।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि–
    वैशाख शुक्ल अष्टमी, वि.सं.-२०७५, सोमवार  
                     अनन्तकी ओर     



शरीर आदि मिली हुई चीजें आपके काम नहीं आयेंगीयह बात आपको हरेक जगह मिलेगी नहीं ! आपको मनुष्यशरीर मिला है, पर वह आपके काम नहीं आयेगा । आप काममें लेना चाहोगे, तब काम आयेगा । बढ़िया-से-बढ़िया चीज भी जबतक आप काममें न लें, तबतक वह क्या काम आयेगी ? भगवान्‌का नाम लो, भगवान्‌का चिन्तन करो, भगवान्‌की चर्चा करो तो लाभ होगा, पर आप परवाह ही नहीं करते ! आपको मनुष्यशरीर मिला है, सत्संग मिला है, अच्छी बातें मिली हैं । इनको आप ठीक तरहसे काममें लो तो बहुत लाभ होगा ।

हे नाथ ! हे नाथ ! कहकर भगवान्‌को पुकारो और प्रार्थना करो कि हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं । यह बात मैंने बहुत बार कही है, पर आप ध्यान नहीं देते ! रोजाना दो-दो, तीन-तीन मिनटमें कहते रहो तो देखो, आपका जीवन बदलता है कि नहीं ! इसमें क्या कठिनता है ? मन न लगे तो भी केवल कहनेमात्रसे लाभ होगा । लगनसे कहो तो बहुत लाभ होगा । आजसे ही मन-ही-मन हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं कहना शुरू कर दो । आपका जीवन विचित्र हो जायगा ! आप सन्त हो जाओगे !

श्रोताघरमें सूतक-पातक हो जाय तो भगवान्‌का पूजन कैसे करें ?

स्वामीजीअगर ठाकुरजीकी प्राण-प्रतिष्ठा की गयी है तो उनका पूजन ब्राह्मणसे कराना चाहिये । आपकी विवाहित बहन-बेटी भी उनका पूजन कर सकती है । अगर प्राण-प्रतिष्ठा नहीं करायी है तो ठाकुरजी घरके सदस्यकी तरह ही हैं । अतः उनको सूतक-पातक नहीं लगता । उनका पूजन आप कर सकते हैं ।

संसारकी कोई चीज ऐसी है ही नहीं, जो सदा आपके साथमें रहे और भगवान् ऐसे हैं ही नहीं, जो सदा आपके साथमें न रहें । भगवान् सबके हृदयमें रहते हैंसर्वस्य चाहं हृदि सन्‍निविष्टः (गीता १५ । १५) । जैसे गायको घी दिया जाय तो वह घी गुण करता है, पर उसके भीतर रहनेवाला घी गुण नहीं करता, उसके काम नहीं आता । ऐसे ही आपके हृदयमें रहनेवाले भगवान् आपके काम नहीं आते । आपके हृदयमें रहते हुए भी वे नहींकी तरह ही हैं । आप मान लो, स्वीकार कर लो कि भगवान् हमारे हृदयमें हैं और वे हमारे हैं, तब वे काम आयेंगे ।


विचार करें, भगवान्‌के बिना आप आये ही कहाँसे ? कोई बालक माँके बिना आता है क्या ? इसलिये आप केवल इतना स्वीकार कर लो कि भगवान् मेरे हैं, मैं भगवान्‌का हूँ । उनको हरेक हालतमें पुकारो । सुखमें भी पुकारो, दुःखमें भी पुकारो । पापी-पुण्यात्मा, भक्त-अभक्त, ज्ञानी-अज्ञानी सब भगवान्‌को अपना कह सकते हैं । भगवान्‌को अपना मान लो तो कुछ काम बाकी नहीं रहेगा, सब काम अपने-आप ठीक हो जायगा । आपसे कोई पूछे, कभी पूछे कि कहाँके हो ? कौन हो ? तो स्वतः मनमें आना चाहिये कि मैं भगवान्‌का हूँ । यह बात हरेकके सामने नहीं कहनी है, पर मनमें यही बात पैदा होनी चाहिये कि मैं भगवान्‌का हूँ ।