।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि–
    वैशाख शुक्ल दशमी, वि.सं.-२०७५, बुधवार
एकादशी-व्रत कल है
                      अनन्तकी ओर     



श्रोता‒जब कीर्तन, माला-जप करते हैं, तब तो भगवान् याद आते हैं, पर दूसरे काममें लग जाते हैं तो भगवान्‌को भूल जाते हैं, क्या करना चाहिये ?

स्वामीजी‒भीतरकी लगन नहीं है । भीतरमें लगन न हो तो बाहरसे किया साधन काम नहीं देता । भीतरसे भगवान्‌की भूख होनेपर ही भगवान् याद आते हैं । इसलिये विचारपूर्वक भीतरकी लगन लगाओ । विचार करो कि हमारा समय किसमें लग रहा है ? आप उपाय पूछते हो, पर वास्तवमें उपाय काम नहीं देते, भीतरकी लगन काम देती है । भीतरकी चाहना आप बार-बार विचार करके जाग्रत् कर सकते हो । दिनभर विचार करो कि मन कैसे लगे......मन कैसे लगे ? जरूर लग जायगा । कारण कि भगवान्‌की प्राप्तिके लिये ही मनुष्यजन्म मिला है । वह काम नहीं होगा तो और क्या होगा ? मन कैसे लगे......मन कैसे लगे‒यह प्रश्‍न ही इसका उत्तर है ।

श्रोता‒चार-पाँच सालसे बार-बार बाधा पड़ रही है, क्या करना चाहिये ?

स्वामीजी‒आप तो करते रहो, छोड़ो मत । एक श्‍लोक आता है‒

                 प्रारभ्यते  न  खलु   विध्नभयेन  नीचैः
                                  प्रारभ्य विघ्नविहता विरमन्ति मध्याः ।
                 विघ्नैः  पुनः  पुनरपि  प्रतिहन्यमानाः
                                   प्रारब्धमुत्तमजना   न   परित्यजन्ति ॥
                                               (मुद्राराक्षस २ । १७)

नीच मनुष्य विघ्नोंके डरसे कार्यका आरम्भ ही नहीं करते हैं । मध्यम श्रेणीके मनुष्य कार्यका आरम्भ तो कर देते हैं, पर विघ्न आनेपर उसे छोड़ देते हैं । परन्तु उत्तम गुणोंवाले मनुष्य बार-बार विघ्न आनेपर भी अपना कार्य छोड़ते नहीं ।’

आजकल अच्छा संग, सत्संग नहीं मिलता । कथा करनेवाले, व्याख्यान देनेवाले भी वह बात कहते हैं, जिससे लोग ज्यादा इकट्ठे हो जायँ, लोग राजी हो जायँ और पैसा अधिक आये । लोगोके कल्याणकी बातोंकी तरफ ख्याल ही नहीं है । सत्संगकी बात ही दुर्लभ हो गयी है । आध्यात्मिक बातें जानते ही नहीं, जानना चाहते ही नहीं । आजकल अच्छा सत्संग मिलना बहुत दुर्लभ हो गया है ! पहले आध्यात्मिक पत्रोंमें जैसे लेख आते थे, वैसे लेख अब नहीं आते । अच्छे लेखक विद्वान् अनुभवी आदमी संसारमात्रमें बहुत कम रह गये हैं । साधु बहुत कम रह गये, और साधुओंमें भी साधुता बहुत कम रह गयी है ! हमारा क्या कर्तव्य है, हमें क्या करना चाहिये‒ऐसा विचार करनेवाले बहुत कम रह गये ! सत्संगमें आनेवाले भाई-बहनोंमें भी अच्छे विचारवाले बहुत कम हो गये हैं ! आप खुद पक्‍का विचार कर लो कि हमें ठीक बनना है तो जरूर ठीक बन सकते हो । दूसरा आपको ठीक नहीं बना सकता ।

सत्संगका बड़ा असर पड़ता है । सत्संग सुने तो मूर्खता नहीं रह सकती ।

मति कीरति गति  भूति भलाई ।
जब जेहिं जतन जहाँ जेहिं पाई ॥
सो   जानब    सतसंग   प्रभाऊ ।
लोकहुँ  बेद  न   आन   उपाऊ ॥
                                          (मानस, बाल ३ । ३)

संसारमें जिसने जिस समय जहाँ-कहीं भी जिस-किसी यत्‍नसे बुद्धि, कीर्ति, सद्‌गति, विभूति (ऐश्‍वर्य) और भलाई पायी है, वह सब सत्संगका ही प्रभाव समझना चाहिये । वेदोंमें और लोकमें इनकी प्राप्तिका दूसरा कोई उपाय नहीं है ।’


मूर्खता इसी कारण रहती है कि अच्छे सन्त-महात्माओंका सत्संग नहीं मिला ।