।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
चैत्र कृष्ण अष्टमी, वि.सं.-२०७४, शनिवार
                   मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

जगत्‌ साक्षात् परमात्माका स्वरूप हैयह बात बहुत आयी है, पर ऐसा किसीने कहा है कि इसको साक्षात् परमात्माका स्वरूप देखो, साक्षात् परमात्मा ही मानो ? इतनी बात पता लग जाय तो आदमी रात-दिन ‘ये भगवान् हैं ! ये भगवान् हैं ! ये भगवान् हैं !इसकी रटनमें लग जाय ! अगर विश्वास हो जाय तो आदमी पागल हो जाय ! इतनी सीधी-सरल बात कहाँ मिलती है ? इसका वही माहात्म्य है, जो भगवान्‌के दर्शनका माहात्म्य है ! भूख लगे तो भोजन कर लो, प्यास लगे तो जल पी लो, नींद आये तो सो जाओ, और हरेक वस्तु-व्यक्तिमें ‘ये भगवान् हैं ! ये भगवान् हैं ! ये भगवान् हैं !इसकी रात और दिन रटन लगाओ, पीछे ही पड़ जाओ । भगवान् प्राप्त हो जायँगे ! आप करके तो देखो !

श्रोतामेरे द्वारा किसी व्यक्तिका घोर अपराध हो गया, पर उस व्यक्तिसे क्षमा माँगनेकी मेरी हिम्मत नहीं है, क्या करूँ ?

स्वामीजीआप मनसे क्षमा माँग लो । सुबह-शाम दोनों वक्त मनसे उसकी परिक्रमा करके नमस्कार कर लो और क्षमा माँग लो । मिलनेकी कोई जरूरत नहीं है । कुछ दिनोंके बाद देखो तो उसका मन बदल जायगा ।

श्रोताद्वादशाक्षर मन्त्र जपते-जपते मेरी विलक्षण स्थिति हो गयी थी, पर अब वह स्थिति वापिस नहीं आती ! क्या करना चाहिये ?

स्वामीजीलोगोंको कह देनेसे भी बाधा लग जाती है । अतः ऐसी बात किसीको कहनी नहीं चाहिये । माफी माँगो और भजन करो । भगवान्‌की कृपासे ठीक हो जायगा ।

श्रोतानामजप श्रेष्ठ है या सेवा ? नामजप करते हैं तो सेवा नहीं होती और सेवा करते हैं तो नामजप नहीं होता !

स्वामीजीयह बात हम नहीं मानते ! नामजप करनेसे सेवाको पुष्टि मिलती है और सेवा करनेसे नामजपमें रुचि होती है । दोनों एक-दूसरेके सहायक हैं, बाधक नहीं ।

श्रोताहम अपनी कमाईका आधा हिस्सा निकालते हैं, तो वह अपने घरकी लड़कीके विवाहमें लगा सकते हैं क्या ?

स्वामीजीदहेजमें न देकर अलगसे दे सकते हो । बहन-बेटी ब्राह्मणकी तरह होती है ।


सबकी अलग-अलग दृष्टियाँ हैं । जैसे, एक स्त्री-शरीर हो तो उसको सिंह भोजनके रूपमें देखता है, पुरुष स्त्रीके रूपमें देखता है, बालक माँके रूपमें देखता है । स्त्री तो एक ही है, पर दृष्टियाँ अलग-अलग हैं । ऐसे ही संसारको भी सब एक रूपसे नहीं देखते, प्रत्युत अलग-अलग दृष्टिसे देखते हैं । परन्तु सब दृष्टियोंमें वास्तविक दृष्टि यह है कि संसार परमात्माका स्वरूप है । इससे ऊँची कोई दृष्टि नहीं है । अगर इसी ऊँची दृष्टिसे हम देखें तो संसार परमात्माकी प्राप्तिका खास कारण है, मुक्तिका खास धाम है ! इसका दर्शन करनेमात्रसे कल्याण हो जाय !

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे