।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि–
    वैशाख शुक्ल सप्तमी, वि.सं.-२०७५, रविवार  
                        श्रीगंगा-सप्तमी
                     अनन्तकी ओर     



भगवान्‌के दरबारकी सबसे ऊँची चीज है‒सत्संग । जीवन्मुक्त महापुरुष भी सत्संग चाहते हैं ! भगवान् शंकर भी सत्संग चाहते हैं ! सत्संग अपने पुरुषार्थसे, अपनी चतुराईसे, अपनी योग्यतासे नहीं मिलता । जब भगवान् द्रवित होते हैं, तब सत्संग मिलता है‒जब द्रवै दीनदयालु राघव साधु-संगति पाइये’ (विनयपत्रिका १३६ । १०) । इसलिये सत्संग मिले तो जानना चाहिये कि भगवान्‌ने विशेष कृपा की है‒बिनु हरिकृपा मिलहिं नहि संता’ (मानस, सुन्दर ७ । २) ! जिनको सत्संग मिलता है, वे संसारमें विशेष भाग्यशाली हैं ! परन्तु सत्संगके तत्त्वको हरेक आदमी समझता नहीं । हीरेका मूल्य जौहरी ही समझ सकता है । सत्संगसे दुर्लभ-से-दुर्लभ चीज भी सुलभ हो जाती है । जो परमात्मा कठिन दीखते हैं, वे भी सत्संगसे सुगम हो जाते हैं । परन्तु रात-दिन विषयोंमें फँसा हुआ मनुष्य इसको क्या जाने ! क्या जाने भगवान्‌को ! क्या जाने भक्तोंको !

आप मानें या न मानें, आपको जँचे या न जँचे, आप स्वीकार करें या न करें, अभी मौका बहुत बढ़िया आया हुआ है ! अगर आप सावचेत हो जायँ तो अभी उद्धार करनेका बहुत सुन्दर मौका है । हमें बहुत जल्दी कल्याण करनेकी बातें मिली हैं । आप तत्परतासे साधन करें तो आपकी बहुत विलक्षण स्थिति हो सकती है ।

मेरी प्रकृति और तरहकी है । कोई पूछे, तब मनमें कहनेकी आती है । अगर कोई हृदयसे मार्मिक बात पूछे तो चित्तमें बहुत प्रसन्नता होती है; मैं बहुत राजी होता हूँ ! कोई सत्संगकी बात पूछे तो बहुत आनन्द रहता है, प्रसन्नता रहती है ! पर आप परवाह ही नहीं करते ! आपलोग कृपा करो, मार्मिक बातें पूछो । आपलोगोंकी गलती यह है कि सत्संग सुन लिया और बस, राजी हो गये । आप भगवान्‌की कथा सुनो, आपको फायदा होगा । पर मैं और तरहकी बातें कहता हूँ । मेरी बातोंमें भगवत्सम्बन्धी बातें भी आती हैं, भक्तोंकी बातें भी आती हैं और तर्ककी बातें भी आती हैं, ठीक तरहसे समझनेकी बातें भी आती हैं । समझनेकी बातोंको जितना ज्यादा समझोगे, उतना फायदा ज्यादा होगा ।

शरीरादि जितनी सामग्री हमें मिली है, यह अपनी नहीं है और अपने लिये भी नहीं है‒यह बात मामूली नहीं है, बड़ी श्रेष्ठ बात है ! आपका शरीर, आपकी वस्तुएँ, आपकी योग्यता, आपका बल आपके काम नहीं आयेगा । यह बात जबतक नहीं समझोगे, तबतक आपकी आध्यात्मिक उन्नति नहीं होगी । परन्तु आपलोग तब समझोगे, जब आपमें जिज्ञासा होगी । आपलोग समझ नहीं सकते‒ऐसा मैं नहीं मानता हूँ । आप समझनेकी चेष्टा ही नहीं करते, परवाह ही नहीं करते !