।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
वैशाख शुक्ल प्रतिपदा, वि.सं.-२०७५, मंगलवार
                    मैं नहीं, मेरा नहीं 



(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोताआपने कहा कि ‘चुप’ होनेके बाद प्रेम होता है, इसे थोड़ा विस्तारसे समझाएँ

स्वामीजीमैं भगवान्‌के चरणोंकी शरण हूँयह भाव तो आरम्भमें ही हो जाता है । परन्तु जब अचिन्त्यभाव होकर अपने-आपको भगवान्‌के चरणोंके अर्पित कर देता है, तक मेरी जगह भगवान्‌के चरण ही रह जाते हैं, ‘मैं’ रहता ही नहीं । ‘मैं’ चरणोंमें लीन हो गया । जब मैंही नहीं रहा तो मेरा कर्तव्य क्या हुआ ? कर्तव्य कुछ नहीं रहा । मैंकी जगह भगवान् आ गये । पीछे एक भगवान् ही रह गये । मैंपनका अभाव हो गया । निर्मम-निरहंकार हो गया‘निर्ममो निरहङ्कारः’ (गीता २ । ७१; १२ । १३)

पहले वासुदेवः सर्वम्होता है । फिर मैंपन मिटनेपर ‘सर्वम्’ मिट जाता है, केवल ‘वासुदेव’ रह जाता है । ‘सर्वम्’ (सम्पूर्ण संसार) अहम्के आश्रित है । अहम्‌, व्यक्तित्व सर्वथा मिटनेपर प्रेम प्रकट हो जाता है । उसमें प्रीति और प्रियतम एक हो जाते हैं । प्रीति राधा है और प्रियतम भगवान् कृष्ण हैं । ये कहनेमें दो हैं, पर वास्तवमें दो हैं नहीं ।

लोगोंने समझा है कि हम संसारके आदमी हैं और भगवान्‌की प्राप्ति बड़ी दुर्लभ, कठिन है । यह बात नहीं है । भगवान्‌की प्राप्ति तो अपने घरकी बात है । हम भगवान्‌के अंश हैं‘ईश्वर अंस जीव अबिनासी’ (मानस, उत्तर ११७ । १) भगवान् हमारे पिता हैं । पिताकी गोदमें जानेमें क्या जोर आये ? सब-के-सब भाई-बहन भगवान्‌को अपना पिता कह सकते हैं । मना करनेवाला कौन है ? लोग कहते हैं कि मुक्ति बड़ी कठिन है ! भगवान्‌का प्रेम बड़ा कठिन है ! भगवान् हमारे पिता हैं, फिर कठिनता किस बातकी ? हम मौजसे अपने पिताकी गोदमें बैठे हैं ! कौन मना कर सकता है ?

हम सब-के-सब परमपिता भगवान्‌की गोदमें बैठे हैं । भगवान्‌की गोद इतनी बड़ी है कि सब-के-सब बैठ जायँ, फिर भी गोद खाली है ! भगवान्‌का पुष्पक-विमान भी ऐसा था कि उसमें चाहे जितने आ जायँ, सब बैठ जायँ !!

अतिसय प्रीति देखि रघुराई ।
लीन्हे सकल  बिमान चढ़ाई ॥
                  (मानस, लका ११९ । १)


आप यह स्वीकार कर लें कि सब कुछ भगवान् ही हैं‘वासुदेवः सर्वम्’ (गीता ७ । १९) इस बातमें इतना लाभ है कि ऐसा लाभ कोई हुआ नहीं, होगा नहीं, हो सकता नहीं ! ऐसे लाभकी बातको आप क्यों छोड़ते हो ? यह परम लाभकी बात है । अनेक रूपोंमें मेरे भगवान् हैं.....मेरे भगवान् हैं.....मेरे भगवान् हैंऐसा मानकर सब-के-सब भाई-बहन मस्त हो जाओ, नाचने लग जाओ ! कितने आनन्दकी बात है ! कितनी बढ़िया बात है ! कितनी श्रेष्ठ बात है ! एक प्यारा मित्र कई वर्षोंके बाद मिलता है तो बड़ा आनन्द आता है, फिर सब जगह साक्षात् भगवान् मिल जायँ तो कितने आनन्दकी बात है ! रात-दिन इसमें मस्त हो जाओ । दुःख सब मिट जायगा । कोई दुःख पास आयेगा ही नहीं । 

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे