरण्य १० में पाठभेद)

इसमें बीमारी क्या बाधा देगी ? माँ मेरी है तो क्या शरीर बीमार होनेपर माँ मेरी नहीं है ?

परमात्माको यादमात्र करनेसे पूर्णता हो जाती है‘यस्य स्मरणमात्रेण जन्मसंसारबन्धनात् । विमुच्यते........ (महाभारत, अनुशासन १४९) ! इतनी सस्ती कोई चीज नहीं है ! एक परमात्मा ही इतने सस्ते हैं कि याद करनेमात्रसे मिल जायँ । उनको हरदम याद रखो । परमात्माके अंश होनेके कारण सब जीवोंका परमात्मापर समान अधिकार है । सबको परमात्माकी प्राप्ति हो सकती है । हरदम एक ही बात कहो कि ‘हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’ । याद रखनेकी शक्ति भी भगवान्‌से ही मिलेगी । एक भगवान्‌को याद करनेसे आपके लौकिक और पारमार्थिक सब काम स्वतः-स्वाभाविक सिद्ध हो जायँगे । भागवतमें साफ आया है

अकामः सर्वकामो वा मोक्षकाम उदारधीः ।
तीव्रेण  भक्तियोगेन    यजेत  पुरुषं  परम् ॥
                                       (श्रीमद्भा २ । ३ । १०)

‘जो बुद्धिमान् मनुष्य है, वह चाहे सम्पूर्ण कामनाओंसे रहित हो, चाहे सम्पूर्ण कामनाओंसे युक्त हो, चाहे मोक्षकी कामनावाला हो, उसे तो केवल तीव्र भक्तियोगके द्वारा परमपुरुष भगवान्‌का ही भजन करना चाहिये ।’

अगर आप कुछ नहीं चाहते हो तो भगवान्‌को याद करो । अगर आप मुक्ति, कल्याण चाहते हो तो भगवान्‌को याद करो । अगर आप सब कुछ चाहते हो तो भगवान्‌को याद करो । एक भगवान्‌में लग जाओ तो सब काम सिद्ध हो जायगा‘एकै साधे सब सधै !’ भगवान्‌को याद करनेसे कुछ बाकी नहीं रहेगा । आपकी सब तरहकी अशुद्धि, अशान्ति सदाके लिये मिट जायगी ।

श्रोताप्रातःकाल तीन-चार घण्टे आनन्दकी स्थिति रहती है, पर यह स्थिति धीरे-धीरे कम होती जाती है !

स्वामीजीएकान्तमें अच्छा मन लग जाय तो सन्तोष मत करो, उसका सुख मत लो । जैसे रुपया मिलनेपर लोभ बढ़ता है कि और मिले, और मिले, ऐसे ही साधनका लोभ होना चाहिये कि और बढ़े और बढ़े ! कितना हो गया, उस तरफ मत देखो ।

श्रोतासत्संगमें सुना है कि आनन्द कभी मिटता नहीं !

स्वामीजीजिससे सन्तोष हो जाय, वह आनन्द नहीं लेना । संसारमें तो सन्तोष बड़ा है, पर भगवान्‌की प्राप्तिमें सन्तोष बाधक है ।

सन्तोषस्त्रिषु कर्तव्यः  स्वदारे  भोजने  धने ।
त्रिषु चैव न कर्तव्यः स्वाध्याये जपदानयोः ॥
                                  (चाणक्यनीतिदर्पण ७ । ४)

‘अपनी स्त्री, भोजन और धनइन तीनोंमें तो सन्तोष करना चाहिये, पर स्वाध्याय, जप और दानइन तीनोंमें कभी सन्तोष नहीं करना चाहिये ।’


भगवान्‌की प्राप्तिके मार्गमें सन्तोष न करके तृष्णा बढ़ाओ ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे