।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि–
    वैशाख शुक्ल एकादशी, वि.सं.-२०७५, गुरुवार
मोहिनी एकादशी-व्रत (सबका)
                      अनन्तकी ओर     



सम्पूर्ण जीव साक्षात् परमात्माके अंश हैं‒‘ईस्वर अंस जीव अबिनासी’ (मानस, उत्तर ११७ । १) । अतः हरेकके भीतर यह बात होनी चाहिये कि हम भगवान्‌के लाड़ले बेटा-बेटी हैं । आप अपने-आपको भगवान्‌का अंश मानोगे तो बिना कहे-सुने आपमें अच्छे गुण, सद्‌गुण-सदाचार अपने-आप आ जायँगे । ऐसी-ऐसी बातें आपमें आ जायँगी कि खुद आपको आश्‍चर्य होगा ! परन्तु यह होगा भगवान्‌के साथ अपना सम्बन्ध माननेसे । हम भगवान्‌के हैं ‒यह सब बातोंकी सार बात है ।

श्रोता‒अगर विधवा विवाह न करे तो उसका जीवन कैसे चलेगा ?

स्वामीजी‒मनुष्यजन्मके खास ध्येय परमात्माकी प्राप्तिको तो सर्वथा भूल गये और भोगेच्छा मुख्य हो गयी ! अगर परमात्मप्राप्तिका लक्ष्य हो जाय तो जीवन बहुत बढ़िया चलेगा । शरीर भोग भोगनेके लिये ही है‒यह बात भीतर बैठी हुई होनेके कारण यह प्रश्‍न उठता है कि जीवन कैसे चलेगा ? अगर त्यागका विचार होता तो यह प्रश्‍न ही नहीं उठता । भोगेच्छा ही मुख्य हो जायगी तो फिर दुराचार, पापाचार ही होंगे ।
अगर यह प्रश्‍न है कि विधवाका निर्वाह कैसे होगा, तो यह प्रश्‍न भी उठना चाहिये कि जो साधु हो गया, उसका निर्वाह कैसे होगा !

श्रोता‒सम्पूर्ण सृष्टि भगवान्‌से पैदा हुई है, तो जो कुछ हो रहा है, सब भगवान् ही करवा रहे हैं । फिर हम जो गलती करते हैं, उसका फल हमें क्यों मिलता है ?

स्वामीजी‒यह बात नहीं है । आप अपने मनसे काम करते हैं । आपको प्यास लगती है तो आप जल पीते हैं, भूख लगती है तो अन्न खाते हैं, नींद आती है तो सो जाते हैं । जो आपके मनमें आता है, वह काम आप करते हैं ।

एक करना’ होता है और एक होना’ होता है । दोनों अलग-अलग हैं । जैसे, व्यापार करते हैं, नफा-नुकसान होता है । करना’ हमारे हाथमें है, ‘होना’ हमारे हाथमें नहीं है । अगर होना हमारे हाथमें होता तो हम नुकसान करें ही नहीं, हम कभी मरें ही नहीं । कोई मरना नहीं चाहता, पर सब मरते हैं ! इसलिये करनेमें सावधान और होनेमें प्रसन्न रहनेकी बात कही जाती है । करनेमें सावधान नहीं रहना और होनेमें दुःखी होना‒दोनों ही गलती है ।

भगवान् कराते हैं‒यह बात है ही नहीं । अगर भगवान् कराते तो ऐसा करो, ऐसा मत करो’यह कहना बनेगा ही नहीं । गुरु, शास्‍त्र आदि सब निरर्थक हो जायँगे ।

श्रोता‒अपने-आप भजन कैसे हो ?


स्वामीजी‒लगन होनेसे अपने-आप भजन होगा । सच्‍ची लगन होनेसे भजन छूट ही नहीं सकता । भीतरमें यह बात जँच जाय कि एक भगवान्‌के सिवाय अपना कोई नहीं है तो अपने-आप, स्वाभाविक भजन होगा । संसार (स्‍त्री, पुत्र, कुटुम्ब, धन आदि)-को अपना मानोगे तो संसारका भजन होगा, भगवान्‌का भजन कैसे होगा ? संसारमें अपना कोई नहीं है‒इतना मान लो तो अपने-आप भजन होगा ।