।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि–
अधिक ज्येष्ठ द्वितीया, वि.सं.-२०७५, गुरुवार
 अनन्तकी ओर     



श्रोताअमुक काम अच्छा है या मन्दा हैइसका निर्णय किस आधारपर करें ?

स्वामीजीजिसमें अपना स्वार्थ है, वह मन्दा है और जिसमें दूसरोंका हित है, वह बढ़िया है । सीधी बात है, लिख लो !

श्रोताअच्छे-अच्छे काम करते रहनेपर भी बीचमें जो तिरस्कार, अपमान मिलता है, उस समय भी धीरज रखते हुए उत्साहपूर्वक काममें लगे रहनेकी हिम्मत कैसे आये ?

स्वामीजीएक किसान खेती करता है, पर पहलेका धान न होनेसे भूखा मरता है, और एक किसान खेती करता ही नहीं, पर पहलेका धान होनेसे खाता है । पहलेका बोया हुआ अभी खाता है, और अभीका बोया हुआ आगे खायेगा । ऐसे ही अभी जो तिरस्कार, अपमान मिलता है, यह पहलेका प्रारब्ध है । अभी जो अच्छा काम करते हैं, उसका फल आगे मिलेगा ।

एक बहुत बढ़िया बात है ! जैसे, अपने माता-पिताको कोई जान नहीं सकता; परन्तु उनको मान सकता है । उनको माननेके सिवाय और कोई उपाय है ही नहीं । माँको कैसे जानें ? क्योंकि जन्मके समय हमें होश ही नहीं था । पिताको कैसे जानें ? क्योंकि उस समय हमारा जन्म ही नहीं हुआ था । लोग कहते हैं कि ये तुम्हारे माता-पिता हैं तो हम सुनकर मान लेते हैं । माननेमें हमें सन्देह नहीं रहता । ऐसे ही जितना संसार है, सब केवल भगवान्‌से पैदा हुआ है । उस भगवान्‌को हम जान नहीं सकते, प्रत्युत सन्त-महात्मा, वेद, शास्‍त्र, पुराण आदिसे सुनकर मान ही सकते हैं । जो सम्पूर्ण सृष्टिको उत्पन्न करनेवाला है, उसको उत्पन्न होनेवाला कैसे जानेगा ?

जैसे माता-पिताको जान तो नहीं सकते, पर माने बिना रह नहीं सकते, ऐसे ही भगवान्‌को जान तो नहीं सकते, पर माने बिना रह नहीं सकते । माना हुआ सच्‍चा है, इसमें तिल-जितना भी सन्देह नहीं है । ऐसे परमपिता भगवान्‌को आप अपना मान लोईस्वर अंस जीव अबिनासी चेतन अमल सहज सुख रासी ॥ (मानस, उत्तर ११७ । १); ममैवांशो जीवलोके (गीता १५ । ७) ।


गीताके अन्तमें भगवान्‌ने अर्जुनसे पूछा कि क्या तुमने एकाग्रचित्तसे गीता सुनी ? और क्या तुम्हारा अज्ञानजनित मोह नष्ट हुआ ? तात्पर्य था कि गीता अगर ठीक ध्यानसे सुने तो मोह नष्ट हो जाता है । अर्जुनने उत्तर दियानष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रासादान्मयाच्युत (गीता १८ । ७३) हे अच्युत ! आपकी कृपासे मेरा मोह नष्ट हो गया है और मुझे स्मृति प्राप्त हो गयी है । यह स्मृति क्या हैयह बात मामूली नहीं है ! मेरेको सत्संग करते, पुस्तकोंको पढ़ते कई वर्ष हो गये, पर पता नहीं लगा कि स्मृति का असली स्वरूप क्या है ? असली स्वरूप वह है, जो अभी आपको बताया है ! यदि आप इसपर ध्यान दें तो आपको पता लग जायगा कि स्मृति इसको कहते हैं ।