।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
वैशाख अमावस्या, वि.सं.-२०७५, सोमवार
                       सोमवती अमावस्या
                    मैं नहीं, मेरा नहीं 



(गत ब्लॉगसे आगेका)

एक परमात्मा समान रीतिसे सब जगह परिपूर्ण है‘वासुदेवः सर्वम्’ (गीता ७ । १९) जहाँ व्याप्य-व्यापकभाव होता है, वहाँ ‘सर्वम्’ होता है । ‘सर्वम्’ को छोड़कर आगे केवल वासुदेव ही रहता है, तब उसमें व्याप्य-व्यापकभाव नहीं होता । व्याप्य किसमें और व्यापक किसमें ? व्याप्य कौन और व्यापक कौन ? एक स्वाभाविक ‘चुप’ (अक्रिय-तत्त्व) रहता है । स्वाभाविक ‘चुप’ होना ज्ञानकी असली स्थिति है । इस स्वाभाविक ‘चुप’ में न करना है, न जानना है, न चिन्तन है, न समाधि है । इसमें न जाननेकी रुचि है, न करनेकी रुचि है, न चिन्तनकी रुचि है, न स्थिरताकी रुचि है । एक सच्चिदानन्दघन परमात्मतत्त्व रहता है । इसके बाद ‘प्रेम’ है । उस प्रेममें असली दास्य, सख्य और माधुर्यभाव है । दास्यमें दो भाव होते हैं । एकमें भगवान् बालक हो जाते हैं और एकमें हम बालक हो जाते हैं ।

करना, होना और हैये तीन हैं । पहले ‘करना’ होता है । करना मिटनेके बाद ‘होना’ होता है और उसके बाद ‘है’ होता है । ‘करना’ साधन है, ‘होना’ भी ऊँचा साधन है, और ‘है’ में सिद्धि है । ‘है’ स्वाभाविक परिपूर्णरूपसे, शान्तरूपसे, आनन्दरूपसे, घनरूपसे, भूमारूपसे विद्यमान है ।

भूमा अचल शाश्वत अमल सम ठोस है तू सर्वदा ।
यह देह है पोला घड़ा   बनता बिगड़ता है सदा ॥

‘यो वै भूमा तत्सुखं’ (छान्दोग्य ७ । २३ । १) ‘निश्चय जो भूमा (महान्, निरतिशय, बहु) है, वही सुख है ।’ यह ज्ञानकी अवधि है, बोधकी प्राप्ति है । इस बोधके बाद प्रेम होता है, जिसमें दास्य, सख्य, वात्सल्य और माधुर्य भाव होते हैं । ये भाव साधनरूपसे पहले भी होते हैं । पहले साधनभक्ति होती है ।

माधुर्यभावमें स्त्री-पुरुषकी बात आती है, पर यह बात है नहीं । माधुर्यभाव वह होता है, जिसमें ऐश्वर्य लुप्त हो जाता है । जब भगवान् ग्वालबालोंके साथ भोजन कर रहे थे, तब वे इतने तल्लीन हो गये कि बछड़ोंको भूल गये । फिर किसीको याद आया कि बछड़े कहाँ हैं ? तो भगवान्‌ने कहा कि मैं जाता हूँ । भगवान्‌ने बछड़ोंको ढूँढ़ा तो वे मिले नहीं । तब भगवान्‌में भाव आया कि बछड़े कहाँ गये ? यह भाव आते ही ऐश्वर्यशक्ति प्रकट हो गयी और माधुर्यशक्ति लुप्त हो गयी । ऐश्वर्यशक्ति आते ही वे जान गये कि यह काम ब्रह्माजीने किया है । पीछे आकर देखा तो ग्वालबाल भी नहीं मिले ! उनको भी ब्रह्माजी ले गये । फिर उस ऐश्वर्यशक्तिसे भगवान् स्वयं बछड़े, ग्वालबाल आदि सब बन गये !


भगवान्‌की जितनी लीलाएँ होती हैं, सब माधुर्यशक्तिसे होती हैं । गीधराजने कह दिया कि सीताजीको रावण ले गया, पर माधुर्यशक्तिके कारण भगवान् राम भूल गये और सीताजीको ढूँढ़ते हैं !

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे