(गत ब्लॉगसे आगेका)
श्रोता‒आपने कहा कि ममताका
त्याग करो, पर ममताका त्याग हो नहीं सकता
!
स्वामीजी‒आप कहते हो कि ममताका त्याग
नहीं हो सकता, हम कहते हैं कि आप ममता रख सकते ही नहीं ! ममताको रख लें, ऐसी ताकत आपमें है ही नहीं ! पहले छोटी अवस्थामें
खिलौनोंमें ममता थी, पीछे रुपयोंमें, बेटे-पोतोमे ममता हो गयी । आपकी ममता बदलती रहती है । आपने मकान बेचकर रुपये ले
लिये तो मकानमें ममता नहीं रही, रुपयोंमें ममता हो गयी । रुपये
किसीमें लगा दिये तो उसमें ममता हो गयी । ममता बदलती है, रहती नहीं । ममता टिक सकती ही नहीं !
अभी हमने ऐसा विचार किया है कि व्याख्यान देते तो बहुत
वर्ष हो गये,
अब आपको ऐसी बात बतायें, जिससे आपको परमात्माका
अनुभव हो जाय । अनुभव तभी होगा, जब संसारकी ममता छूटेगी । संसारमें ममता रखोगे तो परमात्माकी प्राप्ति कैसे होगी? मीराबाईने कहा‒‘मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई’ । संसारमें ममता नहीं
छूटेगी तो परमात्मामें अपनापन कैसे करोगे ?
कबीर मनुआँ एक
है, भावे जिधर लगाय
।
भावे हरि की भगति करे, भावे विषय
कमाय ॥
आप ममताको छोड़ना न चाहो तो अलग बात है, पर ममताको आप रख सकते
ही नहीं । ममता रहेगी नहीं, रहेगी नहीं, रहेगी नहीं ! पिछले जन्ममें भी स्त्री-पुत्र, माता-पिता आदि थे ही,
पर अब वे याद ही नहीं हैं ! ऐसे ही इस जन्मकी भी
ममता छूटेगी । किसीकी भी यह कहनेकी हिम्मत नहीं है कि मैं ममता छोडूँगा ही नहीं !
जो स्वतः छूटनेवाली है, उसीको छोड़नेकी बात मैं
कहता हूँ । वह छूटेगी तो फायदा नहों होगा, पर आप छोड़ दोगे तो
फायदा होगा । जिसको आप रख नहीं सकते, उसको छोड़नेमें आपको क्या
बाधा लगी ?
एक दरिद्र है और एक विरक्त, त्यागी है । बाहरसे
देखनेपर दोनों बराबर दीखते हैं । दोनोंकी अंटीमें दाम नहीं, पैरमें
जूती नहीं, तनपर पूरे कपड़े नहीं ! परन्तु
भीतरसे क्या वे एक समान हैं ?
संसारमें ‘ममता’ होती है और भगवान्में ‘आत्मीयता’ होती
है । संसारमें आत्मीयता होती ही नहीं । कारण कि संसार प्रकृतिका कार्य है और आप भगवान्के
अंश हो । इसलिये भगवान्में आत्मीयता कभी छूटेगी नहीं । वह आत्मीयता अभी मौजूद है, पर उधर आपकी दृष्टि
नहीं है । ममताके कारण आत्मीयता दीखती नहीं । ममता छोड़ दो तो दीखने लग जायगी ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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