(गत ब्लॉगसे आगेका)
श्रोता‒आजकल ब्याह-शादीमें खड़े-खड़े खाते हैं, यह ठीक है या गलत है
?
स्वामीजी‒बिल्कुल बेठीक है । कोरी मूर्खता भरी
है ! आजकल मूर्खता बढ़ रही है ! यह
कलियुगकी लीला है ! कलियुगकी लीलामें प्रवेश मत करो । हमारे शास्त्रोंने बुद्धको अवतार माना है, पर बुद्धकी
बातको नहीं माना है । गीताने कहा है‒‘तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं
ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ’ (गीता
१६ । २४) ‘कर्तव्य-अकर्तव्यकी व्यवस्थामें शास्त्र ही प्रमाण है’
। शास्त्रकी आज्ञाके अनुसार चलो तो बहुत लाभ होगा ।
कलियुगके समयमें आप सत्संगमें आ गये‒यह मामूली
बात नहीं है ! यह बड़ी श्रेष्ठ, बड़ी उत्तम बात है ! अगर यह मान लो कि सब कुछ भगवान् ही हैं तो निहाल हो जाओगे ! ऐसी विलक्षण, अलौकिक बातें हरेक जगह मिलती नहीं हैं !
आप कई जगह सत्संगमें जाओ तो आपको पता लगे ! जड-चेतनका ठीक तरहसे विवेक हरेक जगह नहीं मिलता ! जो इस सत्संगकी तात्त्विक बातोंको ठीक समझेगा, वह दूसरी जगह ठहर सकेगा नहीं !
गीता-जैसा ग्रन्थ आपको कहीं मिलेगा नहीं । लोग
जानते नहीं ! टीका करते हैं गीताजीकी, पर बात करते हैं अपने सम्प्रदायकी ! पहले सम्प्रदायके ग्रन्थ पढ़कर फिर गीता पढ़ते तो गीता समझमें नहीं आयेगी । ‘वासुदेवः सर्वम्’ की
बात कितनी जगह मिलती है, आप ढूँढकर देख लो ! ऐसा मौका मिलता नहीं है ! आप जगह-जगह भटको तो पता लगे ! उपनिषदोंमें आया है कि ऐसी बातें
सुननेको भी नहीं मिलतीं‒‘श्रवणायापि बहुभिर्यो
न लभ्यः’ (कठोपनिषद् १ । २ । ७)
। ऐसी विचित्र बातें भगवान्की कृपासे ही
मिलती हैं, अपने उद्योगसे नहीं । अभी पता नहीं लगता । समय बीतनेपर
पता लगेगा ! मेरेपर एक असर है कि भगवान्की कोई विलक्षण ही कृपा
है ! भगवान्की जितनी कृपा है, ऐसी योग्यता हमारेमें नहीं है ।
यह जो बात आपको कही है, इस बातपर आप ध्यान दो । किसी सन्तके,
किसी महात्माके किसी विवेचनमें यह आया है कि तुम इनको भगवान्का स्वरूप
समझो ? यह बात नयी है ! ‘सब जग ईस्वररूप है’‒यह तो सभी कहते हैं,
पर इनमें परमात्माका रूप देखो‒ऐसा किसी महात्माने
कहा हो तो बताओ ? सब जगत् परमात्माका स्वरूप है‒यह बात तो प्रसिद्ध है, पर आप अभी इस संसारको परमात्माका स्वरूप समझो‒यह बात किसी महात्माने, किसी
ग्रन्थने कही हो, यह हमें याद नहीं है । आपको नयी बात बताते हैं,
पर आप ध्यान नहीं देते !
यहाँ वटवृक्षके नीचे एक आदमीने सेठजी (श्रीजयदयालजी गोयन्दका)-से कहा कि आप मेरेको भगवान्के दर्शन कराओ । सेठजीने कहा कि मेरी सामर्थ्य
नहीं है कि दर्शन करा दूँ । उसने ज्यादा कहा तो सेठजी बोले कि मेरी बात आप मान लोगे
? उसने कहा कि हमारा आपपर विश्वास है कि आप झूठ नहीं बोलते ।
सेठजीने सूर्यकी ओर संकेत करते हुए कहा कि ये साक्षात् परमात्मा हैं । वह आदमी बोला
कि ये तो हम देखते ही हैं ! सेठजी बोले कि तभी तो मैंने कहा कि
तुम विश्वास नहीं करोगे । सूर्य भगवान् हैं‒यह शास्त्रोंमें आया
है कि नहीं, बताओ ? शंकर, शक्ति, गणेश, विष्णु और सूर्य‒ये पाँच ईश्वरकोटिके देवता हैं । ये साक्षात् ईश्वर हैं । आप मानो नहीं तो
हम क्या करें ? उपनिषदोंमें आया है कि मैं एक ही बहुत रूपोंसे
हो जाऊँ‒‘सदैक्षत बहु स्यां प्रजायेयेति’ (छान्दोग्य॰ ६ । २ । ३) तो बहुत रूपसे कौन हुआ ?
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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